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Jharkhand Movement: कपूर बागी एक सामाजिक योद्धा

Jharkhand Movement
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Jharkhand Movement के एक प्रमुख योद्धा, सामाजिक कार्यकर्ता और संघर्ष वाहिनी के अभिन्न अंग कपूर बागी  को याद किया जा रहा है. कपूर बागी-  यह नाम सिर्फ किसी व्यक्ति का नहीं, बल्कि एक विचार, एक संघर्ष और एक निडर प्रतिबद्धता का प्रतीक है. भले ही उनका नाम कपूर टुडू था, लेकिन जनमानस उन्हें ‘बागी जी’ कहकर पुकारता था। यह संबोधन उनके जीवन दर्शन का परिचायक था.

Jharkhand Movement का एक योद्धा

कोल्हान क्षेत्र में कही भी जन आंदोलन हो वहा आप बागी जी को पहले पंक्ति में खड़ा मिलते थे। उनका संघर्षशील जीवन अचानक शुरू नहीं हुआ था। छात्र जीवन से ही वे अन्याय, शोषण और भेदभाव के खिलाफ खड़े हो गए थे।

झारखंड के आदिवासियों के जल, जंगल और जमीन की रक्षा के लिए उन्होंने अपनी जवानी समर्पित कर दी। सुवर्णरेखा परियोजना के विस्थापन आंदोलन में वे अग्रिम पंक्ति में रहे। उन्होंने इस इलाके के युवाओं में लगातार झारखंड सामाजिक और संस्कृत संवेदना की सीख दी.

कपूर बागी कहते थे  “पढ़ाई के साथ-साथ बाकि समय आस पास क्षेत्र में जितना दिख रहा है, इन पलाश के पौधों की सुरक्षा हमारी जिम्मेदारी है।” आज वह वीरान ज़मीन पलाश के पेड़ों से ढक चुकी है – जैसे उनका आदर्श अब भी वहां सांस ले रहा हो। कपूर बागी का किडनी फेलियर से निधन हुआ। 

आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा

चांडिल के चिलगु गाँव में उन्होंने अरविंद अंजुम के सहयोग से और जन्मुक्ति संघर्ष वाहिनी के साथ मिलकर ‘मितान जुमीद’ नाम के परिसर यानी मित्रों के मिलने की जगह  की स्थापना की – यह सिर्फ एक घर नहीं, विचारों का मिलन स्थल रहा है। आज यह जगह उनकी स्मृति का स्थायी निवास बन गई है।

पिछले कुछ वर्षों से वे शुगर और हाई बीपी जैसी गंभीर बीमारियों से जूझ रहे थे। किडनी ट्रांसप्लांट ही अंतिम विकल्प था, लेकिन संभव न हो सका। उन्होंने अंतिम समय तक बिना शिकायत, बिना अपेक्षा, अपनी पीड़ा को खुद तक सीमित रखा।

मितान जुमीद परिसर
मितान जुमीद परिसर

उन्होंने जिस सादगी और सिद्धांतों के साथ जीवन जिया, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा है। कपूर बाकी ने संसदीय राजनीति से दूरी रखी थी, सामाजिक निर्माण संबंधी  सक्रियता में संपूर्ण समर्पण रखते आए थे.

वे छात्र युवा संघर्ष वाहिनी, दलमा मुक्ति वाहिनी, झारखंड मुक्ति वाहिनी, विस्थापित मुक्ति वाहिनी और जन मुक्ति संघर्ष वाहिनी जैसे संगठनों में सक्रिय रहे। बीमारी के बावजूद भी वे अंतिम समय तक जन सरोकारों से जुड़े रहे।

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