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क्या BJP बैकफुट पर है? उपराष्ट्रपति चुनाव से पहले मोदी “खौफ” के साये में!
आगामी उपराष्ट्रपति चुनाव राजनीतिक गलियारों में गर्माहट ला रहे हैं। विपक्ष ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के सांसदों को निशाना बनाकर एक साहसिक रणनीति शुरू की है। स्पष्ट बहुमत के बावजूद, सत्तारूढ़ भाजपा (BJP) थोड़ी चिंतित दिख रही है। सुदर्शन रेड्डी को उम्मीदवार बनाने में राहुल गांधी की भूमिका थी। रेड्डी ने तब एनडीए सांसदों के अलग तरह से मतदान करने की संभावना को लेकर एक बड़ा दावा किया था।
रिपोर्टों से पता चलता है कि एनडीए बाहरी तौर पर सरकार का समर्थन तो कर रहा है, लेकिन असली परीक्षा मतदान के दिन होगी। इससे कई लोग सोच रहे हैं कि क्या यही वजह है कि पर्याप्त संख्याबल होने के बावजूद भाजपा समर्थन जुटाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है।
एक बड़ा घटनाक्रम यह है कि चुनाव से ठीक पहले प्रधानमंत्री मोदी ने एनडीए सांसदों को अचानक 9 सितम्बर को रात्रिभोज का निमंत्रण दिया। ऐसा लगता है कि यह सभी को नियंत्रण में रखने की एक चाल है। सूत्रों का कहना है कि पीएम मोदी इस रात्रिभोज का इस्तेमाल अपने सहयोगियों की किसी भी चिंता को कम करने के लिए करेंगे। मौजूदा हालात को देखते हुए, यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि उपराष्ट्रपति चुनाव में कौन किसका समर्थन करेगा, खासकर गुप्त मतदान में।
विपक्ष का रणनीतिक मास्टरस्ट्रोक: एनडीए सांसदों पर निशाना
सुदर्शन रेड्डी को विपक्ष का उम्मीदवार चुनने में राहुल गांधी की भागीदारी एक चतुर चाल थी। यह सत्तारूढ़ गठबंधन को सीधे चुनौती देने की कोशिश का संकेत है। यह चुनाव एनडीए सांसदों को प्रभावित करने के विशिष्ट उद्देश्य से किया गया था। गांधी की व्यक्तिगत भागीदारी, एक प्रतिस्पर्धी मुकाबला बनाने के विपक्ष के दृढ़ संकल्प को उजागर करती है।
सुदर्शन रेड्डी के एनडीए में संभावित क्रॉस-वोटिंग के दावों ने एक बड़ी बहस छेड़ दी है। उनके खुलासे बताते हैं कि एनडीए के सभी सांसद पूरी तरह से प्रतिबद्ध नहीं हैं। ये आरोप निश्चित रूप से भाजपा के आत्मविश्वास को हिला सकते हैं। इससे लोगों को यह सवाल उठता है कि उनका बहुमत वास्तव में कितना मज़बूत है।
असली मुकाबला मतदान के दिन ही सामने आ सकता है। गुप्त मतदान प्रणाली सांसदों को स्वतंत्र रूप से मतदान करने की अनुमति देती है। इससे अप्रत्याशित गठबंधन और मतदान पैटर्न बन सकते हैं। भारत के ऐतिहासिक चुनावों ने दिखाया है कि क्रॉस-वोटिंग परिणाम बदल सकती है।
क्या BJP बैकफुट पर है: बहुमत पर्याप्त नहीं?
एनडीए सांसदों के लिए प्रधानमंत्री मोदी का अचानक आयोजित रात्रिभोज एक महत्वपूर्ण घटना है। यह महत्वपूर्ण उपराष्ट्रपति चुनाव से ठीक पहले हो रहा है। यह सभा अपने समर्थन आधार को परखने और उसे मज़बूत करने का एक तरीका प्रतीत होता है। यह सहयोगियों के लिए रोल कॉल जैसा है।
इस रात्रिभोज का मुख्य उद्देश्य गठबंधन सहयोगियों के बीच किसी भी चिंता का समाधान करना प्रतीत होता है। गठबंधन की राजनीति में एकता बनाए रखना बेहद ज़रूरी है। भाजपा शायद यह सुनिश्चित करना चाहती है कि सभी सहयोगी दल एक साथ रहें। वे शायद किसी भी मुद्दे को समस्या पैदा करने से पहले सुनना चाहते हैं।
समर्थन जुटाने की भाजपा की जल्दबाज़ी सवाल खड़े करती है। बहुमत होने के बावजूद इतनी जल्दीबाज़ी क्यों? शायद कोई छिपी हुई कमज़ोरी या रणनीतिक चालबाज़ी हो। हो सकता है पार्टी किसी भी अप्रत्याशित घटना को रोकने की कोशिश कर रही हो।
गुप्त मतदान की प्रक्रिया
संसदीय चुनावों में गुप्त मतदान की अवधारणा अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह प्रत्येक सांसद के व्यक्तिगत मत की रक्षा करता है। इस स्वतंत्रता के कारण अप्रत्याशित परिणाम सामने आ सकते हैं। सांसद अपनी अंतरात्मा या व्यक्तिगत रुचि के अनुसार मतदान कर सकते हैं।
गुप्त मतदान से नतीजों का अनुमान लगाना मुश्किल हो जाता है। एनडीए सांसदों को निशाना बनाने की विपक्ष की रणनीति इसी का फायदा उठाने के लिए बनाई गई है। हो सकता है कि उन्हें इस बात का भरोसा हो कि कुछ सांसद पार्टी लाइन के हिसाब से वोट नहीं देंगे। यह छिपी हुई वफ़ादारी का खेल हो सकता है।
भारतीय चुनावों में ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ क्रॉस-वोटिंग ने बड़ी भूमिका निभाई है। ये पिछली घटनाएँ दर्शाती हैं कि गुप्त मतदान कैसे सत्ता को बदल सकते हैं। ये हमें याद दिलाती हैं कि कागज़ पर लिखे आँकड़े हमेशा पूरी कहानी नहीं बताते।
मुख्य निष्कर्ष और भविष्य के निहितार्थ
ये उपराष्ट्रपति चुनाव रणनीति की परीक्षा हैं। ये इस बात का भी परीक्षण हैं कि पार्टियाँ अपने सदस्यों को कितनी अच्छी तरह एकजुट रखती हैं। विपक्ष के सक्रिय रुख और क्रॉस-वोटिंग की चर्चा ने भाजपा को सतर्क कर दिया है। हालाँकि भाजपा के पास ज़्यादा सीटें हैं, लेकिन गुप्त मतदान अनिश्चितता पैदा कर सकता है। प्रधानमंत्री मोदी का रात्रिभोज दर्शाता है कि उन्हें पता है कि हर वोट मायने रखता है। यह एकजुट मोर्चे की ज़रूरत को भी दर्शाता है। हम जल्द ही देखेंगे कि विपक्ष की योजना काम करती है या नहीं। राजनीतिक जगत देखेगा कि ये घटनाएँ कैसे आगे बढ़ती हैं।
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