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Gandhi Jayanti: महात्मा गाँधी की सादगी की कायल हैं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू

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Gandhi Jayanti: राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का कथन है कि “जी भर के जीयें। इस तरह से सीखिए जैसे कि आपको यहां हमेशा रहना है,”

Mahatma Gandhi ideas-  “Live as if you were to die tomorrow. Learn as if you were to live forever,”

 

इस कर्म के साथ प्रतिदिन एक-एक समय का उपयोग करते हुए इस तरह जीवन जीना चाहिए कि बस एक दिन बचा है। बस एक दिन ही बचा है, मगर ज्ञान अर्जित करते समय उसे निष्ठा से अपनाओ। इसके माने यह है कि ऐसा करके आप चिरकाल तक जिंदा रहोगे।

 

महात्मा गाँधी ने जीवन के अंतिम मुकाम तक खुद भी इस तरह सामने की हर चुनौती का मुकाबला करते हुए जीवित रहे थे।

 

आज राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने हिंदी अखबार में महात्मा गांधी पर लेख लिखा है। मुर्मू को सबसे ज्यादा गांधी का सादगी का बर्ताव पसंद आया है। इसकी वजह से वह प्रकृति के करीब हो जाते थे।

 

द्रौपदी मुर्मू लिखती हैं की गांधी विचार से यह समझ निकलती है, कि एक पत्ते को भी तोड़ो, तो पेड़ से क्षमा मांग लो। इसका मतलब यह हुआ की पत्ता तोड़ना बहुत आसान काम नहीं रह जाए।

 

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समाज में गांधी महिलाओं के स्थान, कला और शिल्प के पुनरुद्धार के साथ-साथ,  साम्राज्यवाद आधारित शोषण के मुद्दे पर सक्रिय थे।

 

द्रौपदी मुर्मू गाँधी की मृत्यु के एक दशक बाद जन्मी थीं।  उनके बड़े होने के समय में भी, उनके गांव के परिवेश में, गांधी उनकी सादगी और उनके प्रकृति प्रेम की बातें हुआ करती थी। ये बातें ही उनके मन को छू गईं।

 

आत्मकथा के अलावा द्रौपदी मुर्मू, गांधी के संस्मरणों की झांकियों को देने वाली एक किताब “बापू की झांकियां” का जिक्र करती हैं। उनके प्रसिद्ध सहयोगी काका कालेलकर ने  इसे लिखा था।

 

काका कालेलकर महात्मा गांधी के साथ 1930 में यरवडा जेल में थे। वहां कपास से धागा तैयार करने में नीम की पत्तियों की ज़रूरत हुई।

 

गांधी ने कालेलकर को कहा, कि पूरी टहनी तोड़ना ज़रूरी नहीं थी। कालेलकर को गांधी ने यह भी कहा था कि यदि चार पत्तियों की ही ज़रूरत हो तो  चार पत्तियों तोड़कर पेड़ से क्षमा मंगनी चाहिए। क्षमा मांगने से एक अनुशासन तो आ ही जाता है, कि ज़रूरत भर ही उपभोग करें — जरूरत भर ही पत्तियां तोड़ें।

 

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू पत्तियां तोड़कर क्षमा मांगने वाले गांधी के विचार में विश्व दृष्टि देखती हैं।

 

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने इस लेख में गांधी के प्रकृति दर्शन के बारे में लिखा है जो कि आज विश्व का सरोकार है।

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