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Nepal protests: केपी ओली ने चुप्पी तोड़ी, बताया सत्ता छिनने में भारत की भूमिका!
नेपाल (Nepal) के पूर्व प्रधानमंत्री केपी ओली ने पद छोड़ने के बाद अपनी चुप्पी तोड़ी है। उनके शुरुआती बयानों में भारत का ज़िक्र ज़ोर-शोर से था। कई लोग सोच रहे थे कि ओली कहाँ चले गए हैं। उनके ठिकाने की पुष्टि नहीं हुई है। लेकिन उनके हालिया बयानों से कुछ सुराग मिलते हैं। नेपाली मीडिया ने इन बयानों को खूब शेयर किया। इनमें भारत और उनके जाने की खूब चर्चा है।
विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गए। लोगों ने उनके घर और संसद को आग लगा दी। यहाँ तक कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को भी निशाना बनाया। ओली ने इस अराजकता पर अपने विचार साझा किए। उनके शब्दों से पता चलता है कि उन्होंने नेपाल क्यों छोड़ा। ये शब्द नेपाल के भारत के साथ संबंधों पर उनके विचारों को भी दर्शाते हैं।
Nepal protests: ओली का प्रस्थान
ओली का मानना है कि उनकी सत्ता छिनने में भारत की भूमिका थी। उन्होंने उस ज़मीन के बारे में बेबाकी से बात की जो उनके अनुसार नेपाल की है। उन्होंने लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा को नेपाली घोषित कर दिया। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र को एक नया नक्शा भी भेजा। इस नक्शे में इन इलाकों को नेपाली दिखाया गया था।
उन्होंने भगवान राम पर अपने विचारों से भी बहस छेड़ दी। ओली ने कहा कि भगवान राम का जन्म नेपाल में हुआ था। इससे नेपाल और भारत दोनों में खलबली मच गई। कई लोगों ने उनके बयान का विरोध किया।
भू-राजनीतिक तनाव और राजनयिक संबंध
ओली की कार्रवाइयों ने टकराव पैदा किया। इससे नेपाल और भारत के बीच रिश्ते तनावपूर्ण हो गए। सीमा विवाद इसमें एक बड़ा मुद्दा था। कालापानी क्षेत्र एक गर्म मुद्दा था। ओली सरकार अक्सर इस मुद्दे पर भारत से टकराती थी।
भारत ने ओली के नक्शे और बयानों का खुलकर विरोध किया। नेपाली समाचार माध्यमों ने इन घटनाओं को बारीकी से कवर किया। उन्होंने दिखाया कि इन मुद्दों ने ओली सरकार को कैसे प्रभावित किया।
ओली का नेतृत्व
ओली खुद को ज़िद्दी बताते हैं। उनका कहना है कि इसी स्वभाव ने उन्हें मुश्किल दौर में भी डटे रहने में मदद की। इसी ज़िद ने उन्हें अपने विश्वासों पर अडिग रहने में मदद की। वे उन मुद्दों पर पीछे नहीं हटे जो उन्हें बेहद ज़रूरी लगते थे। ये मुद्दे नेपाल के गौरव और नियंत्रण से जुड़े थे।
उन्होंने सोशल मीडिया कंपनियों पर भी दबाव डाला। ओली चाहते थे कि वे नेपाल के नियमों का पालन करें। उन्हें नेपाल में पंजीकरण कराना होगा। यह उनके दृढ़ रुख को दर्शाता है।
दृढ़ विश्वास की कीमत
ओली को लगता है कि उन्होंने मौके गँवा दिए। अगर वे झुक जाते तो उन्हें और भी ज़्यादा फ़ायदा हो सकता था। सीमा संबंधी दावों या राम मुद्दे पर हार मान लेने से हालात बदल सकते थे। उनकी राह शायद आसान होती। लेकिन उन्हें लगा कि उन्हें नेपाल की रक्षा करनी होगी।
उनका कहना है कि उन्होंने देश को अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया। उनके लिए सत्ता और शोहरत कभी मायने नहीं रखती थी। उनका मानना है कि नेपाल की व्यवस्था की रक्षा ही सबसे महत्वपूर्ण थी।
परिणाम: विरोध, हिंसा और एक राष्ट्र का लचीलापन
इसके बाद हुए विरोध प्रदर्शन बेहद हिंसक रहे। इमारतों में आग लगा दी गई। ओली के आवास, संसद और अदालतों को नुकसान पहुँचाया गया। खबरों के अनुसार, कैदियों को जेल से रिहा भी कर दिया गया। ओली को नहीं लगता कि बच्चों ने ऐसा किया है।
उन्हें बच्चों के लिए बुरा लग रहा है। उनका मानना है कि नेताओं ने उनका इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा कि उनके मासूम चेहरों का इस्तेमाल “गंदी राजनीति” के लिए किया गया। उन्हें लगता है कि यह एक साज़िश थी। इसका मकसद व्यवस्था पर हमला करना था।
खतरे में प्रणाली
ओली ने नेपाल की व्यवस्था के लिए कड़ा संघर्ष किया। उन्होंने कई संघर्ष और बलिदान सहे। उनका मानना था कि हालिया हमले इसी व्यवस्था के खिलाफ थे। यह वह व्यवस्था थी जिसे बनाने के लिए लोगों ने कड़ी मेहनत की थी।
अब नेपाल नई सरकार बनाने की कोशिश कर रहा है। लोग मिलकर काम कर रहे हैं। वे हालात सुधारने में मदद कर रहे हैं। हालात धीरे-धीरे बेहतर हो रहे हैं।
नेपाल अब एक नई सरकार के गठन पर काम कर रहा है। कई नामों पर चर्चा हो रही है। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि कौन सत्ता संभालेगा। यह बदलाव नेपाल के भविष्य को आकार देगा।
इसका असर घरेलू स्तर पर उसकी योजनाओं पर पड़ेगा। साथ ही, दूसरे देशों के साथ उसके व्यवहार पर भी असर पड़ेगा। ख़ासकर भारत के साथ उसके रिश्तों पर।
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