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Bihar Politics: RJD की सड़क से संसद तक संघर्ष की तैयारी, चुनाव आयोग पर क्यों उठे सवाल?
Bihar की Politics में इन दिनों फिर गरमाहट है। चुनाव आयोग के हालिया फैसलों ने सियासी गलियारों में खलबली मचा दी है। आरजेडी (RJD) के वरिष्ठ नेता अभय कुशवाहा ने साफ कहा कि अगर लोकतांत्रिक अधिकारों को कोई छीनने की कोशिश करता है, तो उनकी पार्टी सड़कों पर भी उतरेगी और संसद तक भी जाएगी। इस पूरे घटनाक्रम में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की चुप्पी और महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव की सक्रियता लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गई है।
इस पोस्ट में हम जानेंगे चुनाव आयोग के विवादित फैसले, आरजेडी की संगठनात्मक तैयारियों, राजनीतिक प्रतिक्रियाओं और भविष्य की आंदोलन की रणनीति के बारे में, ताकि आप भी समझ सकें कि बिहार की राजनीति किस करवट बैठ रही है।
चुनाव आयोग के फैसले पर सियासत क्यों गरम है?
चुनाव आयोग द्वारा लिए गए विवादास्पद फैसले।
Bihar Politics: चुनाव आयोग पर क्यों उठे सवाल
हाल में भारत के चुनाव आयोग ने अचानक आदेश दिया कि बिहार की मतदाता सूची की पूरी प्रक्रिया 25 दिन में पूरी हो जानी चाहिए। इस फैसले ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। अभय कुशवाहा ने इस पर कई अहम मुद्दे उठाए:
* आयोग का यह फैसला लगभग 4-5 करोड़ मतदाताओं वाली आबादी के लिए अव्यवहारिक है।
* बिहार के लगभग 20% मतदाता जो दूसरे राज्यों या शहरों में रहते हैं, उनके मताधिकार छीनने की साजिश बताई जा रही है।
* आयोग की मंशा पर सवाल है कि उसने इतनी जल्दी में यह प्रक्रिया क्यों शुरू की, जबकि सामान्यतः मतदाता सूची का पुनरीक्षण छः महीने की प्रक्रिया रहती थी।
* पिछले चुनावों के दौरान 2003 के आंकड़ों की बार-बार बात हो रही है, लेकिन इतने वर्षों में हुए सभी चुनावों की वैधता पर इससे प्रश्नचिह्न लगना स्वाभाविक है।
* बीएलओ बदलने के मामले और मतदाता नाम हटाने जैसे आरोप साफ इशारा करते हैं कि बड़ी संख्या में लोगों को जान-बूझकर प्रभावित किया जा रहा है।
* आयोग का सर्वदलीय बैठक बुलाने के बावजूद दूसरे दलों के नेताओं की बात न सुनना लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं दिखता।
इन तमाम बिंदुओं पर सवाल उठाना बताता है कि विपक्ष को चुनाव आयोग की प्रक्रिया निष्पक्ष नहीं लग रही। जनता में भी ये चर्चा है कि अचानक इतनी जल्दी क्यों?
सर्वदलीय बैठक और उसमें विफलता
चुनाव आयोग ने सभी दलों को बुलाकर एक सर्वदलीय बैठक की थी, ताकि चुनावी प्रक्रिया पर सुझाव और आपत्तियां सुनी जा सकें। इसमें अभय कुशवाहा समेत कई अहम नेता मौजूद रहे। लेकिन कुशवाहा की माने तो:
* आयोग ने विपक्ष की किसी भी आपत्ति को गंभीरता से नहीं लिया।
* आयोग ने पहले सारा टाइमलाइन साझा किया और सिर्फ अपनी बात बताई।
* सबको 25 दिन में काम पूरा करने का आदेश समझाया, लेकिन ऐसी बड़ी प्रक्रिया के लिए उचित वक्त और विशेषज्ञता नहीं दी गई।
* यह बैठक केवल औपचारिकता बनकर रह गई, जिससे समाधान की पूरी प्रक्रिया अधूरी लगी।
अब जब प्रक्रिया के दौरान इतनी बड़ी आबादी को मताधिकार से वंचित रखने जैसा आरोप लग रहा है, तो विपक्ष का मोहभंग साफ दिख रहा है। दूसरी ओर, चुनाव आयोग की विश्वसनीयता भी सवालों के घेरे में आ गई है, जो लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा है।
आरजेडी की चुनावी संगठनात्मक तैयारियाँ
राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक के मुख्य बिंदु
इसी माह आरजेडी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की अहम बैठक हुई। अभय कुशवाहा के मुताबिक:
* ये बैठक किसी खास मुद्दे के बजाय पूरी तरह पार्टी संगठन और चुनावी प्रक्रिया के संदर्भ में रखी गई थी।
* पंचायत, प्रखंड, जिला, प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव पहले ही हो चुके हैं।
* राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए सिंगल नॉमिनेशन फाइल हो चुका है। अब उनके निर्वाचन की औपचारिक घोषणा होगी।
* अगले दिन पार्टी स्थापना समारोह, राष्ट्रीय परिषद की बैठक और खुला अधिवेशन जैसे कार्यक्रम निश्चित हैं।
इससे जाहिर है कि पार्टी ने पूरी संगठनात्मक तैयारी पूरी कर ली है। मतलब, जमीन स्तर से लेकर ऊपर तक की कमान तय हो चुकी है। ऐसे वक्त में बाहरी चुनौतियाँ आने पर पूरी पार्टी एकजुट होकर लड़ाई लड़ने को तैयार दिख रही है।
मतदाता सूची पुनरीक्षण प्रक्रिया में उठा विवाद
बिहार में बीएलओ यानी ब्लॉक लेवल ऑफिसर की भूमिका अहम होती है। वे घर-घर जाकर वोटर लिस्ट अपडेट करते हैं। हाल में:
* आरा जैसे कई इलाकों में 1520 बीएलओ को एक साथ बदल दिया गया।
* आरोप है कि कुछ “विशेष चिन्हित” लोगों के कहने पर यह बदलाव किया गया, ताकि खास समुदायों या दलों के वोटर्स के नाम मतदाता सूची से हटाए जा सकें।
* चुनावी लोकतंत्र में आम तौर पर छह महीने पहले मतदाता सूची पुनरीक्षण का कार्यक्रम शुरू होता है। चुनाव आयोग द्वारा अचानक 25 दिन की डेडलाइन देना सवालों के घेरे में है।
* 2003 के वोटर डेटा की तलाश और उसकों अब वेबसाइट पर लोड तक न कर पाना चुनाव आयोग की गंभीर लापरवाही दर्शाता है।
मतदान सूची का अचानक रिविजन और नाम हटाने का मामला बिहार के राजनीतिक ताने-बाने को झकझोर रहा है। इससे जनता का भरोसा प्रभावित हो रहा है और सियासत में बेचैनी साफ दिखती है।
सामान्य चुनावी प्रक्रिया और समय-सीमा
* मतदाता सूची का प्रकाशनः छः महीने पहले
* नाम जोड़ने/हटाने की प्रक्रियाः नियमित रूप से गांव, कस्बों में
* बीएलओ का चयन: वोटर सूची के सत्यापन के समय
* अंतिम मतदाता सूची का प्रकाशन: चुनाव के पहले
* प्रतिवर्ष पुनरीक्षण: हर चुनावी वर्ष
लेकिन, इस बार सब कुछ बदले हुए अंदाज में हुआ, जिससे असमान्य स्थिति बन गई है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं: आरोप-प्रत्यारोप और रणनीतियाँ
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर अभय कुशवाहा की टिप्पणी
अभय कुशवाहा ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की चुप्पी पर तल्ख टिप्पणी की। उन्होंने कहा:
* “नीतीश बाबू पर कोई कमेंट्स नहीं है, लेकिन उनकी चुप्पी मजबूरी है।”
* मुख्यमंत्री को दबाया जा रहा है या वे पार्टी के निर्देशों के कारण खुलकर नहीं बोल पा रहे।
* कभी-कभी नेता बात करना चाहते हैं, लेकिन बड़े दबाव की वजह से खुद को रोक लेते हैं।
सीएम की चुप्पी पर तंज कसना जाहिर करता है कि विरोधी दलों में भी मुख्यमंत्री के रुख को लेकर असमंजस और असंतोष है।
आरजेडी और महागठबंधन की आंदोलन की तैयारी
तेजस्वी यादव और महागठबंधन के नेता लगातार चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगा रहे हैं। इस मुद्दे पर खुद आरजेडी नेताओं की टिप्पणियां देखने लायक हैं:
* “अब तो कमर कसना ही होगा।”
* “सड़क पर आना होगा और लाठी डंडा खाने की भी तैयारी करनी होगी।”
* “लोकतंत्र खतरे में है इसलिए सड़क से लेकर संसद तक हर जगह आंदोलन करेंगे।”
ये बिंदु यह साबित करते हैं कि आरजेडी सहित महागठबंधन सड़क पर कड़ा आंदोलन करने को तैयार है। जनता के वोटिंग अधिकार की रक्षा के लिए किसी भी सीमा तक जाने का ऐलान कर दिया गया है।
एनडीए घटक दलों के बीच मतभेद
जेडीयू के साथ आरजेडी के समीकरण और एनडीए की चुप्पी पर अभय कुशवाहा ने भी सवाल उठाए:
* 2003 के आंकड़े की बात कर एनडीए की भूमिका को संदिग्ध बताया गया।
* अगर 2003 के आंकड़े बेमानी थे तो इतने वर्षों के बाद हुए सभी चुनाव अवैध हो जाते हैं क्या?
* एनडीए के कई घटक, खासकर जेडीयू नेतृत्व, अभी स्थिति पर कोई खुली राय नहीं देता।
* गठबंधन में असमंजस का माहौल साफ दिखाई देता है।
राजनीतिक समीकरणों के इस खेल में मजबूत विरोध और समर्थक दोनों फलक अपने दांव चल रहे हैं।
आंदोलन की रूपरेखा: लोकतंत्र की रक्षा का मिशन
लोकतांत्रिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए संघर्ष
साफ है कि आरजेडी और महागठबंधन ने लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए कई स्तरों पर आंदोलन की तैयारी कर ली है। आंदोलन का रूप निम्न होगा:
* सड़क पर धरना-प्रदर्शन
* संसद भवन में मुद्दा उठाना
* बीएलओ स्तर पर mobilization
* गांव, पंचायत और जिला स्तर पर जनजागरण अभियान
* मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से जनता तक मुद्दा पहुँचाना
बाबा साहब भीमराव अंबेडकर द्वारा दिए गए “एक वोट, एक अधिकार” के उसूल को आधार बनाते हुए आरजेडी किसी भी क़ीमत पर वोटर राइट्स की सुरक्षा के लिए मैदान में है।
निष्कर्ष
बिहार की राजनीति एक बार फिर उबाल पर है। चुनाव आयोग की प्रक्रियाओं में ट्रांसपेरेंसी और निष्पक्षता की पुरजोर मांग शुरू हो चुकी है। अभय कुशवाहा, तेजस्वी यादव समेत पूरा महागठबंधन लोकतंत्र की सुरक्षा के लिए पूरी तरह तैयार खड़ा है। आने वाले दिनों में यह आंदोलन कितना असर डालता है, यह देखना अहम होगा।
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