Vimarsh News
Khabro Me Aage, Khabro k Pichhe

Maharashtra में किसानों की आत्महत्या: जनवरी से सितंबर तक एक हज़ार से ज़्यादा किसानों ने गंवाई जान

farmer suicides in maharashtra over thousand farmers lost their lives from 20250920 160057 0000
0 93

जनवरी से सितंबर 2025 के बीच महाराष्ट्र में एक हज़ार से ज़्यादा किसान अपनी जान गँवा चुके हैं। यह भयावह सच्चाई सरकार की कथित चुप्पी के बिल्कुल विपरीत है। इस मानवीय त्रासदी का विशाल स्वरूप तत्काल ध्यान और निर्णायक कार्रवाई की माँग करता है।

किसान बढ़ते कर्ज, अप्रत्याशित बेमौसम बारिश और अपनी फसलों की बेहद कम कीमतों के जाल में फँसे हुए हैं। ये भारी दबाव उन्हें निराशा की कगार पर धकेल रहे हैं। महाराष्ट्र की कृषि के गढ़, मराठवाड़ा और विदर्भ के इलाके खास तौर पर तबाह हैं, और उनके खेत इस जारी संकट से दागदार हो गए हैं।

सबके मन में एक अहम सवाल है: इस बढ़ते संकट से निपटने के लिए सरकार क्या कर रही है या क्या नहीं कर रही है? क्या वे सिर्फ़ आँकड़े इकट्ठा कर रहे हैं, या फिर ज़िंदगी बचाने के लिए कोई ठोस उपाय लागू करेंगे?

Maharashtra में किसानों की आत्महत्या: कड़वी सच्चाई

साल की शुरुआत एक चौंकाने वाले आंकड़े के साथ हुई। जनवरी से मार्च 2025 तक, 767 किसानों ने अपनी जान दे दी। यह आंकड़ा गहराते संकट की शुरुआती लहर को दर्शाता है, जो इस बात का स्पष्ट संकेत है कि राज्य के कृषि क्षेत्र में कुछ बहुत बड़ी गड़बड़ी है। शुरुआती महीनों ने बाकी साल के लिए एक विनाशकारी मिसाल कायम की।

अप्रैल-सितंबर: एक खतरनाक उछाल

अगले महीनों में स्थिति नाटकीय रूप से बिगड़ गई। अप्रैल और सितंबर के बीच, किसानों की आत्महत्याओं की संख्या दोगुनी से भी ज़्यादा हो गई। यह चिंताजनक वृद्धि दर्शाती है कि संकट न केवल जारी था, बल्कि तेज़ भी हो रहा था। संभवतः कई कारकों ने इस निराशाजनक वृद्धि को और बढ़ावा दिया, जिससे और अधिक परिवार अथाह दुःख में डूब गए।

क्षेत्रीय हॉटस्पॉट: मराठवाड़ा और विदर्भ

इस कृषि आपदा का खामियाजा कुछ खास इलाकों को भुगतना पड़ रहा है। मराठवाड़ा और विदर्भ किसान संकट के केंद्र बन गए हैं। ये इलाके ऐतिहासिक रूप से कृषि संबंधी चुनौतियों का सामना करते रहे हैं, जिनमें अनियमित मौसम और आर्थिक कमज़ोरियाँ शामिल हैं। कृषि पर उनकी निर्भरता उन्हें मौजूदा संकट के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील बनाती है।

किसान संकट के मूल कारण: अपंग कर देने वाले ऋण चक्र

इस संकट का एक प्रमुख कारण भारी कर्ज़ है। किसान अक्सर खेती की लागत चलाने के लिए बैंकों और अनौपचारिक ऋणदाताओं से कर्ज़ लेते हैं। जब मौसम या कम कीमतों के कारण फसलें खराब हो जाती हैं, तो वे ये कर्ज़ चुका नहीं पाते। इससे कर्ज़ का एक ऐसा चक्र बन जाता है जिससे बाहर निकलना असंभव हो जाता है, और इससे उन पर भारी मनोवैज्ञानिक और वित्तीय दबाव पड़ता है।

बेमौसम बारिश और जलवायु परिवर्तन

बदलती जलवायु महाराष्ट्र के खेतों पर कहर बरपा रही है। बेमौसम बारिश, अप्रत्याशित सूखा और विनाशकारी ओलावृष्टि लगातार बढ़ती जा रही है। ये चरम मौसम की घटनाएँ फसलों की पैदावार को तबाह कर देती हैं और उनकी गुणवत्ता को कम कर देती हैं। इससे होने वाले वित्तीय नुकसान से किसानों के लिए अगले सीज़न की योजना बनाना और उससे उबरना लगभग असंभव हो जाता है।

शोषणकारी बाजार मूल्य

फसलें सफलतापूर्वक उगाए जाने पर भी, किसानों को अक्सर अपनी उपज का बहुत कम दाम मिलता है। ये “ओ’ने-पने दाम” (मामूली दाम) अक्सर खेती की लागत भी नहीं निकाल पाते, मुनाफ़ा तो दूर की बात है। बिचौलियों का शोषण, बाज़ार की अक्षमताएँ और अपर्याप्त सरकारी ख़रीद नीतियाँ इस अनुचित मूल्य निर्धारण प्रणाली में योगदान करती हैं, जिससे किसान लगातार आर्थिक असुरक्षा की स्थिति में रहते हैं।

सरकारी प्रतिक्रिया: उदासीनता या निष्क्रियता?

सरकार की एक बड़ी आलोचना यह है कि वह सिर्फ़ “आँकड़े गिन रही है”। ठोस राहत उपायों को लागू करने के बजाय, उसका ध्यान आत्महत्याओं की संख्या के आँकड़े इकट्ठा करने पर केंद्रित है। यह कथित निष्क्रियता जनता की हताशा को बढ़ाती है और कृषक समुदाय में उपेक्षा की भावना को गहरा करती है। लोग सोच रहे हैं कि क्या सरकार सचमुच स्थिति की गंभीरता से वाकिफ़ है।

सरकार की प्रभावशीलता पर सवाल

विपक्षी दल और किसान संगठन सरकार की कार्यकुशलता पर तीखे सवाल उठा रहे हैं। वे जानना चाहते हैं कि प्रशासनिक प्रक्रियाओं से आगे बढ़कर क्या ठोस कदम उठाए जा रहे हैं। सरकार पर दबाव बढ़ रहा है कि वह कागजी कार्रवाई से आगे बढ़कर ज़रूरतमंदों को वास्तविक मदद मुहैया कराए। ज़मीनी स्तर पर क्या समाधान लागू किए जा रहे हैं?

सहायता प्रणालियों में अंतर

  • यद्यपि विशिष्ट योजनाएं कागज पर मौजूद हो सकती हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर उनकी प्रभावशीलता संदिग्ध है।
  • कई किसानों को मौजूदा फसल बीमा या ऋण माफी कार्यक्रमों का लाभ नहीं मिलता है।
  • नीतिगत इरादों और वास्तविक कार्यान्वयन के बीच का अंतर कमजोर किसानों को उनके सबसे चुनौतीपूर्ण समय के दौरान पर्याप्त समर्थन के बिना छोड़ देता है।

किसानों और विपक्ष की मांगें

किसान समूह और राजनीतिक नेता तत्काल राहत उपायों की मांग कर रहे हैं। इनमें तत्काल कर्ज माफी और संकटग्रस्त परिवारों को सीधी आर्थिक सहायता शामिल है। यह तात्कालिकता स्पष्ट है, क्योंकि इन मांगों पर विचार करते समय और भी जानें जा रही हैं। इन त्रासदियों को रोकने के लिए त्वरित कार्रवाई ज़रूरी है।

Leave a comment