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क्या भारत वास्तव में दुनिया की Fourth Largest Economy हैं?

is india really the fourth largest economy in the world
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हाल के वर्षों में भारत ने दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (Fourth Largest Economy) बनकर खुद को स्थापित किया है। बड़े-बड़े शहरों में चमकदार इमारतें, हाई-टेक परियोजनाएं और स्पेस मिशन हमारे खजाने का दिल हैं। लेकिन क्या यह तरक्की हर घर, हर गाँव तक पहुंच रही है? आर्थिक आंकड़ों और गांव-देहात की हकीकत के बीच बड़ा फासला दिखाई देता है।

भारत की जीडीपी और पर कैपिटा आय: समझ का फासला

भारत की अर्थव्यवस्था का विशाल आकार

भारत ने 2000 में अपने कुल जीडीपी को करीब 468 अरब डॉलर माना था। यह आंकड़ा 2023 में बढ़कर 3.6 ट्रिलियन डॉलर हो गया है। हर साल की ग्रोथ से हम आगे बढ़ रहे हैं, खासकर डिजिटल, इंफ्रास्ट्रक्चर और सेवाओं में। मगर यह सिर्फ बड़ा आंकड़ा है, जो मुख्य रूप से बड़े शहरों और कॉर्पोरेट सेक्टर को प्रभावित करता है।

पर कैपिटा आय का महत्व

जीडीपी को लोगों में बांटने पर पता चलता है कि बाद में क्या मिलता है। जैसे किसी दुकान की सालाना कमाई का हिस्सा जब कई लोग मिलाते हैं, तो हर एक का हिस्सा कितना होता है। भारत में यह पर कैपिटा आय सिर्फ 1.8 लाख रुपए के आसपास है, जबकि दूसरे बड़े देशों से इसकी तुलना करें तो यह बहुत कम है।

उदाहरण: यदि किसी दुकान की कुल आय 900 रुपए है, और 10 लोगों में बांटते हैं, तो हर को ईमेजिन करें कि यह रकम कितनी छोटी है।

यही स्थिति भारत की है, जहां बड़ी जीडीपी के बावजूद आम आदमी के पास कम पैसा होता है।

आंकड़ों का जमीनी सच

सिर्फ आंकड़े कहानियां नहीं बताते। गाँव-देहात में अभी भी बहुत गरीब हैं। कई इलाकों में लोगों को बस पानी, बिजली और अच्छी सड़क के लिए तरसना पड़ता है।

भारत का विभाजन: अमीर और गरीब के बीच खाई

गांव-देहात की स्थिति

महाराष्ट्र का केड़ापानी जैसे गाँव में लड़कियों को रोज बीस किलोमीटर चलकर पानी लाना पड़ता है। कई जगह पर अस्पताल पहुंचने के लिए कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है।

उदाहरण: बीमार को अस्पताल पहुंचाने के लिए 15-20 किलोमीटर चलना आम बात है।

सड़कें, बिजली, साफ पानी जैसी सुविधाएं अभी भी सपना हैं।

शहरी और ग्रामीण का फर्क

शहरों में सब कुछ मिल रहा है। अच्छे अस्पताल, रोशनी से जगमग सड़कें, स्कूल और कॉलेज। वहीं गाँव में परिवार रोज की जिंदगी में ही फंसे हैं।

गरीबी की भी कुछ अलग मिसालें हैं

लाखों लोग अभी भी ₹200 में एक दिन गुजार रहे हैं। यह आंकड़ा बहुत छोटा है, लेकिन देश की बड़ी जनसंख्या को देखते हुए बहुत है। जैसे भारत का एक बड़ा हिस्सा गरीबी की रेखा के नीचे है और उनका जीवन बहुत संघर्षमय है।

भारत में असमानता और सामाजिक विभाजन

संपत्ति का भेद

देश की टॉप एक फीसदी आबादी के पास 40 प्रतिशत वेल्थ है। वहीं, नीचे 50 प्रतिशत के पास सिर्फ 3 प्रतिशत। यह असमानता बहुत साफ झलकती है।

यह क्यों जरूरी है? इससे पता चलता है कि अमीर और गरीब के बीच बड़ा गैप है।

शिक्षा और स्वास्थ्य का फर्क

सरकारी योजनाओं का लाभ अब भी हर तबके को बराबर नहीं मिल पा रहा है। गाँव के बच्चे डॉक्टर की सेवाएं, पढ़ाई की सुविधाएं और अच्छी अस्पताल में पहुंच से बाहर हैं।

जाति, वर्ग और सामाजिक अंतर

सामाजिक भेदभाव, जाति और आर्थिक स्थिति भी विकास की राह में रोड़ा है। इससे संसाधनों का वितरण और भी uneven हो जाता है।

रोजगार, युवा पीढ़ी का संघर्ष

बेरोजगारी के आंकड़े

शहरी इलाको में 6.5% और गांवों में 5.1% युवाओं को अभी भी रोजगार नहीं मिल पा रहा है। खासतौर पर 15 से 29 साल तक के युवाओं का प्रतिशत ज्यादा है।

रोजगार की हकीकत

यह देखने में आया है कि कई ग्रेजुएट्स को कम स्किल वाली नौकरियां करनी पड़ती हैं। फसल का नुकसान या खेतों की स्थिरता भी युवा को रोजगार से दूर रखती है।

अंडरएंप्लॉयमेंट का मामला

कई युवा अनुचित कार्य कर रहे हैं, जैसे लो स्किल वाले जॉब्स। भारत में कई किसान, मजदूर और युवा अपनी प्रतिभा का सही इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं।

सरकार की योजनाएं और उनका असर

प्रमुख योजनाएं

अयुष्मान भारत, जनधन योजना, स्वच्छ भारत जैसी सरकार की योजनाएं मदद कर रही हैं।

कमियां और सुधार

इन योजनाओं का सही कार्यान्वयन अभी भी एक बड़ी चुनौती है। पुराने आंकड़ों, फंडिंग और जमीनी स्तर पर अच्छे परिणाम जरूरी हैं। नई डेटा का होना जरूरी है ताकि सही दिशा में कदम उठाए जाएं।

समाधान और भविष्य की दिशा

  • सुधार के कदम
  • ताजा और अपडेट डेटा
  • गाँव-देहात में स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार पर ध्यान
  • छोटे उद्योग और श्रम आधारित सेक्टर्स को बढ़ावा
  • समाज में बदलाव लाने का तरीका
  • स्किल डेवलपमेंट ट्रेनिंग
  • सरकारी योजनाओं का प्रभावी इस्तेमाल
  • समानता और समावेशन को बढ़ावा देना
भारत का सही रास्ता

सभी वर्गों को साथ लेकर चलना जरूरी है। आर्थिक तरक्की का रास्ता भी समतामूलक होनी चाहिए, तभी यह देश वाकई में विकसित कहलाएगा।

निष्कर्ष

भारत का विकास तभी सही मायनों में सफल होगा जब हम आंकड़ों के पीछे की हकीकत भी समझें। सिर्फ बड़े होने से नहीं, बल्कि सबको साथ लेकर चलना ही असली तरक्की है। सरकार, समाज और युवाओं की संयुक्त कोशिश से ही हम एक बेहतर भारत बना सकते हैं। क्या हम वाकई देश को सही दिशा में ले जा रहे हैं? यह सवाल हमेशा बना रहेगा, लेकिन हमें अभी से ही बदलाव की रणनीति अपनानी होगी।

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