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Bihar election 2025: सीट बंटवारे के संकट में एनडीए, मांझी ने चिराग और बीजेपी को दी चुनौती
बिहार का राजनीतिक माहौल तनाव से भरा है। आगामी बिहार चुनाव 2025 (Bihar elections 2025) के लिए बातचीत तेज़ हो रही है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के भीतर सहयोगी दल सीटों के बंटवारे को लेकर आपस में भिड़ रहे हैं। इससे गठबंधन में गंभीर दरार पैदा हो रही है। चिराग पासवान हफ़्तों से अकेले चुनाव लड़ने के संकेत दे रहे थे। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि उनका ध्यान बिहार पर है। अब जीतन राम मांझी सुर्खियों में आ गए हैं। वे भाजपा पर दबाव बढ़ा रहे हैं। मांझी अच्छी-खासी सीटें चाहते हैं। वे स्वतंत्र चुनाव लड़ने के संकेत भी दे रहे हैं। यह जटिल सत्ता संघर्ष को दर्शाता है। इसका असर सभी की चुनावी योजनाओं पर पड़ता है।
Bihar elections 2025: जीतन राम मांझी की सीट मांग और रणनीति
जीतन राम मांझी ने एक स्पष्ट मांग रखी है। वह चाहते हैं कि भाजपा उनकी पार्टी को 40 सीटें दे। मांझी का कहना है कि सम्मानजनक जीत के लिए यही ज़रूरी है। इसी से उनका प्रभाव भी बढ़ेगा। उनका मानना है कि 20 से 22 सीटें जीतना ही काफ़ी होगा। इससे उन्हें अपने समुदाय की ज़रूरतों के लिए लड़ने का मौका मिलेगा। इससे वह यह सुनिश्चित कर सकेंगे कि सरकार में उनकी आवाज़ सुनी जाए।
भाजपा का अनुमानित सीट और मांझी की प्रतिक्रिया
भाजपा के सूत्र एक अलग योजना का सुझाव दे रहे हैं। खबर है कि वे नीतीश कुमार की जेडी(यू) को भाजपा से ज़्यादा सीटें देने की योजना बना रहे हैं। चिराग पासवान को लगभग 20 सीटें मिल सकती हैं। लेकिन मांझी की पार्टी को सिर्फ़ 8 से 10 सीटें मिलने की उम्मीद है। लगता है मांझी को यह खबर लग गई है। उन्हें एहसास हो गया है कि भाजपा उनकी पार्टी की पहुँच सीमित करना चाहती है। तभी उन्होंने विरोध शुरू कर दिया। उन्होंने अपनी पार्टी के मज़बूत संगठन का ज़िक्र किया। उन्होंने ऐलान किया कि वे सभी 243 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने को तैयार हैं।
चिराग पासवान बनाम जीतन राम मांझी: गठबंधन की खींचतान
मांझी और चिराग पासवान के बीच गहरी प्रतिद्वंद्विता है। खबरों के अनुसार, मांझी को लगता है कि पासवान बहुत ज़्यादा सीटें ले सकते हैं। इससे मांझी की पार्टी के लिए सीटें कम रह जाएँगी। राजनीतिक समीकरण अक्सर जाति से जुड़े होते हैं। मांझी को मुसहर समुदाय का समर्थन प्राप्त है। यह समूह लगभग 3% मतदाताओं का है। पासवान का आधार दुसाध समुदाय है। ये मतदाता लगभग 5% से 5.5% हैं।
ऐतिहासिक संदर्भ और बदलते गठबंधन
जीतन राम मांझी का राजनीतिक इतिहास लंबा है। वे कभी नीतीश कुमार के बेहद करीबी थे। नीतीश कुमार ने उन्हें मुख्यमंत्री भी बनाया था। कुछ समय तक मांझी बिहार में एक जानी-मानी हस्ती रहे। लेकिन उनके रिश्ते में खटास आ गई। इसके बाद मांझी ने नीतीश कुमार की पार्टी छोड़ दी। उन्होंने अपनी पार्टी बनाई और एनडीए में शामिल हो गए। मांझी खुद को एक अनुभवी नेता बताते हैं। चिराग पासवान भी कहते हैं कि उनके पास व्यापक राजनीतिक अनुभव है। वे एनडीए के भीतर रणनीतिक रूप से अपनी स्थिति बनाए हुए हैं।
भाजपा की कठिन राह: सहयोगियों और नीतीश कुमार में संतुलन
ऐसा लगता है कि भाजपा की रणनीति नीतीश कुमार की पार्टी जदयू को भाजपा के मुकाबले एक सीट ज़्यादा देने की है। इससे पता चलता है कि भाजपा प्रमुख सहयोगी बनी रहना चाहती है। इस रणनीति से स्वाभाविक रूप से छोटे सहयोगियों की सीटें सीमित हो जाती हैं। इससे ऐसी स्थिति पैदा होती है कि मांझी और पासवान को कम सीटों के लिए संघर्ष करना पड़ता है।
मांझी को मनाने की भाजपा की कोशिशें
मांझी द्वारा अकेले लड़ने की बात कहने के बाद, भाजपा नेताओं ने उन्हें शांत करने की कोशिश की। उन्होंने बातचीत करके उन्हें मनाने की कोशिश की। बाद में, मांझी ने पत्रकारों से बात की। उन्होंने कहा कि उन्होंने यह बात अपने पार्टी कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाने के लिए कही थी। हालाँकि, उन्होंने अपनी तैयारी की भी पुष्टि की। उनकी योजना अगली एनडीए बैठक में अपनी माँगें रखने की है।
भविष्य के परिदृश्य और चुनावी गणित
9 सितंबर के बाद एनडीए की एक अहम बैठक तय है। यह तारीख उपराष्ट्रपति चुनाव के बाद है। यह बैठक सीट बंटवारे को अंतिम रूप देने के लिए अहम हो सकती है। मांझी इस बैठक पर भरोसा कर रहे हैं। वे अपनी सीटों की मांग औपचारिक रूप से रखेंगे। अगर उनकी उम्मीदें पूरी नहीं हुईं तो क्या होगा?
मांझी के स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने की संभावना
अगर जीतन राम मांझी अकेले चुनाव लड़ने का फैसला करते हैं, तो क्या होगा? उनकी पार्टी के पास अभी एक सांसद है। चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी के पाँच सांसद हैं। मांझी के सिर्फ़ 8 से 10 सीटें स्वीकार करने की संभावना कम ही है। हो सकता है कि वह अपनी अलग राह चुनें। सबसे ज़्यादा संभावना यही है कि मांझी को बची हुई सीटें मिल जाएँ। ये सीटें जेडी(यू), बीजेपी और संभवतः चिराग पासवान को मिलने के बाद मिलेंगी। उपेंद्र कुशवाहा भी कुछ हिस्सा ले सकते हैं।
निष्कर्ष
सीट बंटवारे को लेकर चल रहा विवाद बिहार एनडीए के लिए बड़ी मुश्किलें खड़ी कर रहा है। जीतन राम मांझी और चिराग पासवान इसके केंद्र में हैं। जीतन राम मांझी चालाकी से चुनाव लड़ रहे हैं। वह स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने की धमकी दे रहे हैं। इससे पता चलता है कि वह ज़्यादा सीटें पाने को लेकर गंभीर हैं। वह अपने समुदाय का भी अच्छा प्रतिनिधित्व करना चाहते हैं। भाजपा के सामने कड़ी चुनौती है। उन्हें अपने सहयोगियों की माँगों में संतुलन बिठाना होगा। उन्हें नीतीश कुमार को भी खुश रखना होगा। आगामी एनडीए बैठक में गठबंधन की रणनीति तय होने की संभावना है। इससे यह भी पता चल सकता है कि क्या नेता अकेले चुनाव लड़ेंगे।
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