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Bihar Election Results: Journo Mirror एग्जिट पोल का चौंकाने वाला अनुमान, महागठबंधन की बन रही सरकार

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बिहार चुनाव परिणाम (Bihar Election Results): अंतिम चरण का मतदान खत्म होते ही एग्जिट पोल्स की बौछार लग गई। ज्यादातर सर्वे कह रहे हैं कि एनडीए फिर से साफ बहुमत लाएगा। लेकिन एक पोल ने सबको चौंका दिया है। जर्नल मिरर (Journo Mirror) का एग्जिट पोल बाकी सबके उलट नतीजे बता रहा है। यह खबर राजनीतिक गलियारों में तूफान ला रही है। क्या महागठबंधन असल में आगे निकल गया है? आइए देखें इस विरोधाभास की पूरी कहानी।

एग्जिट पोल्स की आम राय और बहुमत का आंकड़ा

बिहार विधानसभा में कुल 243 सीटें हैं। बहुमत के लिए कम से कम 122 सीटें चाहिए। ज्यादातर एग्जिट पोल्स एनडीए को 150 से ज्यादा सीटें देते दिखा रहे हैं। यह रुझान पिछले कुछ चरणों के मतदान से मजबूत लग रहा था। एनडीए के नेता नितीश कुमार और उनके साथी आत्मविश्वास से भरे नजर आ रहे थे।

लेकिन एग्जिट पोल्स हमेशा सटीक नहीं होते। कभी-कभी वे गलत साबित होते हैं। बिहार जैसे राज्य में जाति और स्थानीय मुद्दे बड़ी भूमिका निभाते हैं। इस बार के पोल्स में एनडीए की जीत को तय माना जा रहा था। लेकिन एक अलग आवाज ने सबका ध्यान खींचा है।

यह आम राय राजनीतिक पार्टियों के प्लान को प्रभावित कर रही है। एनडीए समर्थक जश्न मना रहे थे। महागठबंधन वाले चुप थे। अब देखना है कि यह राय कितनी टिकती है।

जर्नल मिरर का अप्रत्याशित सर्वेक्षण: महागठबंधन की बड़ी बढ़त

जर्नल मिरर का एग्जिट पोल बाकी सर्वेक्षणों से बिल्कुल अलग है। इसमें महागठबंधन को 130 से 140 सीटें मिलने का अनुमान है। यह संख्या बहुमत के 122 से कहीं ऊपर है। मतलब महागठबंधन अकेले सरकार बना सकता है।

एनडीए को सिर्फ 100 से 110 सीटें दिख रही हैं। यह अंतर काफी बड़ा है। जर्नल मिरर ने शायद ग्रामीण इलाकों पर ज्यादा फोकस किया। उनके सैंपल में छोटे शहरों और गांवों के वोटर ज्यादा शामिल थे।

यह अनुमान चौंकाने वाला है। महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव को इससे बल मिला। वे कह रहे हैं कि जनता ने बदलाव चुना है। एनडीए वाले इसे खारिज कर रहे हैं। लेकिन यह पोल बहस छेड़ रहा है।

महागठबंधन: 130-140 सीटें (बहुमत से ऊपर)
एनडीए: 100-110 सीटें (कमी)
अन्य: बाकी सीटें बिखरी हुईं

यह डेटा राजनीति को नया मोड़ दे रहा है। क्या जर्नल मिरर सही साबित होगा? इंतजार ही कर सकते हैं।

मुख्यधारा के रुझानों से विचलन के निहितार्थ

जर्नल मिरर का पोल क्यों अलग है? शायद उनकी पद्धति में फर्क है। बाकी पोल्स शहरों पर ज्यादा भरोसा करते हैं। जर्नल मिरर ने गांवों के वोटरों को प्राथमिकता दी। बिहार में 90 फीसदी लोग ग्रामीण हैं।

यह विचलन बड़े उलटफेर की ओर इशारा करता है। महागठबंधन ने नौकरी और विकास के मुद्दे उठाए। युवा वोटर उनके साथ हो सकते हैं। एनडीए को कोविड हैंडलिंग पर सवाल उठे। जर्नल मिरर का सैंपल साइज छोटा लेकिन गहरा लगता है।

राजनीतिक हलचल बढ़ गई है। पार्टियां अब सतर्क हो रही हैं। विश्लेषक कहते हैं कि एग्जिट पोल्स में 10-15 फीसदी गलती हो सकती है। लेकिन यह एक संकेत है। क्या जातिगत समीकरण बदल गए?

यह सब मिलकर बिहार चुनाव 2025 को रोचक बना रहा है। मुख्यधारा के रुझान हिल सकते हैं।

राजनीतिक भविष्य पर जर्नल मिरर पोल का संभावित प्रभाव

वास्तविक नतीजे आने में समय है। लेकिन जर्नल मिरर का पोल दलों के मनोबल पर असर डाल रहा। महागठबंधन वाले उत्साहित हैं। वे सोशल मीडिया पर सक्रिय हो गए। एनडीए समर्थक इसे फर्जी बता रहे हैं।

मीडिया इसे हेडलाइन बना रहा। चैनल डिबेट कर रहे हैं। विश्लेषक कहते हैं कि यह पोल प्रचार का हथियार बनेगा। अगर महागठबंधन जीता तो जर्नल मिरर हीरो बनेगा। हार गए तो भूल जाएंगे।

भविष्य में इसका असर गठबंधन पर पड़ेगा। बिहार की राजनीति हमेशा अप्रत्याशित रहती है। 2015 में भी ऐसा उलटफेर हुआ था। अब फिर वही संभावना।

यह पोल गठबंधनों को मजबूत कर सकता है। या तोड़ भी सकता है। समर्थक इंतजार कर रहे। मीडिया कवरेज बढ़ गई। परिणाम आने पर इसकी सच्चाई खुलेगी। क्या यह सही साबित होगा? देखते हैं।

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