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Election Commission: सुपरवाइज़र या कठपुतली? मतदान में धांधली के नए तरीके!

election commission supervisor or puppet new ways of rigging the elections
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भारत में वोटिंग करना मतलब, असली सुपरपावर अपने हाथ में होना। यही वो चीज़ है जिससे आम आदमी भी देश की किस्मत बदल सकता है – मतलब, बड़ा गेमचेंजर है। लेकिन जब वोटिंग में गड़बड़ होती है, या फिर वोट चोरी हो जाएं, तो सीधा-सीधा गड़बड़ सिग्नल जाता है पूरे सिस्टम में। अब सवाल उठता है – क्या चुनाव वाकई फेयर होते हैं? या फिर चुनाव आयोग (Election Commission) भी सरकार के इशारे पर नाच रहा है? बंदा क्या करे, वोट ही उसकी एकमात्र आवाज़ है। इसे सेफ रखना सीरियसली ज़रूरी है, वरना लोकतंत्र का क्या फायदा?

Election Commission: सुपरवाइज़र या कठपुतली?

कागज पर तो चुनाव आयोग बड़ा स्वतंत्र दिखता है, मगर असल में? इनका काम है चुनाव को ईमानदारी से कराना। सबको भरोसा हो, पारदर्शिता हो, लेकिन हकीकत में कई बार ऐसा लगता है जैसे कहीं न कहीं कोई न कोई दबाव है। वोटर लिस्ट से नाम गायब, फर्जी वोटिंग, ये सब तो अब आम बात हो गई है। चुनाव आयोग को तो सख्त एक्शन लेना चाहिए, मगर कई बार लगता है जैसे उनके हाथ बंधे हुए हैं।

अब की हालत और चुनौतियाँ

सच बोलूं तो, हालात पहले जितने भरोसेमंद नहीं हैं। सरकार का दखल बढ़ा है, और कई बार तो लगता है जैसे आयोग खुद भी कन्फ्यूज है। बिहार, यूपी, महाराष्ट्र – हर जगह चुनावी धांधली की खबरें वायरल हो जाती हैं। मीडिया में क्लिप्स घूम जाती हैं, लोग व्हाट्सएप पर भेजते रहते हैं – “देखो कैसे वोटिंग हो रही है!” सीधा असर लोकतंत्र पर पड़ रहा है, और जनता का भरोसा हिल जाता है।

वोटिंग में गड़बड़झाला – कहाँ से शुरू हुआ?

अब ये वोटर लिस्ट से नाम गायब करने का खेल भी चल रहा है। बिहार में 52 लाख नाम गायब? भाई, मजाक है क्या? यूपी में भी ऐसा ही। ये सब यूं ही नहीं हो जाता, कुछ तो गड़बड़ है। सोचो, अगर वोटर लिस्ट ठीक से बनती, तो इतने लोग आउट कैसे हो जाते? लगता है जैसे जानबूझकर खेल खेला जा रहा है।

टेक्नोलॉजी का ट्विस्ट – डिजिटल धांधली

अब तो वोटिंग मशीनें भी सेफ नहीं रहीं। हैकिंग, डेटा लीक, सरकारी अफसरों की सेटिंग—सब चलता है। सवाल ये है कि वोटिंग की पारदर्शिता कैसे बचाएं? क्या हमें नई टेक्नोलॉजी या नए नियम चाहिए? या फिर बस चुपचाप भरोसा कर लें? स्वच्छ चुनाव चाहिए तो निगरानी जबरदस्त चाहिए, वरना कुछ नहीं बदलने वाला।

राजनीति का मसाला – विपक्ष की बेमिसाल बातें

राहुल गांधी बोलते हैं कि इस बार फेयर वोटिंग होनी चाहिए। तेजस्वी यादव भी आग उगलते रहते हैं, कहते हैं—नाम गायब हो रहे हैं। विपक्ष तो मानता है कि सरकार और आयोग दोनों मिले हुए हैं। सोशल मीडिया पर कैंपेन चल रहा है, लोगों को समझाया जा रहा है कि “भाई, जागो, वरना सब गया।” घर-घर में अब ये बातें हो रही हैं।

आंदोलन, धरना और विद्रोह

बिहार में प्रदर्शन, यूपी में धरना – हर जगह लोग सड़कों पर हैं। अब जनता भी समझ गई है कि अगर अब नहीं बोले, तो फिर कभी नहीं बोल पाएंगे। इसलिए, बड़े आंदोलन की तैयारी हो रही है। ये सब दिखाता है कि बदलाव की भूख है, और लोकतंत्र को बचाने के लिए लोग मैदान में उतर रहे हैं।

चुनाव बहिष्कार  – सॉलिड आइडिया या उल्टा असर?

बहिष्कार आसान है – मत जाओ वोट डालने। मगर, इससे फायदा कम, नुकसान ज़्यादा। इससे तो सरकार और भी बेलगाम हो जाएगी। सही तरीका ये है कि लोग और ज्यादा जागरूक बनें, बढ़-चढ़कर हिस्सा लें। वोट ही असली ताकत है, यही देश को बदल सकता है।

फेयर चुनाव के लिए असली जुगाड़

सबसे पहले, वोटर लिस्ट दुरुस्त हो। आधार कार्ड, राशन कार्ड – जो भी आईडी हो, उससे नाम कन्फर्म करो। फालतू की गड़बड़ मत होने दो। हर वोटर को उसका हक मिलना चाहिए, बिना किसी झंझट के। तभी लोकतंत्र को सही मायने मिलेंगे, वरना सब बेकार।

कानूनी सुधार – बस अब बहुत हो गया

चुनाव कानून में अब तो बदलाव करो। चुनाव आयोग को और ताकत दो, सुप्रीम कोर्ट भी सख्ती दिखाए। सिर्फ बयानबाजी से कुछ नहीं होगा, कानून में दमदार बदलाव चाहिए ताकि कोई भी गड़बड़ी करने की सोच भी ना सके।

जनता की भागीदारी – असली गेमचेंजर

आखिर में, आप-हम सबको जागरूक रहना पड़ेगा। वोटिंग का सम्मान करो – यही तो अपनी असली पहचान है। सोशल मीडिया, कॉलेज, स्कूल – हर जगह जागरूकता फैलाओ। खासकर युवाओं को समझाओ – लोकतंत्र सिर्फ किताबों की बात नहीं, असल में तुम्हारे हाथ में है। तो उठो, सोचो, और अपना हक खुद इस्तेमाल करो!

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