Vimarsh News
Khabro Me Aage, Khabro k Pichhe

Bihar political crisis: मुख्यमंत्री आवास की घेराबंदी? नीतीश कुमार को हटाने की भाजपा की रणनीति!

bihar political crisis chief minister residence under siege bjp strategy to 20251118 100532 0000
0 32

बिहार चुनाव के नतीजे आने के 48 घंटे बीत चुके हैं। नीतीश कुमार अभी तक मुख्यमंत्री आवास से बाहर नहीं निकले। भाजपा का कथित ऑपरेशन चल रहा है जो उन्हें सीएम की कुर्सी से हटाने पर तुला है। यह सब कुछ ऐसा लगता है जैसे नीतीश को चारों तरफ से घेर लिया गया हो। क्या उनका विरोध टिक पाएगा? यह सवाल बिहार की राजनीति का भविष्य तय करेगा।

बिहार के मुख्यमंत्री आवास की घेराबंदी और रणनीतिक अलगाव

नीतीश कुमार की मौजूदा स्थिति देखकर लगता है कि वे पूरी तरह फंस चुके हैं। भाजपा का दबाव इतना तेज है कि नीतीश के विधायकों से उनका संपर्क टूट गया। वे चुनाव के नेतृत्व का हवाला देकर सीएम बनने पर अड़े हैं। लेकिन क्या यह अड़ान टूटेगी?

सीएम आवास की कैद और संचार ब्लैकआउट

मुख्यमंत्री आवास पर सख्त पहरा है। सुरक्षा के नाम पर जामर लगाए गए हैं। नेटवर्क का इस्तेमाल मुश्किल हो गया। नीतीश को बाहर निकलने ही नहीं दिया जा रहा। अगर कोई और नेता होता तो वह रणनीति बना रहा होता। विधायकों से मिल रहा होता। पत्रकारों से बात कर रहा होता। लेकिन नीतीश चुप हैं। नतीजे आने पर उन्होंने एक ट्वीट किया। वह बिहार की प्रगति पर था। राजनीतिक संदेश न होने से लगता है कि वे पहले ही नियंत्रण में थे। अब कोई और ट्वीट नहीं कर पा रहे। सीसीटीवी और मॉनिटरिंग से सब कुछ कंट्रोल में है। यह लोकतंत्र के लिए नया उदाहरण है।

बीएसएफ और सीआरपीएफ के जवान आवास के आसपास तैनात हैं। पत्रकार कहते हैं कि आवाजाही बहुत सीमित है। पिछले 48 घंटों में सिर्फ एक तस्वीर बाहर आई। वह चिराग पासवान से मिलते हुए की। बाकी नेताओं से कोई फोटो नहीं। एनडीए के नेता ही मिल पा रहे हैं। वे भाजपा का एजेंडे लेकर जाते हैं। एजेंडा साफ है। नीतीश अपना 20 साल पुराना दावा छोड़ दें।

रणनीतियों की तुलना: महाराष्ट्र मॉडल पटना में

महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के साथ जो हुआ वह याद करें। शिंदे ने कहा था कि अगर सीएम न बने तो बाहर से समर्थन देंगे। भाजपा ने उनके साथियों को भेजा। उनसे पूछा कि अगर सरकार न बनी तो उनका क्या होगा? शिंदे लंबा विरोध करते रहे। लेकिन भाजपा ने उन्हें डिप्टी सीएम बना दिया। नीतीश की हालत इससे भी बुरी है।

शिंदे को घर में कैद नहीं किया गया। वे गांव चले गए। वहां कोप भवन में रहे। लेकिन भाजपा पीछे नहीं हटी। बिहार में नीतीश के पास ऐसा कोई विकल्प नहीं। वे आवास में बंद हैं। उप मुख्यमंत्री बनने को राजी नहीं होंगे। गवर्नर का पद भी नहीं लेंगे। राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के पद भरे हुए हैं। केंद्र में मंत्री बनने में दिलचस्पी नहीं। वे पहले रेल मंत्री रह चुके हैं। अनुभव है। लेकिन भाजपा का मॉडल वही है। चुनाव नीतीश के नेतृत्व में लड़ा गया। उनकी योजनाओं से जीता। फिर भी उन्हें हटाना चाहते हैं। हथकंडे अलग हैं। मुंबई में शिंदे आजाद थे। पटना में नीतीश कैद।

विधानसभा में दरार: आंतरिक क्षरण के सबूत

नीतीश का संसदीय दल कमजोर हो गया। 12 लोकसभा और 4 राज्यसभा सांसद पहले ही भाजपा के कब्जे में हैं। ललन सिंह के जरिए प्रबंधन हो चुका। कम से कम 40 विधायक भाजपा के संपर्क में। क्या इतनी भव्य जीत के बाद कोई नेता घर बैठा रहेगा? नीतीश ऐसा कर रहे हैं। लेकिन मजबूरी है। भाजपा ने उन्हें अलग कर दिया। विधायकों को तोड़ा। अब सवाल यह है कि कितने साथ रहेंगे।

जेडीयू की रक्षा रणनीति: “मोदी-नीतीश” फॉर्मूला

जेडीयू वाले बचाव में लगे हैं। वे कह रहे हैं कि मोदी पीएम और नीतीश सीएम ही बिहार का सपना है। यह रणनीति कमजोर है। भाजपा सुनकर नरम नहीं होगी। लेकिन कोशिश जारी है।

कंट्रोल्ड विजिट्स हो रही हैं। जेडीयू नेता उमेश सिंह कुशवाहा, हर्षवर्धन सिंह, श्रवण कुमार आए। आशीर्वाद लेने का बहाना। सरकार गठन पर चर्चा। नीतीश ने एनडीए की जीत पर संतोष जताया। विकास पर जोर दिया। पत्रकार पूछें तो यही जवाब मिलता। यह सब निर्देशित लगता। जेडीयू पहले नीतीश को ताकतवर दिखाती। अब कोने में सिमट गई। कदम टिकाने की कोशिश।

प्रमुख सहयोगियों से अस्पष्ट संकेत

संजय झा जैसे नेता गोलमोल बोलते। इंडियन एक्सप्रेस ने पूछा कि क्या नीतीश दसवीं बार सीएम बनेंगे? जवाब आया कि वक्त आएगा तो साफ हो जाएगा। झा अरुण जेटली के करीबी थे। भाजपा से जुड़े। उनका बयान बताता है कि भ्रम नहीं। सीएम भाजपा का बनेगा। नीतीश के पिघलने का इंतजार। एनडीए में कोई हंगामा नहीं।

सहयोगी आवाजों की भूमिका: चिराग पासवान और मांझी

चिराग पासवान बार-बार मिल रहे। कल भी गए। आज फिर। वे भाजपा के संदेशवाहक। पासवान ने कहा कि पर्सनली फील करते हैं नीतीश सीएम बनें। लेकिन यह चालाकी है। खुला समर्थन नहीं। भाजपा के खिलाफ नहीं जाते। वे मोहरा हैं। कभी एनडीए से बाहर कभी अंदर। नीतीश को काटने में इस्तेमाल।

जितन राम मांझी ने साफ कहा। नीतीश ही अगले सीएम। उपेंद्र कुशवाहा भी साथ। वे चिंतित हैं। अगर भाजपा अपना आदमी बिठाएगी तो सामाजिक न्याय खतरे में। हम पार्टी और कुशवाहा खुलकर खड़े। लेकिन जेडीयू के पास बचाव ही रास्ता। उकसावे वाले बयान बाद में।

जनादेश का खुलासा: चुनावी अनियमितताओं के आरोप

चुनाव जीतने के हथकंडे सामने आ रहे। सबसे बड़ा जीविका दीदियों का दुरुपयोग। चुनाव आयोग ने रास्ता साफ किया। वोटरों को प्रभावित किया।

जीविका दीदियों को बूथ पर लगाया। कुल 18 लाख 80 हजार। 6 और 11 नवंबर को 90 हजार रोज। 45 हजार पोलिंग स्टेशन पर। पहले से 4 लाख स्टाफ थे। ये दीदियां महिलाओं के समूह से। चुनाव से पहले 10 हजार रुपये दिए। पहली किस्त सितंबर में। बाकी 1 से 11 नवंबर। एनडीए जीते तो 190 रुपये और। हार गए तो रकम बंद या वापस।

आरजेडी, सीपीआई एमएल ने आरोप लगाया। यह कैश फॉर वोट। लोक प्रतिनिधित्व कानून का उल्लंघन। दीपंकर भट्टाचार्य ने पूछा। ड्यूटी क्या थी? ट्रेनिंग मिली? भुगतान हुआ? या वोट मोबिलाइजेशन? पूर्व आयुक्त कहते हैं। चल रही योजनाओं की दलील सार्वजनिक कामों के लिए। नकद लाभार्थियों को नहीं। अरवल में मौत का केस। ईसीआई ने शिकायत ली। सोशल मीडिया पर वीडियो हैं। दीदियां वोटरों को बहला रही।

अमिताभ तिवारी और संजीव श्रीवास्तव कहते हैं। यह गेम चेंजर। महिलाओं के वोट एनडीए को। आयोग ने तैनाती की। स्टाफ पहले से था।

दबाव का तंत्र: लालच और धमकी

दीदियों को लालच दिया। जीत पर 190 रुपये। हार पर रकम बंद। वापस मांग। हितों का टकराव। महिलाओं को पक्षपाती बनाया। भाजपा को फायदा।
वोट कटे और जोड़े गए। बक्सर (संख्या 200) उदाहरण। 2020 से तुलना। बाकी वोट पैटर्न वही। लेकिन 3000 नए वोट सब भाजपा को। खेल साफ।

इसे भी पढ़ें- Bihar Election Result 2025: 3 लाख वोटर्स की रहस्यमय बढ़ोतरी और एनडीए की जीत पर उठते सवाल!

Leave a comment