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Jagdeep Dhankar का अपमान, 24 घण्टे के भीतर घर खाली करवाना शुरू
हाल ही में भारतीय राजनीति में एक बड़ा उलटफेर देखने को मिला है। जहां मोदी सरकार अपने प्रभाव के साथ सब कुछ नियंत्रित करने का प्रयास कर रही है, वहीं उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankar) का अचानक इस्तीफा और घर जल्दी खाली करने का मामला चर्चा का विषय बन गया है। यह घटना सिर्फ एक औपचारिकता नहीं बल्कि सरकार और विपक्ष के बीच एक बड़े संकेत की तरह है। यह घटनाक्रम जनता के बीच राजनीतिक गरिमा और सम्मान का बड़ा सवाल खड़ा करता है।
Jagdeep Dhankar का अपमान, 24 घण्टे के भीतर घर खाली करवाना
आमतौर पर, किसी पद से इस्तीफा देने वाले को कम से कम 15 से 30 दिनों का नोटिस दिया जाता है। मगर इस बार, सिर्फ 24 घंटे के भीतर उपराष्ट्रपति का घर खाली करने का फरमान जारी हो गया। इससे साफ पता चलता है कि यह घटना किस तरह से अचानक और तात्कालिक फैसले के तहत ली गई। इस्तीफा स्वीकार होने के तुरंत बाद ही, उनका सामान पैक करना शुरू कर दिया गया और अविलंब घर खाली करवाया गया। बरसों से चली आ रही परम्पराओं के विपरीत, यह प्रक्रिया बहुत ही असामान्य है।
विपक्ष और विपक्षी नेताओं की प्रतिक्रिया
विपक्ष का कहना है कि यह सब दबाव में हुआ है। विपक्ष का आरोप है कि सरकार ने राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के नाम पर प्रेसर tactics अपनाए। कुछ नेताओं ने दावा किया कि उन्हें मिलने का समय तक नहीं दिया गया। जो नेता अक्सर उपराष्ट्रपति से मिलने का मन बनाते थे, उन्हें भी मना कर दिया गया। इस तरह का कठोर कदम दर्शाता है कि सत्ता पक्ष किस तरह से विरोधियों को दबाने की रणनीति पर काम कर रहा है।
उपराष्ट्रपति का गरिमा पूर्ण सम्मान क्यों नहीं दिया गया?
सामान्य तौर पर, अपने पद से इस्तीफा देने के बाद किसी भी वरिष्ठ नेता का सम्मानपूर्ण विदाई समारोह होता है। इससे उनकी गरिमा और साख बनी रहती है। बड़े नेताओं की विदाई में सम्मान और समारोह का खास ध्यान रखा जाता है। मगर इस बार, न तो कोई फेयरवेल का आयोजन हुआ और न ही उन्हें सम्मानित किया गया। यह सभी को हैरान कर देने वाला है।
इस बार घटनाक्रम का विश्लेषण
सरकार का यह कदम खास तौर पर सोच समझ कर लिया गया प्रतीत होता है। बिना कोई सम्मान तय किए चलना कहीं न कहीं सुरक्षा कारणों या राजनीतिक फायदे की ओर इशारा करता है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह एक चेतावनी है कि सरकार अपने विरोधियों को कैसे दबाना चाहता है। इस घटना के पीछे का कारण राजनीति में होने वाले बदलाव और पक्षपात को भी संकेतित करता है।
सरकार और भाजपा का दृष्टिकोण
मोदी समर्थकों की मंडली हमेशा से ‘रबर स्टैंप’ नेताओं को आगे लाती रही है। यह कदम उसी दिशा का एक उदाहरण है। भाजपा और उसकी भक्त मंडली पहले से ही अपने नेताओं को अनुशासन में रखने की कोशिश कर रही है। इस तरह की कार्रवाई में, मोदी के आगे झुकने वाले नेताओं का क्या हश्र होगा, यह देखा जाना बाकी है। यह घटना इस बात का संकेत है कि राजनीतिक लिगेसी में बदलाव हो रहा है।
विपक्ष और जनता की प्रतिक्रिया
सोशल मीडिया, समाचार चैनल और जनता का जागरूक तबका सरकार के इस कदम का विरोध कर रहा है। लोग कह रहे हैं कि यह आसान नहीं है कि कोई नेता अपने पद से जल्द ही और बिना सम्मान के हटाया जाए। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो और टिप्पणियों में जनता का गुस्सा खुल कर देखा जा सकता है। यह स्पष्ट है कि लोग गरिमा और सम्मान के पक्ष में हैं।
उपराष्ट्रपति पद के चुनाव और नई प्रक्रिया
जल्द ही, चुनाव आयोग ने प्रक्रिया शुरू कर दी है। उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए उम्मीदवारों का चयन होगा। सरकार और विपक्ष दोनों ही अपनी-अपनी रणनीति बना रहे हैं। संभावित उम्मीदवारों की लिस्ट बन रही है और सभी eyes मैदान पर हैं। यह दौर काफी उत्सुकता भरा है क्योंकि राजनीतिक समीकरण बदलते नजर आ रहे हैं।
सरकार और विपक्ष के बीच खींचतान
यह घटना, केवल एक पद का मामला नहीं बल्कि सत्ता के खेल का हिस्सा है। विपक्ष अभी से ही सरकार की आलोचना कर रहा है। वहीं, सरकार अपनी रणनीति के तहत अपने मनमुताबिक कदम उठा रही है। इससे संसदीय कार्यवाही पर भी असर पड़ सकता है। राजनीतिक स्थिरता का सवाल भी बन रहा है।
सामाजिक और राजनीतिक सुधार के सुझाव
इस पूरे घटनाक्रम से हमें सीख लेनी चाहिए कि नेताओं का सम्मान जरूरी है। गरिमा और मर्यादा का उल्लंघन राजनीतिक संस्कृति को कमजोर करता है। सरकार और नेताओं को चाहिए कि वे अधिक जिम्मेदार और जागरूक बनें। जनता भी अधिक जागरूक होकर अपने अधिकारों का प्रयोग करे।
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