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Bihar के Deputy CM का नेपाल-पाकिस्तान बयान: नेपाल हिंसा को Congress party से जोड़ा
बिहार (Bihar) के उप-मुख्यमंत्री (Deputy CM) सम्राट चौधरी ने हाल ही में एक अनोखा बयान दिया। उन्होंने नेपाल में हुई हिंसा को कांग्रेस पार्टी (Congress party) द्वारा वर्षों पहले लिए गए फैसलों से जोड़ा। विदेशी संबंधों और ऐतिहासिक दोषारोपण पर केंद्रित इस बयान ने कई लोगों को चौंका दिया है। यह एक अजीबोगरीब पहलू है, खासकर जब राज्य में चुनाव नजदीक हैं।
चौधरी के दिमाग में इस समय नेपाल या पाकिस्तान क्यों है? बिहार अपनी ही गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है। टूटी सड़कें, व्यापक बेरोजगारी और नागरिकों के रोज़मर्रा के संघर्ष ध्यान देने की माँग करते हैं। ये वो समस्याएँ हैं जो बिहार के लोगों को प्रभावित कर रही हैं। उनकी तुलना दूर-दराज़ के देशों से करना और किसी पूर्व राजनीतिक दल को दोष देना, एक बड़ा भटकाव लगता है।
भाजपा अक्सर नेहरू और इंदिरा गांधी जैसे पूर्व नेताओं का ज़िक्र करती है। चौधरी का बयान इसी पैटर्न पर खरा उतरता है। यह ध्यान भटकाने की एक रणनीति लगती है। वे राजनीति की पुरानी रणनीति अपना रहे हैं।
Bihar के Deputy CM का नेपाल-पाकिस्तान बयान: सम्राट चौधरी का बयान
सम्राट चौधरी का मानना है कि नेपाल और पाकिस्तान अगर भारत का हिस्सा होते तो उनकी स्थिति बेहतर होती। उन्होंने कहा कि अगर नेपाल अभी भी “भारत का अपना” होता, तो वह शांतिपूर्ण और समृद्ध होता। इसी तरह, उन्होंने सुझाव दिया कि पाकिस्तान भी आज भारत के साथ मिलकर फल-फूल रहा होता।
चौधरी ने कांग्रेस की पिछली नीतियों को इन देशों के अलग होने का कारण बताया। उनका मानना है कि इन्हीं फैसलों के कारण आज समस्याएँ पैदा हुई हैं। उनका मानना है कि मौजूदा अशांति कांग्रेस की “गलतियों” का सीधा नतीजा है।
“कांग्रेस की गलती” कथा
उप-मुख्यमंत्री साफ़ तौर पर कांग्रेस पार्टी पर दोष मढ़ रहे हैं। उनका इशारा है कि अगर कांग्रेस ने अलग तरीक़े से काम किया होता, तो नेपाल और पाकिस्तान में हालात शांतिपूर्ण होते। वह एक अलग इतिहास की तस्वीर पेश कर रहे हैं। एक ऐसा इतिहास जहाँ ये देश एकीकरण के ज़रिए समृद्धि समृद्ध थे।
उनका कहना है कि कांग्रेस की कार्रवाइयों ने मौजूदा अराजकता पैदा की है। यह कहानी वर्तमान शासन या मौजूदा कूटनीतिक प्रयासों पर चर्चा करने से बचती है। यह तात्कालिक ज़िम्मेदारियों से ध्यान हटाने का एक तरीका है।
ऐतिहासिक संदर्भ: नेहरू, इंदिरा और विभाजन
इतिहास गवाह है कि एक बार नेपाल भारत को देने की पेशकश की गई थी। राजा त्रिभुवन ने नेपाल को भारत का एक प्रांत बनाने की पेशकश की थी। हालाँकि, पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था।
नेहरू का तर्क साफ़ था: नेपाल एक स्वतंत्र राष्ट्र है। उनका मानना था कि इसे संप्रभुता प्राप्त होनी चाहिए। यह निर्णय नेपाल के आत्मनिर्णय के अधिकार का सम्मान करता था।
इंदिरा गांधी का दृष्टिकोण और सिक्किम का विलय
प्रणब मुखर्जी की आत्मकथा, “द प्रेसिडेंशियल इयर्स”, एक अलग दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। उन्होंने लिखा है कि इंदिरा गांधी नेपाल की स्थिति को अलग तरह से संभाल सकती थीं। वे निर्णायक कार्रवाई के लिए जानी जाती थीं।
उन्होंने सिक्किम के भारत में विलय की देखरेख की। यह क्षेत्रों के एकीकरण की उनकी इच्छा को दर्शाता है। हालाँकि, उन्होंने बांग्लादेश को एक अलग राष्ट्र के रूप में भी मान्यता दी। उनका दृष्टिकोण अक्सर व्यावहारिक रहा।
बिहार के अनसुलझे मुद्दे:
चौधरी नेपाल और पाकिस्तान की चर्चा करते हैं, वहीं बिहार को स्थानीय ज़रूरतों का सामना करना पड़ रहा है। सड़कें खस्ताहाल हैं। युवा रोज़गार पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। कई लोग काम की तलाश में अपना घर छोड़ने को मजबूर हैं।
राज्य की शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था बदहाल है। लोग रोज़ाना परेशान हो रहे हैं। यही बिहार के नागरिकों को प्रभावित करने वाले असली मुद्दे हैं। उप-मुख्यमंत्री का ध्यान भटकता हुआ प्रतीत होता है।
शासन और जवाबदेही का प्रश्न
नेपाल की समस्याओं के लिए चौधरी कांग्रेस को क्यों ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं? बिहार की समस्याओं का क्या? क्या यहाँ भी टूटी सड़कों और बेरोज़गारी के लिए कांग्रेस ज़िम्मेदार है? यह कहानी एक राजनीतिक स्टंट लगती है।
किसी पुरानी पार्टी को दोष देना आसान तरीका है। इससे मौजूदा सरकार की जवाबदेही से बचा जा सकता है। बिहार को ऐसे नेताओं की ज़रूरत है जो अपने भविष्य पर ध्यान केंद्रित करें।
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