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Punjab में आये बाढ़ पर “गोदी मीडिया” ब्लैकआउट

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Punjab में आये बाढ़ पर “गोदी मीडिया” ब्लैकआउट हो गई है। ऐसा लगता है कि मुख्यधारा के मीडिया संस्थान जानबूझकर पंजाब की बाढ़ को कम करके आंक रहे हैं या पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर रहे हैं। इसके बजाय, वे राजनीतिक अपमान और बयानों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। यह चुनिंदा कवरेज आपदा से ध्यान भटकाने की एक सोची-समझी कोशिश लगती है। व्यापक रिपोर्टिंग का अभाव पक्षपातपूर्ण पत्रकारिता का स्पष्ट संकेत है।

ऐसा लगता है जैसे मीडिया को राजनीतिक झगड़ों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए एक मौन समझौता, एक “सुपारी” या अनुबंध मिल गया हो। वे मानवीय संकट को कवर करने के बजाय एक माँ के अपमान पर बहस को प्राथमिकता दे रहे हैं। यह रवैया जनता को बाढ़ के प्रभाव के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी से वंचित करता है। यह सरकार पर कार्रवाई करने के लिए आवश्यक दबाव बनाने से भी रोकता है।

पंजाबी सितारे एकजुट

पंजाबी हस्तियों और सार्वजनिक हस्तियों ने बाढ़ राहत कार्यों के दौरान अविश्वसनीय एकजुटता दिखाई है। उनका योगदान “पंजाबी-यत” का एक सशक्त प्रदर्शन है, जो साझा पहचान और आपसी सहयोग की भावना है। दिलजीत दोसांझ, एमी विर्क और सोनू सूद जैसी हस्तियों ने महत्वपूर्ण दान दिया है। वे बाढ़ पीड़ितों की सहायता में सक्रिय रूप से शामिल हैं।

पत्रकार केपी मलिक विपरीत परिस्थितियों से उबरने में इसी सामूहिक भावना को दर्शाते हैं। कई कलाकार और सामाजिक हस्तियाँ मदद के लिए आगे आए हैं। उनकी उदारता पंजाब के लोगों के साथ उनके गहरे जुड़ाव को दर्शाती है। यह एकता मौजूदा संकट के बीच आशा की किरण है।

पंजाब का लचीलापन: विपरीत परिस्थितियों पर विजय पाने का इतिहास

पंजाब का बड़ी त्रासदियों से उबरने का एक लंबा इतिहास रहा है। पत्रकार केपी मलिक ने इस भावना को बखूबी दर्शाया है। वे वर्तमान संघर्षों और अतीत की विपत्तियों के बीच समानताएँ दर्शाते हैं। इनमें मुगल और ब्रिटिश शासन, 1947 के विभाजन का आघात और 1984 की घटनाएँ शामिल हैं।

पंजाबी लोगों में एक अंतर्निहित आत्मनिर्भरता और जुझारूपन है। उन्होंने इतिहास में अनगिनत चुनौतियों का सामना किया है। यह लचीलापन उनकी पहचान का मूल तत्व है। यह कठिन परिस्थितियों, यहाँ तक कि प्राकृतिक आपदाओं का भी सामना करने और उन पर विजय पाने की उनकी क्षमता को बढ़ावा देता है।

आपदा का पैमाना: तथ्य और आंकड़े

बाढ़ के प्रभाव की वास्तविकता बेहद कठोर और सत्यापन योग्य है। पंजाब के सभी 23 ज़िले प्रभावित हैं। 1200 से ज़्यादा गाँव बाढ़ के पानी में डूबे हुए हैं। दुखद बात यह है कि कम से कम 30 लोगों की जान जा चुकी है। पठानकोट में सबसे ज़्यादा छह मौतें हुई हैं।

लुधियाना, अमृतसर और बरनाला जैसे अन्य ज़िलों में भी भारी नुकसान हुआ है। लाखों लोग विस्थापित हुए हैं, उन्हें अपना घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा है। आर्थिक नुकसान भी काफ़ी ज़्यादा है, और आंकड़े बताते हैं कि सिर्फ़ गुरुदासपुर और अमृतसर जैसे इलाक़ों में ही लाखों का नुकसान हुआ है। ये आँकड़े आपदा की भयावहता की भयावह तस्वीर पेश करते हैं।

कार्रवाई की अपील: चिंता की आवाज़ें

केपी मलिक की सरकार की अनुपस्थिति की आलोचना
वरिष्ठ पत्रकार केपी मलिक ने सरकार की अनुपस्थिति पर तीखी टिप्पणी की है। उन्होंने कहा कि पंजाब के लचीलेपन पर चर्चा में सरकारी संस्थाओं का ज़िक्र कम ही होता है। इससे पता चलता है कि सरकारी संस्थाओं से उम्मीदें कम ही हैं, अगर हैं भी तो कम। उनकी अंतर्दृष्टि सरकारी उपेक्षा के बारे में जनता की धारणा को रेखांकित करती है।

मीका सिंह की प्रधानमंत्री से सार्वजनिक अपील

प्रमुख हस्तियाँ सीधे प्रधानमंत्री से सार्वजनिक अपील कर रही हैं। उदाहरण के लिए, गायक मीका सिंह ने प्रधानमंत्री मोदी से हस्तक्षेप करने और सहायता प्रदान करने का आग्रह किया है। कई नागरिक भी सरकार से अनुरोध कर रहे हैं कि कम से कम मदद का दिखावा तो करें। यह प्रत्यक्ष कार्रवाई और समर्थन की व्यापक इच्छा को दर्शाता है।

प्रधानमंत्री ने कथित तौर पर पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान से बात की। हालाँकि, कई लोगों को लगता है कि यह नाकाफी है। लोग किसी भी तरह की कार्रवाई, या कार्रवाई के दिखावे की भी गुहार लगा रहे हैं। ठोस समर्थन के अभाव में कई लोग खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं।

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