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Bihar Vidhan-Sabha Election ओवैसी क्यों INDIA गठबंधन के साथ आना चाहते हैं? कांग्रेस-आरजेडी को दिया था तगड़ा झटका

Bihar vidhan sabha election why does owaisi want to come with india alliance
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Bihar Vidhan-Sabha Election: इंडिया गठबंधन के साथ आना चाहते हैं

बिहार चुनाव का वक्त अभी नहीं आया है. यहाँ पर मुस्लिम मतदाताओं में कांग्रेस और आरजेडी के प्रति नरम रुझान है. सीमांचल क्षेत्र में कई AIMIM नेताओं और कार्यकर्ताओं ने ओवैसी का साथ छोड़ा है. इससे चुनाव में उन्हें मुस्लिम वोट वापस खिसकने का डर सताने लगा है.

असदुद्दीन ओवैसी अपने मुस्लिम आधार का इस्तेमाल कर AIMIM को हिंदुस्तान के बाहर पहचान दिलाने की कोशिश कर रहे हैं. पिछले पांच सालों में उन्होंने बिहार में पांच सीटें जीती हैं. उस समय उन्होंने सीमांचल में कांग्रेस-आरजेडी को तगड़ा झटका दिया था. अब वे फिर से बिहार चुनाव में अपनी ताकत दिखाना चाहते हैं, लेकिन इस बार वे राष्ट्रीय गठबंधन के साथ मिलकर लड़ना चाहते हैं.

AIMIM के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान ने कहा है कि बिहार में सांप्रदायिक ताकतों को सरकार से दूर रखने के लिए बड़े गठबंधन की जरूरत है. इसी सोच के साथ AIMIM ने आरजेडी और कांग्रेस से गठबंधन की बात की है. इसका निर्णय अब कांग्रेस और आरजेडी को लेना है. सवाल उठता है कि ओवैसी क्यों इंडिया गठबंधन का हिस्सा बनना चाहते हैं? क्या यह बीजेपी के नैरेटिव को तोड़ने की कोशिश है? या फिर कहीं वे वोट बैंक बचाने के लिए ऐसा कर रहे हैं?

2019 में बिहार विधानसभा चुनाव में ओवैसी ने ताकत दिखाई थी

2019 में बिहार विधानसभा चुनाव में ओवैसी ने अपनी ताकत दिखाई थी. AIMIM ने सीमांचल में 20 सीटों पर चुनाव लड़ा और पांच सीटें जीतीं. इससे कांग्रेस और आरजेडी को नुकसान पहुंचा। एनडीए को वहां फायदा हुआ और उसने जीत हासिल की. चुनाव खत्म होने पर चार AIMIM के विधायक आरजेडी के साथ चले गए, पर अख्तरुल ईमान अकेले खड़े रहे.

ओवैसी का मुख्य आधार सीमांचल क्षेत्र है, जहां मुस्लिम वोट 40 से 55 प्रतिशत है. कई सीटों पर वोट प्रतिशत 60 फीसदी से भी ऊपर है. इस बार वे बिहार के दूसरे इलाकों में भी अपनी उम्मीदवारी घोषित कर रहे हैं. पार्टी ने प्रदेश में 50 सीटों पर चुनाव लड़ने का प्लान बनाया है.

हाल ही में ओवैसी ने अपने बिहार दौरे में आरजेडी को चुनौती दी थी. उन्होंने कहा था कि वे चार विधायक जीत कर 25 सीटें जीतेंगे. लेकिन अब उनकी राजनीतिक रणनीति बदल रही है. अख्तरुल ईमान ने साफ कहा कि उनकी पार्टी गठबंधन के बिना नहीं लड़ सकती.

उन्होंने बताया कि गठबंधन का फैसला आरजेडी और कांग्रेस को लेना है. यदि यह होता है, तो बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव होगा. सवाल है कि ओवैसी की रणनीति क्यों बदल रही है.

कई पार्टियां, जैसे कांग्रेस और आरजेडी, ओवैसी को लेकर सवाल करती रही हैं. आरोप है कि वे बीजेपी की बी-टीम का काम कर रहे हैं. कहा जाता है कि 2020 के बिहार चुनाव में ओवैसी न लड़ते तो बीजेपी सत्ता में नहीं आ पाती. विपक्ष यह दिखाने की कोशिश करता है कि वे चुनाव लड़ कर बीजेपी का समर्थन करते हैं.

दिखावे का ऑफ़र

अक्टूबर 2023 में, कांग्रेस और आरजेडी ने ओवैसी पर संदेह जताए हैं. मुस्लिम समुदाय में भी उनके बारे में संदेह बना है. वोटों के खिसकने का खतरा बहुत बढ़ गया है. माना जाता है कि ओवैसी बीजेपी की जमात को तोड़ने के लिए इंडिया गठबंधन का हाथ पकड़ने का संकेत दे रहे हैं. उनका मकसद है कि कांग्रेस और आरजेडी के साथ मिलकर बीजेपी को हराएं. लेकिन असल में यही पार्टियां नहीं चाहतीं कि वे साथ आएं.

ओवैसी ने 2024 लोकसभा चुनाव और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भी अपने गठबंधन की कोशिश की थी. लेकिन इसमें उन्हें सफलता नहीं मिली. उन्हें पता है कि कांग्रेस या सेकुलर दल उन्हें साथ नहीं लेंगे. इसीलिए वे सिर्फ राजनीतिक संदेश दे रहे हैं. वे दिखाना चाहते हैं कि उन्होंने गठबंधन का ऑफर दिया, लेकिन दूसरा पक्ष तैयार नहीं था.

बिहार में चुनाव मुकाबला बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए और कांग्रेस-आरजेडी की इंडियन गठबंधन के बीच है. मुख्यमंत्री उम्मीदवार नीतीश कुमार हैं और तेजस्वी यादव विपक्ष का नेता हैं. दोनों के बीच मुकाबला टक्कर का है. ओवैसी की पार्टी इस चुनाव में कहीं नहीं खड़ी है. उनका दिमागी फंसा हुआ है, क्योंकि उनका मुख्य लक्ष्य मुस्लिम वोट पर है.

मुसलमानों का समर्थन कम

मुस्लिम समुदाय ने 2020 के बिहार चुनाव में ओवैसी को वोट दिया था. लेकिन उन्होंने यह जाना कि AIMIM सरकार बनाने के लिए पर्याप्त ताकत नहीं है. वे सरकार बनाने से दूर हैं. वक्फ कानून और मुस्लिम विरोधी हिंसा के मुद्दे पर कांग्रेस और आरजेडी ने ओवैसी से ज्यादा आवाज़ उठाई है. इससे साफ पता चलता है कि बिहार में उनके समीकरण अफ़सोसजनक हैं.

बिहार में मुस्लिम वोट कांग्रेस और आरजेडी के प्रति नरम है. सीमांचल में कई नेता और कार्यकर्ता ओवैसी का साथ छोड़ चुके हैं. इस वजह से बिहार के चुनाव में मुसलमानों का समर्थन कम हो रहा है.

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