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Lakhisarai में हर साल 100 मासूम तोड़ रहे दम, सतर्क नही हुए तो होंगे हालात बदतर
लखीसराय (Lakhisarai): 3 जुलाई 1994 को बिहार में मुंगेर से अलग कर बनाया गया यह जिला अब खून की कमी का प्रतीक बन चुका है। यह आंकड़ा अब सिर्फ किताबों में नहीं, बल्कि एक दर्द बन चुका है। बच्चे कुपोषण से जूझ रहे हैं, गर्भवती महिलाएं एनीमिया के बोझ तले दम तोड़ रही हैं। यूनिसेफ की नई रिपोर्ट ने चौंका दिया है। कहा गया है कि यहां हर 10 में से 7 बच्चे और महिलाएं खून की कमी से प्रभावित हैं। हालत इतनी खराब हैं कि हर साल 100 से अधिक नवजात इस खतरनाक बीमारी का शिकार हो जाते हैं। सरकारी दावे बहुत हैं, लेकिन जमीनी हकीकत उससे उलट दिख रही है। सामने आए आंकड़े हैरान कर देने वाले हैं।
हर साल Lakhisarai में 100 मासूम दम तोड़ रहे
सरकारी योजनाओं का सही तरीके से लागू होना जरूरी है। अगर समय रहते इन खामियों को नहीं सुधारा गया, तो यह नतीजा बच्चों के भविष्य और सेहत पर बड़ा गिरावट ला सकता है। लखीसराय में खून की कमी एक बहुत बड़ी स्वास्थ्य चुनौती बन चुकी है। यूनिसेफ की रिपोर्ट ने असली स्थिति का पर्दाफाश किया है। जिले में 6 से 54 महीने के लगभग 77.2 प्रतिशत बच्चे, 67.8 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं और 15-49 साल की 72.6 प्रतिशत महिलाएं इसकी चपेट में हैं। सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि 15 से 19 साल की किशोरियों में 75.1 प्रतिशत महिलाओं को खून की कमी है। डॉ. हरि प्रिया कहती हैं कि गर्भवती महिलाओं के लिए खून की कमी खतरनाक है। इससे बच्चे कमजोर होते हैं और उनके शुरुआती विकास पर बुरा असर पड़ता है। हर साल 100 से ज्यादा नवजात इस कारण मर जाते हैं।
अस्पतालों में हर कोशिश
स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि अस्पतालों में हर कोशिश की जा रही है। वहां सुरक्षित प्रसव, जांच, टीकाकरण और आयरन व कैल्शियम की गोलियां दी जा रही हैं। आंगनबाड़ी केंद्रों पर भी गर्भवती और धात्री महिलाओं को सप्लीमेंट दिया जा रहा है। पर रिपोर्ट के आंकड़े इन दावों को ही चुनौती देते हैं। स्थानीय चिकित्सक कहते हैं कि योजनाएं बनाने से फर्क नहीं पड़ेगा। सही पोषण, समय पर जांच और स्वास्थ्य सुविधाएं ही जरूरी हैं।
आलम यह है कि गर्भवती महिलाओं में पौष्टिक आहार की बहुत कमी है। जांच और देखभाल समय पर नहीं हो पाती। कई बार अस्पतालों और आंगनबाड़ी केंद्रों में दवा का वितरण भी ठीक से नहीं होता। डॉ. हरि प्रिया ने बताया कि गर्भावस्था में खून की कमी बहुत खतरा है। इससे बच्चे कमजोर होते हैं, कई बार यह मौत का कारण भी बन जाती है। जब तक महिलाओं को सही पोषण, जांच और इलाज नहीं मिलेगा, तब तक इस समस्या का हल नहीं निकल सकता।
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