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CJI गवई की खुली चुनौती: Supreme Court में जूता फेंका गया, केंद्र को नोटिस, शाह पर सवाल
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की कार्यवाही के दौरान अचानक हंगामा, जजों के सामने उड़ती हुई कोई चीज, वकीलों की आवाजें और सोशल मीडिया पर वायरल होता एक वीडियो। यह सिर्फ एक क्लिप नहीं, यह कई गंभीर सवालों की शुरुआत है। क्या सच में CJI बी. आर. गवई पर जूता फेंका गया था, किसने फेंका, क्यों फेंका, और फिर माफी और रिहाई की बातें कहाँ से आईं? साथ ही, CJI द्वारा केंद्र सरकार को भेजे गए नोटिस के राजनीतिक मायने क्या हैं?
CJI गवई की खुली चुनौती: जूताकांड, आखिर हुआ क्या
वीडियो में दिखाई देता है कि खुले कोर्ट में सुनवाई के बीच CJI गवई की तरफ तेज रफ्तार से कोई ऑब्जेक्ट आता है। कुछ ही पल के लिए माहौल सन्नाटे में बदल जाता है, फिर वकीलों की आवाजें सुनाई पड़ती हैं। CJI कुछ क्षणों के लिए भौंचक्का सा रुकते हैं, जैसे उन्हें अचानक कुछ पास से गुजरता महसूस हुआ हो। कैमरे का कोण ऐसा है कि ऑब्जेक्ट चेयर के पास से बहुत करीब गुजरता दिखता है। इसी वजह से क्लिप लोगों को चौंका रही है और सोशल मीडिया पर लगातार घूम रही है।
वीडियो के बारे में दावा यह है कि यह 6 अक्टूबर 2025 की सुप्रीम कोर्ट की लाइव सुनवाई का फुटेज है। दावे के अनुसार, एक वकील, राकेश किशोर, ने CJI की ओर जूता फेंका। इस दावे के साथ ही यह भी कहा गया कि जूता लगा नहीं, बल्कि मिस हो गया। फिर भी, कैमरा एंगल के कारण ऐसा लगता है कि जूता बहुत पास से गया।
इस घटना ने न्यायालय की सुरक्षा व्यवस्था, अदालत की गरिमा और संवैधानिक पदों के प्रति सम्मान जैसे मुद्दों पर बड़ी बहस छेड़ दी है। कई लोग इसे सिर्फ अदालत का अनुशासन भंग होने की घटना नहीं, बल्कि संवैधानिक संस्थाओं को निशाना बनाने की कोशिश मान रहे हैं।
वीडियो में क्या दिखता है
- सुनवाई के दौरान अचानक एक ऑब्जेक्ट CJI की तरफ उड़ता दिखता है।
- जज की कुर्सी के बेहद करीब से वह ऑब्जेक्ट गुजरता दिखता है।
- वकीलों की तरफ से शोर, रोकने और समझाने की कोशिशें सुनाई देती हैं।
- क्लिप कुछ सेकंड की है, पर असर तीखा छोड़ती है, इसलिए वायरल हो गई है।
ऑब्जेक्ट पर दावे, हिट हुआ या मिस
बहस दो हिस्सों में बंटी है। एक पक्ष कहता है कि यह जूता था और सीधे CJI पर फेंका गया। दूसरा पक्ष दावा करता है कि निशाना चूका, CJI को कुछ नहीं लगा। साफ निष्कर्ष नहीं है, पर वीडियो में ऑब्जेक्ट की गति और नजदीकी स्पष्ट दिखती है।
- जो समर्थन में कहते हैं: ऑब्जेक्ट बहुत पास से गया, इसलिए जूता होने की बात मजबूत लगती है।
- जो असहमति जताते हैं: कोई फ्रेम ऐसा नहीं, जिसमें सीधा हिट दिखे, इसलिए हिट नहीं माना जा सकता।
- कुछ पोस्ट में चेतावनी भी दी जा रही है कि क्लिप भावनात्मक असर डाल सकती है, देखने से पहले समझें कि यह अदालत की कार्यवाही का संवेदनशील फुटेज है।
फुटेज की पुष्टि के दावे
रिपोर्टों में यह कहा जा रहा है कि फुटेज असली है, एआई जनरेटेड नहीं। यह भी कहा गया कि घटना 6 अक्टूबर 2025 को हुई और ऑब्जेक्ट जूता था, जिसे वकील राकेश किशोर ने फेंका। साथ ही, यह भी बयान सामने आया कि जूता लगा नहीं, सिर्फ मिस हुआ, पर कैमरे के कारण हिट जैसा भ्रम पैदा होता है। इन दावों ने चर्चा को और तेज कर दिया है, क्योंकि इससे अदालत की सुरक्षा और प्रतिक्रिया पर बड़े सवाल खड़े होते हैं।
CJI ने जूता फेंकने वाले को क्यों माफ किया, यही सबसे बड़ा सवाल
दूसरा बड़ा मुद्दा यह है कि आरोपी वकील के साथ हुआ क्या। खबरों और चर्चाओं में यह बात जोर पकड़ती दिखी कि CJI ने सब माफ कर दिया। कुछ पोस्ट में तो यह तक लिखा गया कि जूता फेंकने वाले को जूता वापस दिलवा दिया गया और रिहाई भी हो गई। यह सब आधिकारिक पुष्टि के बिना चर्चा में है, पर सवाल तेज हैं।
राकेश किशोर की हठ, कोई माफी नहीं
वकील राकेश किशोर का बयान सामने आया कि वह माफी नहीं मांगेंगे। उनका कहना, उन्हें अपने काम पर कोई अफसोस नहीं। यह बयान बहस को और आग देता है, क्योंकि अदालत के अनुशासन पर यह सीधी चोट नजर आती है।
- उनकी स्पष्ट लाइन: माफी नहीं, पछतावा नहीं।
- इससे यह संदेश गया कि वह अपने एक्शन को जायज मानते हैं।
जूता लौटाने और रिहाई की चर्चा
कुछ रिपोर्टों में यह दावा है कि जूता उन्हें वापस दिलवा दिया गया और उन्हें छोड़ भी दिया गया। यह साफ नहीं कि यह किसके आदेश पर हुआ। क्या यह अदालत की पहल थी, या दिल्ली पुलिस का फैसला, या किसी और स्तर पर निर्देश दिए गए। ये बातें अभी अस्पष्ट हैं, इसलिए इन्हें पक्के तथ्य की तरह नहीं, बल्कि सामने आई खबरों की तरह ही पढ़ना चाहिए।
गुस्से की वजह, संविधान बनाम बुलडोजर
राकेश किशोर के बयानों से यह समझ आता है कि उनका गुस्सा किसी धार्मिक अपमान को लेकर नहीं था। उनकी आपत्ति इस विचार पर है कि देश संविधान से चलेगा, बुलडोजर से नहीं। CJI गवई के हाल के सार्वजनिक वक्तव्यों में यह बात सामने आई थी कि सरकार जज और जल्लाद दोनों नहीं बन सकती। यह लाइन सीधे शासन के बुलडोजर एक्शन पर सवाल उठाती है। इसी बिंदु पर राकेश का गुस्सा केंद्रित दिखता है, जिससे उनके राजनीतिक झुकाव और समर्थन पर भी चर्चा तेज हो गई है।
सत्ता की चुप्पी, पुलिस की सुस्ती, सुरक्षा की चूक
यह पूरा प्रकरण सिर्फ एक अदालत कक्ष का अनुशासन मुद्दा नहीं, यह सुरक्षा, राजनीतिक जवाबदेही और पुलिस की प्राथमिकताओं का आईना भी बन गया है।
मोदी और शाह की प्रतिक्रिया
शुरुआत में प्रधानमंत्री और गृह मंत्री, दोनों की तरफ से कोई बयान नहीं आया। बाद में खबर आई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने CJI को फोन किया। गृह मंत्री अमित शाह की तरफ से फोन या ट्वीट की बात सामने नहीं आई। यह फर्क लोगों की नजर में आ गया। जनता के दबाव और सोशल मीडिया की नाराजगी के बाद आंशिक प्रतिक्रिया दिखी, पर कई अहम सवाल अब भी खुले के खुले हैं।
दिल्ली पुलिस पर सवाल
घटना के बाद तत्काल सख्त कार्रवाई क्यों नहीं हुई, यह बड़ा प्रश्न है। तुलना में यह बात भी उठी कि पोस्टर लगाने जैसे मामूली मामलों में हजारों लोगों पर केस दर्ज हुए, गिरफ्तारियां भी हुईं। फिर अदालत में सुरक्षा भेदने जैसी गंभीर घटना पर सुस्ती क्यों। क्या यहां NSA या UAPA जैसी सख्त धाराएं नहीं लग सकतीं, जबकि अन्य मामलों में पुलिस इन्हें तुरंत लागू कर देती है।
पहले भी मिली धमकियां, कार्रवाई न के बराबर
CJI गवई के खिलाफ पहले भी जान से मारने की धमकियों के दावे सामने आए। कुछ कट्टर समर्थक किस्म के बयान भी आए, जिनमें बेहद असभ्य और हिंसक भाषा का इस्तेमाल हुआ। तब भी कोई ठोस कार्रवाई नजर नहीं आई। अब फिर जूताकांड के बाद भी वही खामोशी और ढिलाई दिखी। यह पैटर्न चिंताजनक है, क्योंकि इससे गलत संदेश जाता है कि न्यायपालिका को निशाना बनाने पर भी असर नहीं होगा।
केंद्र सरकार के खिलाफ CJI के हालिया कदम
यह घटना ऐसे समय हुई, जब CJI गवई की कुछ टिप्पणियां और आदेश सीधे सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते दिखे। इसलिए इसे सिर्फ एक अलग घटना नहीं, बल्कि हालिया घटनाओं की कड़ी में भी देखा जा रहा है।
सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी पर नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी के मामले में जवाब मांगा। अदालत ने नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण तलब किया। यह कदम सरकार की एजेंसियों की कार्रवाई पर न्यायिक निगरानी का संकेत देता है। ऐसे मामलों में अदालत यह परखती है कि गिरफ्तारी और कार्रवाई कानून के अनुरूप हुई या नहीं।
मॉरीशस में CJI के बयान
CJI ने मॉरीशस में एक कार्यक्रम में कहा कि सरकार एक साथ जज और जल्लाद नहीं बन सकती। यह बात सीधी और स्पष्ट है, और बुलडोजर राजनीति पर तीखा सवाल उठाती है। संदेश साफ है, शासन संविधान से चलता है, ताकत से नहीं। यह वही बिंदु है जिसने कई समर्थकों को नाराज किया, और बहस यहीं से भड़की।
पुरानी कड़ियां, वक्फ कानून से अब तक
जब सुप्रीम कोर्ट ने पहले वक्फ कानून से जुड़े मामलों में सख्ती दिखाई, तब भी सरकार के समर्थक खेमे में गुस्सा दिखा। उस दौर में तत्कालीन CJI संजीव खन्ना पर भी तीखे आरोप लगाए गए, उन्हें कथित तौर पर गृह युद्ध जैसे शब्दों से जोड़ा गया। अब फिर, CJI गवई के बयान और नोटिस के बाद टारगेटिंग दिख रही है। यह क्रम दिखाता है कि जब भी अदालत सरकार की कार्रवाई पर सवाल उठाती है, एक धड़ा उसे निशाना बनाता है।
क्या यह सिर्फ कोर्टरूम का बवाल है, या संकेत कुछ और
इस घटना के कई परतें हैं। पहली, अदालत की सुरक्षा। दूसरी, राजनीतिक चुप्पी और चयनात्मक कार्रवाई। तीसरी, संवैधानिक पद की गरिमा। चौथी, वह संदेश जो देश को मिलना चाहिए, कि कानून सर्वोपरि है।
कुछ अहम प्रश्न सामने हैं:
- CJI की सुरक्षा का वास्तविक जिम्मेदार कौन है, और चूक कहाँ हुई?
- अगर जूता फेंका गया, तो मौके पर सख्त कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
- पुलिस पोस्टर पर तेज, अदालत की सुरक्षा पर धीमी क्यों दिखती है?
- राकेश किशोर की कथित रिहाई और जूता लौटाने की खबरें सही हैं, या सिर्फ चर्चा?क्या यह पूरा प्रकरण
- CJI के हालिया बयानों और नोटिस से जुड़ा हुआ है?
- इन सवालों के जवाब अभी साफ नहीं, पर बहस जरूरी है।
- न्यायपालिका पर हमला, प्रत्यक्ष हो या प्रतीकात्मक, लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत है। अदालतें मजबूत रहेंगी, तभी नागरिक अधिकार सुरक्षित रहेंगे।
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