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BUTTER FESTIVAL: उत्तराखंड में दो साल बाद बटर फेस्टिवल, लोग खेलते हैं दूध, दही और मक्खन की होली

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BUTTER FESTIVAL: उत्तराखंड में दो साल बाद बटर फेस्टिवल शुरू हो गया। इसमें दूध, दही और मक्खन की होली खेली जाती है। इसे स्थानीय तौर पर अंढूड़ी उत्सव कहते हैं, जो यह समुद्र तल से 11 हजार फीट की ऊंचाई और 28 वर्ग किमी में फैले दयारा बुग्याल यानी हरे घास के मैदान में पारंपरिक रूप से मनाया जाता है। ये देश का सबसे ऊंचा आयोजन स्थल है।

BUTTER FESTIVAL: गंगोत्री एमएलए सुरेश चौहान ने बताया कि प्राचीन काल में इसे पशुपालक मनाते थे। इसके जरिए वह खुद के लिए और अपने मवेशियों की रक्षा के लिए प्रकृति का आभार जताते हैं। तब इसे अंढूड़ी के नाम से जाना जाता था। कुछ साल से इसका नाम बटर फेस्टिवल हो गया। अब यह भव्य रूप से मनाया जा रहा है। इसमें मुख्यमंत्री पुष्कर धामी और पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज भी शामिल होंगे।

BUTTER FESTIVAL: दयारा टूरिज्म फेस्टिवल कमेटी रैथल के अध्यक्ष मनोज राणा ने बताया कि अंढूड़ी उत्सव स्थानीय लोगों और पर्यटकों का संयुक्त उत्सव है। इसमें लोकल लोगों के साथ ही देश-विदेश के पर्यटक दूध, मट्ठा और मक्खन की होली खेलते हैं।

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मनोज कहते हैं कि भटवाड़ी ब्लॉक के रैथल गांव से 8 किमी की दूरी पर 28 वर्ग किमी के दायरे में फैले दयारा बुग्याल में हर साल रैथल के ग्रामीण भादों महीने की संक्राति को पारंपरिक रूप से अढूड़ी उत्सव मनाते हैं। इस दिन ग्रामीण दयारा बुग्याल स्थित अपनी झोपड़ियों में जुटकर पशुधन की समृद्धि करते हुए अपने ईष्ट देवी देवताओं का पूजन कर मवेशियों से प्राप्त दूध, दही, मठ्ठा, मक्खन, आदि उत्पादों का भोग लगाते हैं।

BUTTER FESTIVAL: गौर करें तो इस बार विदेशी पर्यटकों की संख्या कम है। इसका कारण कोरोना के बाद कम हुआ अंतरराष्ट्रीय पर्यटन है। अध्यक्ष मनोज राणा कहते हैं कि विदेश के अलावा देश के विभिन्न राज्यों से भी पर्यटक आते है। इस बार महाराष्ट्र और दक्षिण भारतीय राज्यों से भी पर्यटक आए हैं।

इस पर्व के साथ ही ग्रामीण अपने मवेशी लेकर पहाड़ों से नीचे आते हैं। रैथल के ग्रामीण गर्मियों के साथ मवेशियों के साथ दयारा बुग्याल सहित अन्य स्थानों पर बनी झोपड़यों में प्रवास के लिए पहुंचते हैं। ऐसे में बुग्याल में उगने वाली औषधीय गुणों से भरपूर घास, अनुकूल वातावरण का फायदा दूध उत्पादन में मिलता है। ऊंचाई वाले क्षेत्रों से सितंबर से नीचे लौटने लगते हैं। उससे पहले यह पर्व मनाते हैं।

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