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Bihar Assembly Elections 2025: वामपंथ की रणनीति और बिहार का भविष्य
इसी साल बिहार में चुनाव (Bihar Assembly Elections) होने जा रहा है। सितम्बर महीने से राज्य चुनावी प्रक्रिया में प्रवेश कर जाएगा और नवम्बर महीने में परिणाम भी आ जाएगा। मेरे आकलन से एनडीए और इंडिया गठबंधन में कड़ा मुकाबला होगा। राज्य के जनवादी, प्रगतिशील, वामपंथी एवं क्रांतिकारी संगठनों की सदिच्छा है कि भाजपा
Bihar Elections 2025
-जदयू -लोजपा-हम गठजोड़ हार जाए और राजद-कांग्रेस-वामपंथियों का इन्डिया गठबन्धन जीत जाए। यह गठबन्धन जीत भी सकता है, यदि राजद ने सीट बंटवारे में मनमानी नहीं की और कांग्रेस एवं वामपंथी दलों को सम्मानजनक सीट दिया या उन्हें मिला। बहरहाल यदि वे जीत भी गये और उनकी सरकार भी बन गयी तो क्या बिहार की सूरत बदल जाएगी ?
आम लोगों को महंगाई से राहत मिल पाएगा, जरूरतमंद नौजवानों को रोजगार उपलब्ध हो पाएगा, शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवा में उल्लेखनीय सुधार हो पाएगा, रिश्वतखोरी पर लगाम कसेगा , प्रगतिशील भूमि सुधार हो पाएगा ? ये चंद यक्ष प्रश्न हैं जिसके उत्तर की तलाश है। लेकिन सही उत्तर नहीं मिल पाता।
लेनिनवादी कार्यनीति का पालन
जहां तक शासक वर्गों की पार्टियों का सवाल है, उनकी अपनी सीमाएं हैं। वे इसी व्यवस्था में छोटे-मोटे सुधार कर एवं आम जनता को झूठे आश्वासनों की पोटली थमाकर सत्ता पर काबिज हो जाना चाहती हैं। लेकिन मार्क्सवाद- लेनिनवाद की दुहाई देने वाले वामपंथी दलों को तो चुनाव में लेनिनवादी कार्यनीति का पालन कारण चाहिए!
उन्हें क्यों नहीं 60 सीटों पर मिलजुल कर अपनी स्वतंत्र दावेदारी करनी चाहिए ? बाकी सीटों पर भाजपा-जदयू को हराने वाले सक्षम प्रत्याशी को वोट देने का विकल्प तो आम मतदाताओं के पास रहेगा ही !
शासकों और शासक वर्गों की जनविरोधी नीतियों की निर्मम आलोचना का विकल्प हमेशा प्रगतिशील शक्तियों के पास रहनी चाहिए। इस हथियार को त्याग कर या उसे भोंथरा करके तो वे अपना ही नुकसान करेंगे और पार्टी को विलोपवाद की दिशा में चाहे-अनचाहे ढकेल देंगे।

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