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‘डेटा सस्ता, नौकरी महंगी’ — समस्तीपुर रैली में पीएम मोदी के बयान पर बवाल, युवाओं ने कहा- हमें रील्स नहीं, रोजगार चाहिए!
समस्तीपुर रैली से शुरू हुआ नया चुनावी नैरेटिव
बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखें घोषित होते ही प्रदेश का सियासी तापमान चढ़ गया।
इसी बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समस्तीपुर में एनडीए की पहली रैली की, जहां उनका एक बयान चर्चा का केंद्र बन गया।
मोदी ने कहा —
“आज भारत में 1 जीबी डेटा की कीमत एक कप चाय से भी कम है। ये ‘चाय वाले’ ने सुनिश्चित किया है।”
उनका इशारा डिजिटल इंडिया की सफलता की तरफ था। लेकिन जनता के बीच यह बात उलटी पड़ती दिखी —
क्योंकि लोगों ने पूछा, “डेटा सस्ता हो गया, पर नौकरी कब सस्ती होगी?”
‘चाय वाला’ से ‘डेटा वाला’ तक — मोदी की नई पिच
प्रधानमंत्री ने कहा कि एनडीए सरकार ने डिजिटल क्रांति का रास्ता खोला।
अब बिहार का युवा रील्स बनाता है, कंटेंट तैयार करता है, और दुनिया से जुड़ा है।
उनके मुताबिक, “रील्स और रचनात्मकता, एनडीए सरकार की देन हैं।”
लेकिन सवाल उठता है — क्या सस्ता डेटा ही विकास का प्रतीक है, या रोजगार भी उसका हिस्सा होना चाहिए?
सोशल मीडिया पर विरोध की लहर
रैली खत्म होते ही सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई।
X (ट्विटर) पर हैशटैग #DataVsJobs ट्रेंड करने लगा।
युवाओं ने लिखा —
“रील्स नहीं, रोटियाँ चाहिए।”
“1 जीबी डेटा से पेट नहीं भरता, सर।”
विपक्ष ने भी तुरंत हमला बोला।
राजद और कांग्रेस नेताओं ने कहा कि मोदी सरकार युवाओं की असली समस्या — बेरोजगारी — से ध्यान भटका रही है।
बिहार की हकीकत: 15% बेरोजगारी, डेटा से नहीं चलती ज़िंदगी
ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में युवाओं की बेरोजगारी दर करीब 15% है।
राज्य के लाखों युवा अभी भी स्थायी नौकरी की तलाश में हैं।
ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट पहुंच बढ़ी है, लेकिन रोजगार के अवसर नहीं।
लोग कहते हैं —
“सस्ता डेटा अच्छा है, पर अब पेट भरने के लिए ‘डाटा’ नहीं, ‘ड्यूटी’ चाहिए।”
डिजिटल इंडिया की उपलब्धियाँ और उसकी सीमाएँ
सच है कि पिछले दस वर्षों में भारत में इंटरनेट क्रांति आई है।
2014 में जहां 25 करोड़ इंटरनेट यूज़र थे,
आज ये संख्या 80 करोड़ से ऊपर है।
डेटा की कीमतें दुनिया में सबसे सस्ती हैं।
लेकिन ग्रामीण भारत में अभी भी करीब 40% आबादी ऑफलाइन है।
बिहार में डिजिटल ट्रेनिंग और आईटी इंडस्ट्री के अवसर सीमित हैं।
विश्लेषण: डेटा बनाम डिग्री की राजनीति
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पीएम मोदी का “सस्ता डेटा” बयान युवाओं को डिजिटल राष्ट्रवाद के नाम पर जोड़ने की कोशिश है।
लेकिन बिहार की राजनीति में “रोजगार” सबसे बड़ा मुद्दा रहा है।
एनडीए इस बार डिजिटल उपलब्धियों को हाइलाइट कर रहा है,
जबकि विपक्ष बेरोजगारी को लेकर जमीनी असंतोष को हवा दे रहा है।
विपक्ष की प्रतिक्रिया: “मोदी जी, रील्स नहीं, रियलिटी दिखाइए”
राजद प्रवक्ता ने कहा —
“मोदी जी ने युवाओं को 15 लाख की जगह अब 1 जीबी डेटा देने का वादा किया है।”
कांग्रेस नेता ने तंज कसा —
“बिहार के युवा बेरोजगारी से जूझ रहे हैं, और पीएम उन्हें रील्स बनाने की सलाह दे रहे हैं।”
ये बयान विपक्ष के लिए हथियार बन गया है, खासकर उन जिलों में जहां बेरोजगारी प्रमुख मुद्दा है।
मतदाताओं की नई सोच: ‘डेटा नहीं, दिशा चाहिए’
2024 के बाद देश का मतदाता बदल चुका है।
युवा अब सिर्फ स्कीम या सब्सिडी से नहीं, बल्कि सुरक्षित भविष्य चाहता है।
रील्स बनाना भले मनोरंजक हो, पर स्थायी नौकरी और सम्मानजनक आय ही चुनावी मुद्दा बनेगी।
निष्कर्ष: रैली से उठे सवाल, जो 2025 के चुनाव तय करेंगे
समस्तीपुर की रैली ने बिहार चुनाव का नैरेटिव बदल दिया है।
पीएम मोदी का “डेटा सस्ता” बयान राजनीतिक बहस का विषय बन चुका है।
मुख्य बातें:
🔹 डेटा सस्ता हुआ, लेकिन बेरोजगारी ऊंची है।
🔹 युवा डिजिटल हैं, पर आर्थिक रूप से असुरक्षित।
🔹 विकास का नया पैमाना तय हो रहा है — रील्स नहीं, रोजगार।
बिहार की जनता अब यह तय करेगी कि सस्ता डेटा ज्यादा मायने रखता है या महंगा सपना — स्थायी नौकरी।
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