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Bihar Elections: चिराग, मांझी, कुशवाहा को सिर्फ 38 सीटें? तीनों सहयोगी बीजेपी से नाराज़ क्यों?
बिहार चुनाव (Bihar Elections) की तारीखें तय हो चुकी हैं, मगर सबसे ज्यादा सुर्खियां सीट शेयरिंग पर अटकी हैं। लालू प्रसाद यादव ने माहौल गरमा दिया है। उनका बयान, “छ और 11, एनडीए 9 दो 11”, साफ इशारा करता है कि वे एनडीए की विदाई देख रहे हैं। उधर, एनडीए के भीतर खींचतान खुलकर सामने है। चिराग पासवान फोन नहीं उठा रहे, मीटिंग से दूर हैं, और सम्मानजनक सीटों की जिद पर टिके हैं। मांझी और कुशवाहा भी कम नहीं, दोनों भी ज्यादा सीटों की मांग पर अड़े हैं। बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती यही है कि किसे कितना और कब तक मनाया जाए, क्योंकि समय बहुत कम है।
Bihar Elections: तारीखें पक्की, बयान सख्त, हलचल तेज
चुनाव नजदीक है, पर एनडीए में तालमेल कमजोर दिख रहा है। लालू यादव के तंज ने विपक्ष की ऊर्जा बढ़ाई है और सत्ता गठबंधन में बेचैनी भी।
- लालू यादव का दावा: एनडीए का पतन तय माना जा रहा है।
- वास्तविकता: सहयोगियों की सीट मांगें टकरा रही हैं, फैसले अटके हैं।
- वोटिंग टाइमलाइन: पहले चरण की वोटिंग 6 नवंबर से, मतलब प्रचार के लिए अब बहुत कम वक्त।
जमीनी रिपोर्ट यह बताती है कि एनडीए में दरार जैसी स्थिति है। जेडीयू अपनी सीटें पहले सुरक्षित करने की रणनीति पर है, फिर बीजेपी पर छोड़ देती है कि बाकी सहयोगियों से वह कैसे निपटे। इसी बीच चिराग पासवान का not reachable होना रहस्य और दबाव, दोनों बढ़ा रहा है।
चिराग पासवान का साइलेंट प्रेशर: कॉल्स बंद, मीटिंग से दूरी
चिराग पासवान ने हाल में एनडीए की अहम बैठकें छोड़ दीं। उसी समय उनका फोन भी नहीं लग रहा था। संदेश साफ है, दबाव बनाओ और बेहतर डील लो।
- हालिया बैठक में चिराग अनुपस्थित रहे, संपर्क से बाहर रहे।
- एनडीए के नेता, जिन्हें बिहार की जिम्मेदारी दी गई है, जैसे धर्मेंद्र चौहान और विनोद तावड़े, उन्हें मनाने पहुंचे।
- चर्चा चली कि 20 से 25 सीटों का ऑफर हो सकता है, पर चिराग का रुख कड़ा रहा।
लोजपा (रामविलास) की लाइन साफ है। जेडीयू से कोई बात नहीं, केवल बीजेपी से सीधे सीट शेयरिंग पर बात होगी। यह स्टैंड उन्हें अलग पहचान देता है और जेडीयू पर सार्वजनिक असहमति भी दिखाता है।
सम्मानजनक सीटों की मांग: 40 से 54 तक की गूंज
चिराग के मंचों पर नारे गूंज रहे हैं, युवा बिहार, युवा बिहारी, और बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट। उनकी टीम और समर्थक उन्हें सीएम फेस की तरह पेश करने की कोशिश में हैं। पत्रकारों ने पूछा तो चिराग ने कहा, अगर कार्यकर्ता चाहते हैं, तो इसमें गलत क्या है?
- लोकसभा में उन्होंने 5 सीटें जीतीं, उससे आत्मविश्वास बढ़ा।
- विधानसभा में उनके पास विधायक नहीं हैं, इसलिए वे pressure politics खेल रहे हैं।
- आकलन यही है कि विधानसभा में स्ट्राइक रेट लोकसभा जैसा नहीं आएगा।
- इसी वजह से, उनके पास खोने को कम, पाने को ज्यादा है। अकेले उतरेंगे तो एनडीए को नुकसान, साथ रहे तो ज्यादा सीटें मिल सकती हैं।
छिपी महत्वाकांक्षा या खुला इशारा: सीएम कुर्सी पर नज़र
चिराग की राजनीति संदेशों के जरिए चल रही है। पार्टी हैंडल, परिवार और स्थानीय मंचों से उनकी दावेदारी की भनक मिलती है। उनके जीजा अरुण भारती भी उसी रुख पर चलते दिखे हैं। परिवार के एक और सिरे से संकेत आया कि चिराग सीएम बनें, तो बेहतर।
प्रशांत किशोर को लेकर चिराग ने कभी नकारात्मक बात नहीं कही। उलटे उन्होंने उनकी तारीफ की, कहा कि वे नई सोच के साथ आए हैं, जाति और नफरत की राजनीति से दूर रहते हैं, और बिहार को आगे बढ़ाने का विजन रखते हैं।
- नई सोच और टोन
- विकास केंद्रित बात
- चिराग की लाइन से मेल खाने वाली भाषा
अरुण भारती से जब पीके के आरोपों पर पूछा गया, जो अशोक चौधरी और सम्राट चौधरी पर लगाए गए हैं, तो उन्होंने चतुराई से बॉल उन्हीं पार्टियों के पाले में डाल दी। मतलब, पीके पर वार नहीं, मुद्दे पर बात।
एनडीए छोड़ने के विकल्प: जन सुराज या कांग्रेस?
पटना की फिजा में यह चर्चा तेज है कि चिराग कांग्रेस से संवाद में हैं, साथ ही जन सुराज के साथ गठबंधन की भी अटकल है। पीके पर चिराग या उनके घर से एक भी तीखा बयान नहीं, इससे संकेत मजबूत होते हैं। 2020 में उन्होंने अकेले 243 सीटों पर लड़ने की हिम्मत दिखाई थी। यह कार्ड फिर खेला जा सकता है, जिससे एनडीए को चुनावी नुकसान होगा, भले उन्हें तत्काल लाभ न मिले।
संभावित रास्ते, जो वे टेबल पर रखे हुए हैं:
- 40 या उससे ज्यादा सीटें मिलें तो एनडीए में रहना
- जन सुराज के साथ गठबंधन
- 243 सीटों पर अकेला मुकाबला
- महागठबंधन की तरफ झुकाव
बाकी सहयोगी भी सख्त: मांझी और कुशवाहा ने बढ़ाई मुश्किल
जितन राम मांझी 15 से 20 सीटों की मांग पर डटे हैं। हाल की एनडीए मीटिंग में वे महज 15 मिनट में उठकर चले गए और दिल्ली निकल गए। यह साफ नाराजगी का संकेत था। उधर, उपेंद्र कुशवाहा भी पीछे नहीं, उनका लॉजिक सरल है, जब दूसरे ज्यादा मांग रहे, तो हम क्यों नहीं।
सीटों का गणित यहीं फंस रहा है। जेडीयू 100 से 105 सीटें अपनी तरफ खींच रही है। बीजेपी भी 100 सीटें अपने खाते में रखने की कोशिश में है। ऐसे में सहयोगियों के लिए 40 से भी कम सीटें बचती हैं। इसी स्लॉट में चिराग अकेले 40 से 45 सीटें मांग रहे हैं।
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