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भारत की मूल भावना पर संकट: जिम्मेदार कौन?
भारत प्राचीन सभ्यता वाला एक विशाल देश है। इस देश में विभिन्न भाषाओं, संस्कृतियों ,पहचानों, जातियों , प्रजातियों के लोग निवास करते हैं। विविधता में एकता इसकी विशेषता है। यह देश हजारों साल की ऐतिहासिक प्रक्रिया में अस्तित्व में आया है।
खैबर के दर्रे से लेकर बंगाल की खाड़ी तक, गुजरात से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में एकता के मजबूत पहलू हैं। 1947 में धर्म के आधार पर हुआ देश का बंटवारा कहीं से उचित नहीं था।
भारत की मूल भावना पर संकट
मुल्क के इस अन्यायपूर्ण विभाजन के लिए मुख्य रूप से ब्रिटिश उपनिवेशवाद जिम्मेदार था , विभाजन को स्वीकार करने वाली पार्टियों – मुस्लिम लीग एवं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की जिम्मेदारी द्वितीयक एवं कमतर थी।
लेकिन जिन राजनीतिक शक्तियों ने किसी राष्ट्र, कौम या मुल्क की बुनियाद धर्म आधारित करने की वकालत की , वे अतीत के गुनहगार थे और आज वर्तमान के अपराधी हैं। इन फिरकापरस्त व साम्प्रदायिक ताकतों ने हमेशा देश में सद्भाव, समन्वय एवं सामंजस्य के माहौल को बिगाड़ने का काम किया है।
हमारा मानना है कि भारत का वजूद जिन बुनियादी मूल्यों को लेकर कायम है, उसमें उपनिवेशवाद विरोध, धर्मनिरपेक्षता, जनतंत्र, सामाजिक न्याय और समाजवाद – सबका अपना-अपना महत्व है।
साम्प्रदायिक और अंधराष्ट्रवादी शक्तियां
लेकिन नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) आज इन मूल्यों को ही नेस्तनाबूद करने में लगी हुई है। सच तो यह है कि इन मूल्यों के क्षरण के बाद देश की बुनियाद ही कमजोर पड़ जाएगी। लेकिन देश में नफरत एवं वैमनस्य का माहौल पैदा करने में लगी साम्प्रदायिक और अंधराष्ट्रवादी शक्तियां तो अपनी कट्टरपंथी और दकियानूसी सोच की सनक में किसी हद को पार करने पर आमादा हैं।
स्थिति की यह कैसी विडम्बना है कि जो लोग आज देश की एकता और अखंडता पर खतरे का सबसे ज्यादा शोर मचा रहे हैं, वही लोग आम जनता की एकता में फूट का बीज बोने का सबसे ज्यादा काम कर रहे हैं। ऐसी शक्तियों की शिनाख्त करना और उनके खिलाफ जीवन- मरण का संघर्ष करना आज का युगधर्म है।

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