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बिहार चुनाव के नतीजे 2025 (Bihar Election Result 2025)आते ही एनडीए ने बहुमत हासिल कर लिया। नीतीश कुमार की सरकार बनने की उम्मीद है। लेकिन इस जीत पर एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। चुनाव आयोग के आंकड़ों में मतदाताओं की संख्या अचानक बढ़ गई। 6 अक्टूबर को 7.42 करोड़ वोटर बताए गए थे। 11 नवंबर को यह संख्या 7.45 करोड़ हो गई। यानी सिर्फ एक महीने में 3 लाख वोटर कैसे जुड़ गए? यह गड़बड़ी एनडीए की जीत को संदेह की नजर से देखने पर मजबूर कर रही है। क्या चुनाव निष्पक्ष था या कुछ छिपा खेल हुआ? आइए इसकी गहराई समझें।
चुनाव आयोग के आधिकारिक आंकड़ों में बड़ा अंतर
चुनाव आयोग ने बिहार चुनाव की घोषणा की। सब कुछ साफ लग रहा था। लेकिन आंकड़ों ने सबको चौंका दिया। 6 अक्टूबर को प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई। चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कहा। बिहार में 7.42 करोड़ मतदाता हैं। इसमें पुरुष 3.92 करोड़ और महिलाएं 3.50 करोड़ हैं। यह आंकड़ा चुनाव की तैयारी का आधार बना। कोई बदलाव की बात नहीं हुई। सब स्थिर लग रहा था। लेकिन बाद में सब उलट गया।
मतदान समाप्ति के बाद का बढ़ा हुआ आंकड़ा (11 नवंबर)
11 नवंबर को आखिरी चरण का मतदान खत्म हुआ। चुनाव आयोग की वेबसाइट पर नया आंकड़ा आया। अब मतदाता 7.45 करोड़ बताए गए। यानी 3 लाख की बढ़ोतरी हो गई। सिर्फ 36 दिनों में यह कैसे संभव है? सामान्य रूप से मतदाता सूची में थोड़ा बदलाव होता है। लेकिन इतनी तेजी से 3 लाख? यह सवाल सबके मन में है।
ज्ञानेश कुमार और वीडियो लीक का विवाद
ज्ञानेश कुमार का एक वीडियो वायरल हो गया। इसमें वे 7.42 करोड़ मतदाताओं की बात कर रहे हैं। प्रेस कॉन्फ्रेंस में सब कुछ साफ था। लेकिन अब आयोग पर दबाव है। विपक्ष कह रहा है कि यह मिलीभगत का मामला है। वीडियो सबूत बन गया है। चुनाव आयोग को सफाई देनी होगी। अन्यथा संदेह बढ़ता जाएगा। क्या यह सिर्फ गलती थी या कुछ और?
विपक्षी नेताओं और विशेषज्ञों द्वारा उठाए गए गंभीर सवाल
विपक्ष ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया। कांग्रेस के नेता सबसे आगे हैं। वे मीडिया पर भी सवाल कर रहे हैं। पूर्व विंग कमांडर अनुमा आचार्य ने बड़ा बवाल मचाया। उन्होंने सोशल मीडिया पर लंबा पोस्ट लिखा। कहा कि 6 अक्टूबर को 7.42 करोड़ मतदाता थे। 11 नवंबर को 7.45 करोड़ हो गए।
3 लाख से ज्यादा का फर्क। मीडिया एंकर इस पर चर्चा नहीं कर रहे। वे बात को टाल रहे हैं। अनुमा ने कहा कि वेबसाइट पर सब साफ दिख रहा है। यह छिपा नहीं सकता।
मीडिया की भूमिका: एंकर्स सवालों को नजरअंदाज कर रहे हैं।
प्रभाव: जनता को सच्चाई पता चलनी चाहिए।
एक अन्य कांग्रेस नेता ने ट्वीट किया। कहा कि यह ट्विस्ट नहीं, पूरा गणित पलट गया। मतदाता रहस्यमय हो गए। जैसे चुनाव नतीजे।
अगर मतदाता गायब-भूत हो जाएं, तो चुनाव पर भरोसा कैसे? एनडीए की क्लीन स्वीप जीत पर सवाल उठे। विपक्ष कहता है कि यह पारदर्शिता की कमी है। 67% मतदान हुआ। लेकिन कुल संख्या बढ़ी। यह फिट नहीं बैठता। विशेषज्ञ पूछ रहे हैं कि क्या सब कुछ साफ था?
पिछले चुनावों से वोटर लिस्ट में हेरफेर का पैटर्न
बिहार का यह मामला नया नहीं। पहले भी ऐसे उदाहरण आए। राहुल गांधी ने इन पर आवाज उठाई। हर राज्य में पैटर्न दिखता है।
राहुल गांधी ने कर्नाटक और हरियाणा के चुनावों पर प्रेस कॉन्फ्रेंस की। वहां वोटर लिस्ट में गड़बड़ी पाई गई। फर्जी नाम जोड़े गए। एक फोटो पर कई वोटर। यहां तक कि विदेशी फोटो का इस्तेमाल। ब्राजील की महिला की तस्वीर हरियाणा में चली। 22 महिलाओं के नाम पर। राहुल ने कहा कि यह सिस्टम का दुरुपयोग है। बिहार में भी वही हो सकता है।
- कर्नाटक उदाहरण: पता न होने वाले वोटर।
- हरियाणा केस: डुप्लिकेट फोटो का खेल।
- राष्ट्रीय प्रभाव: चुनाव नतीजे प्रभावित होते हैं।
- फर्जी वोटर्स और प्रतिशत बढ़ोतरी का संबंध
3 लाख वोटरों की बढ़ोतरी से मतदान प्रतिशत बदल जाता। 67% टर्नआउट पर सवाल। क्या नेपाल से पर्यटक आ गए? या धरती ने नए वोटर उगाए? यह मजाक नहीं। फर्जी वोटरों से नतीजे पलट जाते। बिहार में एनडीए को फायदा मिला। लेकिन ग्राउंड रिपोर्ट कुछ और कहती है।
पारदर्शिता बनाम जनादेश का विचलन
चुनाव में जनता की आवाज सबसे ऊपर। लेकिन अगर नतीजे उलट जाएं, तो लोकतंत्र कमजोर होता। बिहार में यही हुआ लगता है।
ग्राउंड पर जनादेश अलग था। नतीजों में पूरी तरह बदलाव। उत्तर और दक्षिण ध्रुव जैसा फर्क। यह निष्पक्ष नहीं। पारदर्शिता गायब लगती है। लोग पूछ रहे हैं कि असली मंदेट क्या था?
चुनाव आयोग से जवाब की मांग
चुनाव आयोग को सफाई देनी चाहिए। 3 लाख वोटर एक महीने में कैसे? अगर जवाब न मिला, तो पूरा प्रोसेस संदिग्ध। लोकतंत्र के लिए जरूरी है। जनता इंतजार कर रही। क्या होगा अगला कदम?
Conclusion: एनडीए की जीत पर मंडराता चुनावी अनिश्चितता का बादल
बिहार चुनाव 2025 में 3 लाख वोटर्स की रहस्यमय बढ़ोतरी ने सबको हिला दिया। एनडीए की जीत मजबूत लगती है। लेकिन आंकड़ों का फर्क पारदर्शिता पर सवाल खड़ा करता। ज्ञानेश कुमार का वीडियो सबूत है। विपक्ष के आरोप गंभीर हैं। पिछले चुनावों का पैटर्न दोहराया गया। ग्राउंड जनादेश और नतीजों में फर्क चिंता की बात। चुनाव आयोग की विश्वसनीयता दांव पर है। यह सिर्फ छोटी गलती नहीं। लोकतंत्र की जड़ हिल गई। अगर सफाई न आई, तो बिहार मेंडेट वैध नहीं माने जाएंगे।
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