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Bihar elections में बड़ा झटका: RJD ने पूर्व विधायक सीताराम यादव को दल-विरोधी कामों के लिए निष्कासित किया

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बिहार चुनाव (Bihar elections) के दूसरे चरण की धूमधाम से तैयारियां चल रही हैं। लेकिन इसी बीच एक परिवार की राजनीतिक महत्वाकांक्षा ने पार्टी के साथ दरार डाल दी है। पूर्व विधायक सीताराम यादव और उनके बेटों को आरजेडी (RJD) ने छह साल के लिए बाहर का रास्ता दिखा दिया। यह कदम दल-विरोधी गतिविधियों के आरोप में उठाया गया। लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव की अगुवाई वाली पार्टी में वफादारी और महत्वाकांक्षा के बीच टकराव ने सबका ध्यान खींच लिया है।

हम इस लेख में इस निष्कासन के पीछे की वजहें समझेंगे। साथ ही, मधुबनी जिले के खजौली सीट पर इसका असर क्या होगा, यह भी देखेंगे। यह घटना बिहार की राजनीति में एक सबक की तरह लगती है। जहां पुराने साथी भी महत्वाकांक्षा के आगे झुक जाते हैं।

आरजेडी का सख्त कदम: निष्कासन आदेश की पूरी डिटेल

आरजेडी ने इस मामले में कोई नरमी नहीं बरती। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव मुकुंद सिंह ने एक पत्र जारी किया। इसमें साफ लिखा है कि यह फैसला राष्ट्रीय अध्यक्ष के निर्देश पर लिया गया। पूर्व विधायक सीताराम यादव को उनके बेटों के साथ पार्टी से दूर रखना जरूरी हो गया। यह कदम चुनावी माहौल में पार्टी की एकता बचाने के लिए उठाया गया। हम समझ सकते हैं कि कितना दर्दनाक होता है जब परिवार का कोई सदस्य पार्टी से अलग हो जाता है।

निष्कासित नेताओं के नाम और समयावधि

इस निष्कासन में तीन नाम शामिल हैं। पूर्व विधायक सीताराम यादव मुख्य आरोपी हैं। उनके बेटे राकेश रंजन उर्फ विमल यादव और राजेश कुमार को भी सजा मिली। सभी को छह साल के लिए पार्टी से बाहर किया गया। मुकुंद सिंह ने पत्र में यह साफ कहा। यह समयावधि लंबी है। इससे परिवार को राजनीतिक रूप से अलग-थलग महसूस होगा। बिहार की राजनीति में यादव परिवार का नाम बड़ा है। लेकिन अब यह फैसला उनके लिए एक चुनौती बन गया।

सीताराम यादव: खजौली से पूर्व विधायक।
राकेश रंजन उर्फ विमल यादव: स्वतंत्र उम्मीदवार बने।
राजेश कुमार: बड़े बेटे, पार्टी विरोध में शामिल।

यह सूची देखकर लगता है कि पूरा परिवार प्रभावित हुआ। पार्टी ने इसे गंभीरता से लिया।

मुख्य आरोप: दल-विरोधी व्यवहार

आरोप साफ हैं। पूर्व विधायक ने पार्टी के खिलाफ काम किया। उन्होंने अपने बेटे को स्वतंत्र उम्मीदवार बनाया। यह आरजेडी के आधिकारिक उम्मीदवार के खिलाफ था। साथ ही, गलत बयानबाजी शुरू कर दी। खजौली सीट पर यह सीधा हमला था। पार्टी को नुकसान पहुंचाने की कोशिश लगी। हम सोच सकते हैं कि महत्वाकांक्षा कब दुश्मनी में बदल जाती है। पूर्व विधायक ने पार्टी की नीतियों पर सवाल उठाए। इससे कार्यकर्ताओं में असमंजस फैला।

वफादारी का इतिहास बनाम आज का असंतोष

सीताराम यादव लंबे समय से पार्टी के वफादार रहे। आरजेडी ने उन्हें सम्मान दिया। विधायक बनाया, जिम्मेदारियां सौंपी। लेकिन चुनावी टिकट न मिलने से नाराजगी भड़क गई। पत्र में लिखा है कि वे निष्ठावान थे। फिर भी, अब दल-विरोधी कदम उठा लिया। यह दुखद है। पुराने साथी का ऐसा कदम पार्टी को हिला देता है। यादव परिवार ने पार्टी के लिए बहुत कुछ किया। लेकिन एक फैसले ने सब बदल दिया।

ट्रिगर: टिकट न मिलना और स्वतंत्र उम्मीदवारी

यह सब टिकट से जुड़ा है। खजौली सीट पर आरजेडी ने किसी और को चुना। सीताराम यादव को मौका नहीं मिला। न ही उनके बेटों को। इससे गुस्सा फूट पड़ा। पूर्व विधायक ने विद्रोह का रास्ता चुना। हम समझ सकते हैं कि राजनीति में टिकट न मिलना कितना निराशाजनक होता है। परिवार की उम्मीदें टूट गईं। लेकिन स्वतंत्र उम्मीदवारी ने मामले को बिगाड़ दिया।

खजौली विधानसभा सीट का विवाद

मधुबनी जिले की खजौली सीट महत्वपूर्ण है। यहां यादव वोटरों की संख्या अच्छी है। आरजेडी ने टिकट किसी और को दिया। सीताराम यादव को यह अपमान लगा। वे पहले विधायक रह चुके थे। सीट पर उनका प्रभाव था। लेकिन पार्टी ने फैसला सुना लिया। अब विद्रोह ने सीट को जटिल बना दिया। स्थानीय लोग इस टकराव से परेशान हैं। वोट किसे जाएं, यह सवाल खड़ा हो गया।

विद्रोही अभियान की शुरुआत

पूर्व विधायक ने अपने बेटे राकेश रंजन को मैदान में उतारा। विमल यादव के नाम से स्वतंत्र उम्मीदवार बने। यह आरजेडी के उम्मीदवार के खिलाफ सीधा चैलेंज था। प्रचार शुरू हो गया। पोस्टर, रैलियां, सब चला। परिवार ने पूरी ताकत लगाई। लेकिन इससे पार्टी को धक्का लगा। हम देख सकते हैं कि एक फैसले ने कितना तनाव पैदा कर दिया। खजौली के वोटबैंक पर असर पड़ेगा।

पार्टी नेतृत्व पर सार्वजनिक आलोचना

टिकट न मिलने के बाद बयानबाजी तेज हो गई। पूर्व विधायक ने आरजेडी पर गलत आरोप लगाए। लालू-तेजस्वी की नीतियों पर सवाल उठाए। यह सब मीडिया में छपा। कार्यकर्ता हैरान हुए। पार्टी के खिलाफ बोलना वफादारी को ठेस पहुंचाता है। हम सहानुभूति रखते हैं, लेकिन नियम तो मानने पड़ते हैं। इस आलोचना ने निष्कासन को जायज ठहरा दिया।

राजनीतिक संदर्भ: दूसरे चरण का मतदान और रणनीतिक प्रभाव

दूसरा चरण नजदीक आ रहा है। तैयारियां जोरों पर हैं। लेकिन यह निष्कासन पार्टी के लिए चेतावनी है। खजौली जैसे इलाकों में वोट बंट सकता है। आरजेडी को सतर्क रहना होगा। हम देख रहे हैं कि आंतरिक कलह चुनाव बदल सकती है। मधुबनी जिले पर नजर है।

मधुबनी में आरजेडी के वोट शेयर पर असर

खजौली में स्वतंत्र उम्मीदवार मजबूत है। स्थानीय प्रभाव से वोट कटेंगे। आरजेडी का कोर वोटबैंक यादव समुदाय है। लेकिन अब बंटवारा हो सकता है। पिछले चुनावों में आरजेडी ने यहां अच्छा प्रदर्शन किया। 2015 में जीत हासिल की। लेकिन इस बार विद्रोह नुकसान करेगा। अनुमान है कि 5-10 फीसदी वोट प्रभावित होंगे। पार्टी को नया रणनीति अपनानी पड़ेगी।

अन्य असंतुष्टों के लिए संदेश

यह निष्कासन एक उदाहरण है। राष्ट्रीय अध्यक्ष के निर्देश पर लिया गया। अन्य नेता सावधान हो जाएं। अगर टिकट न मिले तो विद्रोह न करें। पार्टी में अनुशासन जरूरी है। बिहार चुनाव में कई सीटें ऐसी हैं। जहां असंतोष हो सकता है। यह फैसला डर पैदा करेगा। लेकिन एकता मजबूत करेगा। हम सोचते हैं कि नेताओं को समझना चाहिए।

विपक्षी दलों की चालें

विपक्ष को मौका मिल गया। बीजेपी या जेडीयू खजौली में फायदा उठा सकते हैं। वे इस कलह का प्रचार करेंगे। सोशल मीडिया पर अफवाहें फैलेंगी। आरजेडी की छवि खराब करने की कोशिश होगी। लेकिन अगर पार्टी एकजुट रही तो नुकसान कम होगा। विपक्ष हमेशा कमजोरी ढूंढता है।

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