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Modiraj की बड़ी उपलब्धि या बड़ी चिंता? World Bank का नंबर-1 कर्जदार बना भारत

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Modiraj की बड़ी उपलब्धि या बड़ी चिंता

क्या तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था को देखकर आप भी गर्व महसूस करते हैं, पर अचानक एक खबर पढ़कर रुक जाते हैं? एक तरफ केंद्र सरकार का दावा है कि भारत को trillion-dollar economy की ओर तेज़ी से ले जाया जा रहा है, दूसरी तरफ ताज़ा चर्चा इस बात पर है कि वर्ल्ड बैंक (World Bank) की कर्जदार सूची में भारत सबसे ऊपर पहुंच गया है। इंडोनेशिया को पीछे छोड़ते हुए भारत अब वर्ल्ड बैंक का नंबर-1 देनदार बताया जा रहा है। सवाल यही है, यह तस्वीर किस ओर इशारा करती है?

भारत के बड़े आर्थिक लक्ष्य

सरकार कई मंचों पर यह कहती आई है कि भारत को मजबूत, आत्मनिर्भर और बड़े पैमाने पर निवेश आकर्षित करने वाली अर्थव्यवस्था बनाया जा रहा है। यही एजेंडा विकास, बुनियादी ढांचे, और रोज़गार सृजन के वादों के साथ जुड़ा दिखता है। इन दावों का केंद्र यही है कि भारत को अगले कुछ वर्षों में एक trillion-dollar economy के रूप में स्थापित किया जाएगा, और विकास की गति को और तेज किया जाएगा।

दुनिया की नज़र में भारत की रफ्तार

वैश्विक मंच पर भारत की छवि एक तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था की है। निवेश, स्टार्टअप इकोसिस्टम और बड़े बाज़ार के कारण भारत को उभरती ताकत माना जाता है।

  • तेज़ आर्थिक उभार पर ध्यान
  • विकासशील देशों में सक्रिय भूमिका
  • बड़े उपभोक्ता बाज़ार की ताकत
  • बुनियादी ढांचे और परियोजनाओं पर फोकस

यह खबर अब क्यों महत्वपूर्ण है

जब उम्मीदें ऊंची होती हैं, तो हर नई रिपोर्ट और हर नया आंकड़ा स्वतः ही तुलनात्मक नजरिए से देखा जाता है। ऐसे समय में वर्ल्ड बैंक की कर्जदार सूची का सामने आना और भारत का शीर्ष पर होना, बहस को एक नई दिशा देता है।

वर्ल्ड बैंक की कर्जदार सूची का झटका

ताज़ा जानकारी के अनुसार, वर्ल्ड बैंक ने अपनी देनदार देशों की सूची जारी की है। इस सूची में पहले इंडोनेशिया को सबसे बड़ा कर्जदार माना जाता था, लेकिन अब भारत उससे आगे निकल गया है। यह बात सामने आते ही केंद्र सरकार पर सवाल उठने लगे हैं और आलोचना भी तेज हुई है। चर्चा का केंद्र यह है कि इतनी तेज़ वृद्धि और बड़े लक्ष्यों के बीच भारत का कर्जदार सूची में सबसे ऊपर होना क्या संकेत देता है।

इस सूची का मतलब यह है कि वर्ल्ड बैंक से सबसे अधिक बकाया जिन देशों पर है, उनमें इस समय भारत पहले स्थान पर है। यह कोई छोटी बात नहीं है, क्योंकि यह सीधे देश के उधारी प्रबंधन, विकास परियोजनाओं की फंडिंग और आर्थिक प्राथमिकताओं से जुड़ जाती है।

भारत ने कैसे इंडोनेशिया को पीछे छोड़ा

कहानी सरल है, लेकिन असर गहरा है। पहले इंडोनेशिया सबसे बड़ा देनदार माना जाता था। अब उपलब्ध जानकारी के मुताबिक भारत उससे आगे निकल चुका है। यानी, भारत वर्ल्ड बैंक का वर्तमान में biggest debtor बन गया है।

  1. पहले इंडोनेशिया शीर्ष देनदार था।
  2. अब भारत सबसे ऊपर पहुंच गया है।

यह बदलाव एक संकेत देता है कि भारत ने वर्ल्ड बैंक से अधिक उधारी ली है और वह बकाया राशि अब सबसे ज्यादा हो गई है।

खबर पर प्रतिक्रियाएं

सूची सामने आते ही केंद्र सरकार को घेरे में लिया जा रहा है। विरोधी इसे आर्थिक प्रबंधन के नजरिए से देख रहे हैं। सवाल उठ रहे हैं कि तेज़ विकास के दावों के बीच देश का वर्ल्ड बैंक का सबसे बड़ा देनदार बनना क्या बताता है। बहस इस पर भी है कि क्या यह विकास परियोजनाओं के लिए लिए जाने वाले कर्ज का परिणाम है या वित्तीय संतुलन पर अतिरिक्त दबाव का संकेत है। जो भी हो, सार्वजनिक चर्चा में सरकार से स्पष्टता और जवाबदेही की मांग बढ़ी है।

भारत का वर्ल्ड बैंक से कर्ज, असल तस्वीर

वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट में बताया गया कि भारत पर वर्ल्ड बैंक का बकाया लगभग 24.4 बिलियन डॉलर है। यह आंकड़ा भारत को उनकी सूची में सबसे ऊपर रखता है। यह राशि सिर्फ एक संख्या नहीं है, यह हमारी नीतियों, योजनाओं और क्रियान्वयन के पैमाने का आईना भी है।

यहां समझने की बात है कि वर्ल्ड बैंक का कर्ज सीधे खराब अर्थव्यवस्था का प्रमाण नहीं होता। कई बार देश बड़े पैमाने की परियोजनाओं के लिए कर्ज लेते हैं, जैसे बुनियादी ढांचा, सामाजिक क्षेत्र, स्वास्थ्य, शिक्षा या जल प्रबंधन। असल सवाल यह है कि यह कर्ज किस शर्त पर लिया गया, वह कितना किफायती है, और उसका उपयोग कितना असरदार है।

आसान भाषा में, कितने रुपये बनते हैं

आंकड़े को रुपये में समझें तो यह राशि ₹2 लाख करोड़ से ज्यादा बैठती है। आम आदमी की समझ में कहें, तो यह ऐसा है जैसे देश ने एक बहुत बड़ा लोन लिया है, जिसका सही इस्तेमाल आवश्यक है और जिसकी कीमत भविष्य में चुकानी होगी, ब्याज समेत।

तुलना के लिए कुछ संदर्भ, ताकि स्केल समझ में आए:

  • इतने पैसों से कई बड़े राष्ट्रीय राजमार्ग, पुल और मेट्रो परियोजनाएं चल सकती हैं।
  • यह रकम कई राज्यों के वार्षिक बजट के बराबर या उससे अधिक हो सकती है।
  • शिक्षा या स्वास्थ्य जैसे सामाजिक क्षेत्रों की बड़ी योजनाओं को लंबे समय तक फंड किया जा सकता है।

इन उदाहरणों का मकसद सिर्फ पैमाना दिखाना है। वास्तविक आवंटन और प्राथमिकताएं नीतियों पर निर्भर करती हैं।

रिपोर्ट का साफ संदेश

वर्ल्ड बैंक की ताज़ा रिपोर्ट यही बताती है कि भारत उनका शीर्ष देनदार देश है, और बकाया राशि ने अन्य देशों को पीछे छोड़ दिया है। इसका मतलब:

कुल बकाया में भारत का योगदान सबसे अधिक है।
एक तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए यह स्थिति चर्चा का विषय बनती है।
highest debt position होने के साथ नीति और वित्तीय अनुशासन पर नज़र रखना और भी जरूरी हो जाता है।
यह बात भी याद रखने की है कि वर्ल्ड बैंक से लिया गया कर्ज विकासोन्मुखी भी होता है। लेकिन जब कुल बकाया सबसे ऊपर हो, तो यह स्वाभाविक है कि जनता और विशेषज्ञ दोनों पारदर्शिता, उपयोग और रिटर्न पर सवाल पूछें।

विकास के दावे और कर्ज की सच्चाई, दोनों साथ
एक तरफ तेज़ वृद्धि और बड़े निवेश की तस्वीर है, दूसरी तरफ number-1 debtor का टैग। दोनों बातें एक साथ सही हो सकती हैं, पर तब जब पैसे का उपयोग असरदार हो, परियोजनाएं समय पर पूरी हों, और सामाजिक लाभ साफ दिखें।

कुछ सकारात्मक और नकारात्मक पहलू, एक जगह पर:

फायदा: वर्ल्ड बैंक का कर्ज आमतौर पर रियायती होता है, ब्याज अपेक्षाकृत कम, परियोजना आधारित फंडिंग मिलती है।
फायदा: बड़े पैमाने की परियोजनाओं के लिए लंबी अवधि का पैसा मिलता है, जो घरेलू संसाधनों पर दबाव घटा सकता है।
चुनौती: बकाया सबसे अधिक होने पर ऋण प्रबंधन में गलती की गुंजाइश नहीं रहती।
चुनौती: गलत प्राथमिकताओं, देरी और ओवरकॉस्टिंग से भविष्य का बोझ बढ़ सकता है।
चुनौती: शीर्ष देनदार की स्थिति राजनीतिक और सार्वजनिक दबाव भी बढ़ाती है।
यह संतुलन ही असली कसौटी है। कर्ज की कीमत तभी जायज लगती है जब उसका सामाजिक और आर्थिक रिटर्न स्पष्ट हो। नहीं तो वही कर्ज आने वाले समय में बोझ बन सकता है।

सतर्क रहकर आगे देखना

यह खबर डराने के लिए नहीं, बल्कि ध्यान खींचने के लिए काफी है। भारत आज महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखता है, और वह जरूरी भी है। साथ ही यह भी जरूरी है कि कर्ज के हर रुपए का हिसाब हो, नीतियां पारदर्शी रहें, और परियोजनाएं समय पर पूरी हों। अभी तस्वीर यह है कि महत्वाकांक्षाओं के बीच भारत वर्ल्ड बैंक का शीर्ष देनदार है। आगे की दिशा इस बात से तय होगी कि इस कर्ज से जमीन पर क्या बदला और जनता को क्या मिला।

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