Vimarsh News
Khabro Me Aage, Khabro k Pichhe

Jharkhand Sarkar Oath: हेमंत सोरेन के शपथ पर वरिष्ठ पत्रकार श्रीनिवास की टिप्पणी “समारोह यदि सादगी से संपन्न होता, तो क्या इसे ‘अबुआ सरकार’ नहीं कहा जाता!”

0 37

- Sponsored -

- Sponsored -

- Sponsored -

- Sponsored -

Jharkhand Sarkar Oath: झारखंड में हेमंत सोरेन सरकार के शपथ ग्रहण पर जानेमाने पत्रकार श्रीनिवास  का कहना है कि “शपथ ग्रहण समारोह यदि सादगी से संपन्न होता, तो क्या इसे ‘अबुआ सरकार’ नहीं कहा जाता!”

हेमंत सोरेन आज खुले समारोह में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. एक बार फिर यह सब दोहराया जायेगा.

मोरहाबादी (रांची) में विशाल भव्य पंडाल बना है. खबरों के मुताबिक 65 हजार कुर्सियां लगी हैं.

देश भर से अनेक दलों के प्रमुख नेताओं के आने की संभावना है. पूरे राज्य से लोग आयेंगे (आयेंगे नहीं, लाये जायेंगे). पूरा शहर लोकतंत्रिक प्रक्रिया से निर्वाचित मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण या ‘राजतिलक’ (कल एक अखबार में यही हेडिंग थी) के कारण अस्त-व्यस्त रहेगा. सरकारी- गैर सरकारी स्कूलों को बंद रखने का फरमान जारी हो गया है. दिन भर शहर में ऑटो और ई-रिक्शा नहीं चलेंगे, जो आम आदमी के लिए सस्ता सुलभ वाहन है!

अखबारों में पूरे पेज का विज्ञापन छपा है-
अबुआ सरकार का शपथ ग्रहण समारोह!

दिल्ली के एक पत्रकार मित्र सुबोध पांचाल ने सुबह बताया कि Times of India सहित दिल्ली के तमाम अखबारों में भी आज ‘अबुआ सरकार’ का पूरे पेज का विज्ञापन है.
पटना के मित्रों ने भी बताया कि सभी समाचार पत्रों में पूरा पहले पेज का विज्ञापन छपा है।

यह सचमुच ‘अबुआ सरकार’ है. यह तो आगे सरकार के कामकाज से पता चलेगा. (समारोह की भव्यता और उसमें जुटे हजारों लोगों से , यह साबित नहीं होगा कि यह ‘अबुआ सरकार’ यानी आम आदमी की सरकार है.)

- Sponsored -

- Sponsored -

- Sponsored -

- Sponsored -

मुझ सहित बहुतेरे लोग ऐसे हैं, जो इस सरकार की वापसी चाहते थे. इसलिए इस खुशी में मैं भी शामिल हूं. कामना और उम्मीद करता हूं कि सरकार अपने वायदों पर अमल करेगी, सही मायनों में ‘अबुआ सरकार’ साबित होगी.

मगर शपथ ग्रहण समारोह को, सरकारी खर्च पर तमाशा बना दिया जाना, कहीं से अच्छा नहीं लग रहा!

यह सार्वजनिक धन का अपव्यय और आम शहरी के दैनंदिन जीवन को अकारण बाधित करना है.

हालांकि अब यह परंपरा-सी बन गयी है. पहली बार संभवतः 1977 में केंद्र में बनी जनता पार्टी सरकार का शपथ ग्रहण खुले मैदान में हुआ था.

उसके बाद 1990 में लालू प्रसाद ने बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ गांधी मैदान में ली थी. उसके बाद ही अनेक राज्यों में ऐसा होने लगा. अब तो कोई इस पर सवाल भी नहीं करता!

सादगी से, विधानसभा परिसर में एक सादे समारोह में शपथ ग्रहण होने से क्या मुख्यमंत्री का महत्व कम हो जाता? वह ‘अबुआ सरकार’ नहीं कहलाती?

 

  • श्रीनिवास, जानेमाने पत्रकार

- Sponsored -

- Sponsored -

- Sponsored -

- Sponsored -
Leave a comment
Off