Sen your news articles to publish at [email protected]
History Of Noida: जिसकी बनने की कहानी Emergency के दौरान हुई
नोएडा (Noida) आज भारत का एक जाना-माना शहर है, लेकिन इसकी शुरुआत कैसे हुई? इसे कैसे योजना बनाई गई और आने वाले दिनों में इसकी राह क्या है? यह सवाल बहुत सारे लोगों के मन में रहते हैं। इस लेख में हम आपको विस्तार से History Of Noida के बारे में बताएंगे कि कैसे यह शहर अपने जन्म से लेकर आज के जटिल व तेज़ी से बढ़ते रूप में पहुँचा। साथ ही, भविष्य के लिए उसकी नई योजनाओं का भी अंदाजा लगाएंगे।
भारत में तेजी से बढ़ते उद्योग और आबादी को ढालने के लिए नई जगहों का विकास जरूरी था। उस जद्दोजहद में नोएडा का नाम उभरा। यह शहर अपनी अनोखी योजना, साफ-सुथरे रास्ते, और व्यवस्थित ढांचे के कारण खास बन गया है। आज हम इस शहर का इतिहास (History), उसका अब का स्वरूप और आने वाला भविष्य समझने की कोशिश करेंगे। इस कहानी से आप जानेंगे कि कैसे एक सपना साकार हुआ और कैसे यह शहर भारत का एक बड़ा औद्योगिक एवं शहरी केंद्र बन गया।
History Of Noida: इमर्जेंसी (Emergency) से शुरुआत और निर्माण
1975 में जब भारत में आपातकाल (Emergency) था, तो सरकार ने सोचा कि देश में प्रदूषण और प्रदूषित फैक्ट्रियों को लेकर एक बदलाव आए। संजय गांधी और एनडी तिवारी के बीच एक बैठक हुई, जिसमें तय किया गया कि दिल्ली से फैक्ट्रियों को बाहर भेजा जाए। दिल्ली में बढ़ते धुआं, आवाजाही और कचरे से शहर का जीवन कठिन हो रहा था। इसलिए, संजय गांधी ने एक नई जगह की जरूरत महसूस की। दोनों ने मिल कर फैसला किया कि यमुना के पार जमीन खरीद कर फैक्ट्रियों को वहां शिफ्ट कर दिया जाएगा। इससे दिल्ली की आबादी और प्रदूषण दोनों में राहत मिलेगी।
औद्योगिक परियोजना का तेजी से गठन
1975 से 1977 के बीच इस योजना को अमली जामा पहनाया गया। एनडी तिवारी के नेतृत्व में जमीन का सर्वे हुआ, अधिकारियों की टीम ने नापतोल की और फिर तुरंत काम शुरू हुआ। इस दौरान कई अड़चनें आई जैसे कानूनी मसले, किसानों का विरोध और भूमि का अधिग्रहण। उस समय कई किसान अपने खेत और घर छोड़ने को तैयार नहीं थे। इन सबके बीच, योजना को पूरा करने का ठेका तेजी से पूरे देश में फैल गया। पहली बार इतनी व्यापक और योजनाबद्ध तरीके से शहर बनाने का काम हुआ।
कानूनी सवाल और शाह आयोग की रिपोर्ट
1977 में जब आपातकाल खत्म हुआ, तो इस परियोजना की कानूनी वैधता पर सवाल उठने लगे। शाह आयोग का गठन हुआ। इसमें यह पता लगाया गया कि जमीन अधिग्रहण और निर्माण सही तरीके से हुआ या नहीं। आयोग ने पाया कि 1975-77 में अभी भी जमीन किसानों के कब्जे में थी और उनका मुआवजा भी कम मिला। जगदीश खट्टर, जो उस समय इस प्रोजेक्ट के जिम्मेदार अधिकारी थे, ने नोट लिखकर चेतावनी दी थी कि बिना कानूनी प्रक्रिया के शहर बनाना गलत है। इस चेतावनी को ऊपर के अधिकारियों ने नजरअंदाज कर दिया। अंततः, कानूनी विवादों के कारण योजना को रोकना पड़ा, लेकिन फिर भी काम अधूरा नहीं रहा।
राजनीतिक उतार-चढ़ाव और परियोजना का प्रभाव
1977 में सरकार बदली। कांग्रेस की जगह जनता पार्टी आई। फिर भी, नोएडा का निर्माण चलता रहा। नोटिस दिए गए कि यह प्रोजेक्ट कानूनी तौर पर सही नहीं था, फिर भी काम जारी रहा। धीरे-धीरे, किसान और स्थानीय लोगों का नाराजगी बढ़ती गई। अदालतों में कई मुकदमे चले, लेकिन किसी को निर्णायक फैसला नहीं मिला। फिर, 1984 में जब फिर से कांग्रेस सरकार बनी, तो इस प्रोजेक्ट को नई रफ्तार मिली। पर, कानूनी विवाद अभी भी खत्म नहीं हुआ था।
नोएडा का विकास: योजनाबद्ध शहर के रूप में
1980 और 1990 के दशक में नोएडा ने अपने औद्योगिक विस्तार की शुरुआत की। सेक्टर 1 से 11 तक छोटी-बड़ी फैक्ट्रियां लगीं। बजाज ऑटो, एचएमटी, मोदी ग्रुप जैसी कंपनियों ने यहां अपने प्लांट लगाए। यह शहर अब सिर्फ एक औद्योगिक क्षेत्र बन चुका था। सेक्टर आधारित इस योजना से शहर के हर कोने में फोकस बढ़ रहा था। छोटे और बड़े उद्योग मिल कर शहर को एक मज़बूत पहचान देने लगे।
1990 के दशक में आईटी क्रांति और नई योजनाएँ
1991 में भारत की आर्थिक नीति बदल गई। बाद में, आईटी कंपनियों ने नोएडा में अपने कार्यालय खोलने शुरू किए। TCS, HCL, Infosys जैसी कंपनियों ने सेक्टर 62, 63 में अपने सेंटर बनाए। इस तरह, नोएडा सिर्फ फैक्ट्रियों का शहर नहीं रहा बल्कि भारत का एक नया हब बन गया तकनीकी क्षेत्र में। इसका फायदा यह हुआ कि लाखों युवा यहां रोजगार पाने लगे।
रियलस्टेट और बुनियादी ढांचे का विस्तार
समय के साथ ही पूरे शहर की सड़कों और सुविधाओं का विस्तार हुआ। बड़े टाउनशिप जैसे विश टाउन का निर्माण हुआ, जहां घर, स्कूल, अस्पताल और पार्क सब मिल गए। सड़कें ग्रिड सिस्टम पर बनीं, जिससे ट्रैफिक जाम से निजात मिली। मेट्रो नेटवर्क शुरू हुआ, जिससे शहर के एक छोर से दूसरे छोर तक आसानी से आने-जाने का रास्ता बन गया। अब, यह शहर एक व्यवस्थित योजना का नतीजा था।
चुनौतियां और सुधार
2000 के दशक में क्राइम की घटनाएं भी बढ़ीं। कुछ बड़े केस जैसे निठारी और आरुषि हत्याकांड ने लोगों को डरा दिया। ऐसा लग रहा था कि शहर का विकास कहीं रुक जाएगा। पर नई सरकार ने पॉवर सिस्टम सुधार कर, पुलिस की संख्या बढ़ाकर, सुरक्षा मजबूत की। पुलिस स्टेशन की संख्या भी बढ़ाई गई। इन कदमों से शहर सुरक्षित होने लगा।
नोएडा का शिक्षा और मीडिया का केंद्र बनना
नोएडा में अब हज़ारों कोचिंग सेंटर्स और यूनिवर्सिटी हैं। यूपीएससी परीक्षाओं से लेकर प्रतियोगी परीक्षाओं तक, बड़े कोचिंग संस्थान यहां हैं। बेस्ट सेंटर्स शहर में हैं, जो युवाओं को बेहतर तरीके से तैयार कर रहे हैं। बड़ी यूनिवर्सिटी और कॉलेज भी यहां स्थापित हो चुकी हैं। यहां से रिसर्च, पढ़ाई और करियर सब आसान हो गया है।
मीडिया और फिल्म सिटी का निर्माण
साल 1988 में सेक्टर 16ए में भारत की पहली फिल्म सिटी बन गई। इसे संदीप मारवा ने शुरू किया। आज, भारत के कई बड़े न्यूज चैनल जैसे Zee, India Today, ABP यहां हैं। इसके साथ ही, टीवी सीरियल्स और फिल्मों की शूटिंग यहां होती है। इस वजह से, नोएडा अब media का बड़ा हब बन चुका है। इसे शार्ट में कहें तो, नोएडा अब सिर्फ फैक्ट्रियों का शहर नहीं, बल्कि मीडिया का केंद्र भी बन चुका है।
भविष्य की दिशा में शिक्षा और मीडिया
अब भविष्य में यहां नई कोचिंग संस्थान, डिजिटल मीडिया हब और टेक्नोलॉजी पार्क बनेंगे। नई पीढ़ी के लिए नई चुनौती और अवसर दोनों मौजूद हैं। इससे रोजगार के साथ-साथ देश का भविष्य भीbright हुआ है।
नोएडा का भविष्य: मास्टर प्लान 2041 और नई संभावनाएँ
उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल ही में मास्टर प्लान 2041 पेश किया है। इसके तहत, नोएडा में न्यू नोएडा नाम का इलाका विकसित होगा। यहां बड़े उद्योग पार्क, लॉजिस्टिक्स सेंटर और मेडिकल डिवाइस फैक्ट्री लगेगी। यह शहर को और भी आधुनिक, स्मार्ट और सुविधाजनक बनाने का प्रयास है।
मुख्य प्रोजेक्ट्स और इंफ्रास्ट्रक्चर
इस नए प्लान के तहत, जेवर एयरपोर्ट, एक्सप्रेसवे और तेज़ी से बढ़ रहे आरआरटीएस प्रोजेक्ट के साथ-साथ नई सड़कों का निर्माण होगा। इस योजना से शहर का विस्तार होगा, और साथ में करोड़ों लोगों के रोजगार के अवसर खुलेगा। इसमें हर जरूरत को ध्यान में रखकर, हरे-भरे पार्क, किफायती घर और खेल के मैदान भी बनाए जाएंगे।
पर्यावरण और स्थिरता
इस योजना का एक अहम हिस्सा है पर्यावरण का संरक्षण। ड्रेनेज सिस्टम और हरियाली बढ़ाने पर जोर दिया जाएगा। इससे न सिर्फ जलभराव से बचा जाएगा, बल्कि नये शहर का जीवनस्तर भी ऊंचा रहेगा।
निष्कर्ष
नोएडा का इतिहास संघर्ष और सफलताओं का मिश्रण है। शुरुआत में कानूनी उलझनों और विरोध के बावजूद, यह शहर नया पढ़ाई, उद्योग और मीडिया का केंद्र बना। अब, विकसित होते हुए, इस शहर को बेहतर सुविधाएं, स्मार्ट इंफ्रास्ट्रक्चर और नई योजनाएं मिल रही हैं। 2041 तक, यह भारत का एक बड़ा औद्योगिक और नागरिक केंद्र बन जाएगा। अगर हम सब मिलकर सही दिशा में काम करें, तो नोएडा का भविष्य और भी उज्जवल होगा। यह शहर अपने मेहनती लोगों, मजबूत योजनाओं और निरंतर प्रगति के साथ देश का मान बढ़ाएगा।
इसे भी पढ़ें – क्या भारत वास्तव में दुनिया की Fourth Largest Economy हैं?