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Education In Bihar: बिहार में शिक्षा व्यवस्था में बीते तीन दशक से उतार-चढ़ाव का दौर रहा है। नववर्ष 2025 की शुरुआत बढ़िया तरीके से हुई। इस अनोखी पहल का असर रहा कि स्कूल खुले, बच्चे भी आए, टीचर भी आए। इसी पर त्वरित टिप्पणी की है वरिष्ठ पत्रकार श्रीनिवास ने।
Education In Bihar: एक जनवरी को बिहार के स्कूलों में छुट्टी नहीं थी. मगर पढ़ाई भी नहीं हो रही थी. बच्चे बिना यूनिफ़ॉर्म के आये; शिक्षकों को निर्देश था कि उनके साथ इनवॉल्व रहें, उनके साथ खेल में, गीत-संगीत में शामिल रहें. सबों का भोजन स्कूल में बना, फलों की व्यवस्था भी थी.
एक जनवरी के लिए ऐसी पहल इसी साल हुई है, लेकिन इसके पहले भी शिक्षा विभाग ने कुछ अच्छी शुरुआत की थी- जैसे महापुरुषों के जन्मदिन पर स्कूल अब बंद नहीं होते. बच्चे आते हैं और शिक्षक उन्हें उन महापुरुषों के बारे में बताते हैं. इसके साथ ही अन्य मनोरंजन- खेल-संगीत आदि गतिविधियों में शामिल होते हैं.
यह सब इतनी आसानी से संभव नहीं हुआ. इसका श्रेय बिहार के ‘विवादास्पद’ शिक्षा सचिव केके पाठक की पहल और जिद को दिया जाता है. वे अब विभाग में नहीं हैं, लेकिन नये शिक्षा सचिव उस पहल को जारी रखते हुए कुछ नये आयाम जोड़ रहे हैं! बाकी शिक्षा की क्या स्थिति है, नहीं मालूम. मगर यह पहल तो अन्य राज्यों के लिए भी अनुकरणीय है. या शायद अन्य राज्यों में ऐसा हो रहा हो.
कल सुबह यह जानकारी अपनी भगिनी वर्षा (पिंकी) से मिली, जो बांका जिले चंदन प्रखंड के एक प्राइमरी स्कूल में शिक्षिका है. उसने नववर्ष के मौके पर फोन किया. वह स्कूल में थी. फिर पूरी बात बतायी. फिर पटना के साथी सी ए प्रियदर्शी से बात हुई. उन्होंने बताया कि इसके अलावा भी बिहार में स्कूली शिक्षा में सुधार की दिशा में कुछ उल्लेखनीय काम हुए हैं. उनसे डिटेल मांगा है. वे एक चैनल ‘विमश न्यूज’ से भी जुड़े हैं. उनसे कहा है कि इस पर एक अच्छी स्टोरी बन सकती है. शायद बनी हो. आज अपने गाँव (भागलपुर) में भी किसी से पूछा. वहाँ मिडिल स्कूल है. वहाँ भी ऐसा ही नजारा था.
बिहार और पूरे देश में शिक्षा की स्थित पर बहस की पूरी गुंजाइश है. फिलहाल वह मौका नहीं है.
बिहार में शिक्षा के क्षेत्र में एक अच्छी पहल पर प्रतिक्रियाएँ भी आई हैं। फुलवरिया के नवरतन कहते हैं कि ‘महापुरुषों के जन्मदिन या बिहार दिवस जैसे मौकों पर के के पाठक के पहले से ही स्कूल बंद नहीं होते थे. प्रायः इन अवसरों पर बच्चों के लिए कोई न कोई कार्यक्रम जरूर आयोजित होता रहा है.’
वहीं बैजानी की मनोज मीता का कहना है कि बहुत हद तक आपका आकलन सही है, पर आज भी अपने स्कूल के प्रति बिहारियों का विश्वास नहीं है. यहां हरेक गली में एक इंग्लिश स्कूल मिल जाएगा, जहां ढेर सारे थोड़ा ढंग से कमाने वालों के बच्चे पढ़ते हैं. यदि सरकारी स्कूलों के वर्तमान शिक्षक और व्यवस्था यह विश्वस पैदा कर सकें तो बिहार की शिक्षा में बदलाव आ सकता है. इसलिए कि अभी स्कूलों का इंफ्रस्ट्रक्चर मजबूत किया गया है, साथ ही टीचर भी पर्याप्त हैं.’
- श्रीनिवास, वरिष्ठ पत्रकार