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Justice Suryakant का बयान: भारतीय संविधान चारपाई पर खड़ा…
भारतीय मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत (Justice Suryakant) ने एक अनोखी तुलना दी। उन्होंने संविधान को पारंपरिक चारपाई से जोड़ा। यह उपमा न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में कही गई। चारपाई का मजबूत ढांचा संविधान की अटल नींव दिखाता है। रस्सियां लचीली हैं, जो बदलाव की गुंजाइश देती हैं। “भारतीय संविधान की मजबूती” और “सीजेआई सूर्यकांत उपमा” जैसे शब्द इसी संतुलन को बयान करते हैं। यह उदाहरण बताता है कि हमारा संविधान न तो टूटता है। न ही मनमाने बदलाव झेल लेता है।
चारपाई की उपमा: संवैधानिक ताकत की सरल व्याख्या
चारपाई हमारी संस्कृति का हिस्सा है। मुख्य न्यायाधीश ने इसे संविधान समझाने के लिए चुना। ढांचा कड़ा रहता है। रस्सियां लचीली बनी रहती हैं। यह तुलना आसान शब्दों में गहरी बात कहती है।
चारपाई के पैर मजबूत होते हैं। वे कभी हिलते नहीं। ठीक वैसे ही संविधान की मूल संरचना अटल है। मौलिक अधिकार और संघीय ढांचा इसी में आते हैं। इन्हें बदलना मुश्किल है। न्यायालय इन्हें सुरक्षित रखता है। उदाहरण के लिए, वोट का अधिकार कभी छीना नहीं जा सकता। यह ढांचा लोकतंत्र को स्थिर बनाता है।
लचीली रस्सियां: बदलाव की शक्ति का प्रतीक
रस्सियां चारपाई को बांधती हैं। वे मजबूत हैं, पर लचकदार भी। संविधान के अनुच्छेद 368 में संशोधन इसी तरह संभव है। संसद बदलाव कर सकती है। लेकिन सीमा है। रस्सियां टूटेंगी नहीं। न ही ढीली पड़ेंगी। यह संतुलन जरूरी है। बदलाव आते रहते हैं, बिना नींव हिलाए।
संतुलन: कठोरता और मनमाने बदलाव से बचाव
मुख्य न्यायाधीश ने कहा। चारपाई न इतनी कड़ी कि टूट जाए। न इतनी ढीली कि कोई भी बिगाड़ दे। यही लोकतंत्र की ताकत है। दबाव में यह झुकता है, पर गिरता नहीं। हम देखते हैं। 75 सालों में 100 से ज्यादा संशोधन हुए। फिर भी मूल बरकरार रहा। यह उपमा “बेसिक स्ट्रक्चर सिद्धांत” को सरल बनाती है।
उपमा का संदर्भ: बेसिक स्ट्रक्चर सिद्धांत
यह बात पुराने फैसले से जुड़ी है। मुख्य न्यायाधीश ने केशवानंद भारती मामले का जिक्र किया। वह 1973 का ऐतिहासिक फैसला था।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया। संविधान की मूल संरचना बदल नहीं सकती। संसद शक्तिशाली है, पर सीमित। यह सिद्धांत “पुनः खोजा गया” जैसा बताया गया। चारपाई की तरह। पैर अटल, रस्सियां बदल सकती हैं। इस फैसले ने लोकतंत्र बचाया। आज भी यह प्रासंगिक है।
न्यायिक व्याख्या बनाम विधायी शक्ति
न्यायपालिका पहरेदार है। वह ढांचे की रक्षा करती है। संसद रस्सियां बुन सकती है। पर पैर न छुए। यह संतुलन न्यायिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है। सम्मेलन में यही बात कही गई। अंतरराष्ट्रीय मेहमानों ने सराहा।
लोकतांत्रिक नींव: आधुनिक युग के लिए ताकत
संविधान 1950 में बना। आज 140 करोड़ लोग। बदलाव हुए। जैसे जीएसटी, आरटीआई। ये रस्सियों के संशोधन हैं। ढांचा वही। वोट, समानता बरकरार। यह साबित करता है। संविधान जीवंत है। हम मजबूत लोकतंत्र चलाते हैं।
विदेशी जजों ने सुना। चारपाई वाली कहानी सरल लगी। जटिल सिद्धांत आसान हो गया। अमेरिका का संविधान कड़ा। ब्रिटेन का लचीला। भारत का संतुलित। यह भारतीयता दिखाता है। सम्मेलन में चर्चा बनी।
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