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हिमंत बिस्वा सरमा सरकार को 3,000 बीघा भूमि आवंटन मामले में High Court से मिली फटकार
हिमंत बिस्वा सरमा सरकार को High Court से मिली फटकार
असम में हिमंत बिस्वा सरमा सरकार द्वारा 3,000 बीघा भूमि के बड़े आवंटन ने कानूनी विवाद को जन्म दे दिया है। यह निर्णय जनजातीय अधिकारों और संवैधानिक सुरक्षा उपायों पर गंभीर प्रश्न उठाता है। यह विवाद महाबल सीमेंट कंपनी को भूमि के एक बड़े हिस्से के आवंटन पर केंद्रित है।
इस कदम को अदालत में चुनौती दी गई है, जिसके परिणामस्वरूप गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने कड़ी फटकार लगाई है। यह लेख भूमि आवंटन के विवरण, उच्च न्यायालय की कड़ी प्रतिक्रिया और असम में जनजातीय भूमि अधिकारों, विशेष रूप से संविधान की छठी अनुसूची के तहत संरक्षित क्षेत्रों, पर इसके व्यापक प्रभावों का अन्वेषण करता है।
महाबल सीमेंट कंपनी का भूमि अधिग्रहण: जाँच के दायरे में
असम सरकार ने महाबल सीमेंट कंपनी को 3,000 बीघा भूमि आवंटित की है। भूमि का यह बड़ा हस्तांतरण गंभीर चिंताएँ पैदा कर रहा है। इस भूमि का विशिष्ट स्थान महत्वपूर्ण है। यह ऐतिहासिक रूप से स्वदेशी आदिवासी समुदायों से जुड़े क्षेत्र में स्थित है। यह विवरण सरकार के निर्णय की संवेदनशीलता को और बढ़ा देता है।
सरकार का तर्क और औचित्य
सरकार ने इस भूमि अनुदान के कुछ उद्देश्य बताए हैं। अधिकारियों ने संभावित आर्थिक और विकासात्मक लाभों का हवाला दिया। हालाँकि, ये दावे अब गहन जाँच के दायरे में हैं। हमें उन विशिष्ट नीतियों या सरकारी आदेशों की जाँच करने की आवश्यकता है जिनके कारण इतनी बड़ी भूमि का हस्तांतरण हुआ। नीतिगत ढाँचे को समझना इस निर्णय की निष्पक्षता का आकलन करने के लिए महत्वपूर्ण है।
गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने भूमि सौदे की कड़ी निंदा की
गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने अपनी नाराजगी नहीं छिपाई। न्यायमूर्ति संजय कुमार मेधी ने आवंटन पर आश्चर्य और अविश्वास व्यक्त किया। उन्होंने निर्णय के तर्क पर ज़ोरदार सवाल उठाए। “क्या यह मज़ाक है?”
न्यायालय का हस्तक्षेप संवैधानिक सुरक्षा उपायों पर आधारित है। भारतीय संविधान की छठी अनुसूची यहाँ महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसका उद्देश्य जनजातीय भूमि अधिकारों और स्वायत्तता की रक्षा करना है। यह भूमि आवंटन मूल जनजातीय आबादी के अधिकारों का उल्लंघन कर सकता है। ये समुदाय आवंटित क्षेत्र में या उसके आसपास रहते हैं।
छठी अनुसूची के उद्देश्य को समझना
छठी अनुसूची को संविधान में एक उद्देश्य से शामिल किया गया था। इसका उद्देश्य जनजातीय समुदायों और उनकी पैतृक भूमि की रक्षा करना है। असम के लिए विशिष्ट प्रावधान महत्वपूर्ण हैं। ये प्रावधान उन क्षेत्रों पर लागू होते हैं जहाँ जनजातीय आबादी अधिक है। यह अनुसूची जनजातीय स्वशासन और संसाधन प्रबंधन सुनिश्चित करती है।
छठी अनुसूची क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर भूमि हस्तांतरण समस्याग्रस्त हो सकता है। जनजातीय भूमि का हस्तांतरण एक ऐतिहासिक मुद्दा है। इसे रोकने के लिए कानूनी तंत्र मौजूद हैं। इस तरह के बड़े आवंटन जनजातीय शासन को प्रभावित कर सकते हैं। ये जनजातीय परिषदों द्वारा अपने संसाधनों के प्रबंधन के तरीके को भी प्रभावित कर सकते हैं।
कानूनी चुनौती और सरकार का जवाब
इस भूमि आवंटन को चुनौती देते हुए एक कानूनी याचिका दायर की गई है। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि सरकार का निर्णय संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करता है। उनका दावा है कि यह आदिवासी समुदायों के अधिकारों की अवहेलना करता है। उनके तर्क का मूल छठी अनुसूची द्वारा प्रदत्त सुरक्षा पर आधारित है।
सरकार द्वारा स्पष्टीकरण की समय-सीमा
अदालत ने असम सरकार को कार्रवाई करने का आदेश दिया है। उन्हें 1 सितंबर तक जानकारी देनी होगी। इस जानकारी में भूमि आवंटन की नीति और कारणों की व्याख्या होनी चाहिए। सरकार की प्रतिक्रिया महत्वपूर्ण होगी। हम देखेंगे कि वे इस महत्वपूर्ण निर्णय को कैसे उचित ठहराते हैं।
असम में आदिवासी अधिकारों के व्यापक परिणाम
यह विवादास्पद आवंटन एक मिसाल कायम कर सकता है। आदिवासी क्षेत्रों से जुड़े भविष्य के भूमि सौदे भी इसी तरह हो सकते हैं। इसी तरह के मामलों पर इसके प्रभाव पर विचार करना आवश्यक है। आदिवासी भूमि संरक्षण उपायों को मजबूत करना भी महत्वपूर्ण है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि स्वदेशी लोगों के अधिकारों की रक्षा की जाए।
जन जागरूकता और वकालत की भूमिका
आदिवासी समुदायों को उनके भूमि अधिकारों के बारे में सूचित करना महत्वपूर्ण है। जन जागरूकता इन समुदायों को सशक्त बना सकती है। वकालत समूह और नागरिक समाज संगठन इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे आदिवासी आबादी के हितों की रक्षा करते हैं। आदिवासी हितों की रक्षा के लिए उनके प्रयास अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
निष्कर्ष
उद्योगों के लिए सरकारी भूमि आवंटन और आदिवासी अधिकारों के बीच टकराव स्पष्ट है। हिमंत बिस्वा सरमा सरकार के फैसले का कड़ा विरोध हो रहा है। गुवाहाटी उच्च न्यायालय का हस्तक्षेप इस तनाव को उजागर करता है। संवैधानिक सिद्धांतों को बनाए रखने में न्यायपालिका की भूमिका महत्वपूर्ण है। यह हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए न्याय सुनिश्चित करती है। पारदर्शिता, जवाबदेही और संवैधानिक प्रावधानों का पालन आवश्यक है।
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