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MALNUTRITION IN INDIA: 22 करोड़ भारतीय कुपोषण के शिकार, बमुश्किल नसीब होता है एक वक्त का खाना

दुनिया की छठी इकॉनमी का हर छठा इंसान भूखे सोने को मज़बूर

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MALNUTRITION IN INDIA: दूध, सब्जी और दाल के उत्पादन में हम दुनियाभर में टॉप पर, फिर भी 22 करोड़ देशवासी या तो कुपोषित हैं या फिर उन्हें एक ही वक्त का खाना मिलता है। ऐसा समझिए कि हर रोज वो लगभग भूखे सोने पर विवश हैं।

MALNUTRITION IN INDIA: दूध, सब्जी और दाल के उत्पादन में हम दुनियाभर में टॉप पर, फिर भी 22 करोड़ देशवासी या तो कुपोषित हैं या फिर उन्हें एक ही वक्त का खाना मिलता है। ऐसा समझिए कि हर रोज वो लगभग भूखे सोने पर विवश हैं। यह भारतीय अर्थव्यवस्था है, जिसमें अमीर लगातार अमीर और गरीब लगातार गरीब हो रहा है।

MALNUTRITION IN INDIA: भारत दुनिया में लगातार झंडे गाड़ रहा है। आज इंडिया विश्व की छठी सबसे बड़ी इकॉनमी है। फिर भी करोड़ों लोग भूखे सोने को मजबूर हैं। हमारी आर्थिक नीतियां अब भी दोयम दर्जे की हैं। इसलिए कि इसके लाभ और नुकसान में जमीन-आसमान का फर्क है। फर्क जो साफ दिखता है।

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यूनाइटेड नेशन्स की रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में रईसों के बढ़ने की रफ्तार अमेरिका और ब्रिटेन से भी ज्यादा है। कोविड के दौरान भारत में ऐसे अमीर जिनकी संपत्ति दो सौ करोड़ से भी ज्यादा हो गई है। अमीरों की संख्या में 11% की बढ़ोतरी हुई है। यानि दो सौ करोड़ से ज्यादा संपत्ति वाले भारतीय अब बढ़कर 13,637 हो गए। इनमें से तीस से ज्यादा अमीरों की संपत्ति तो दोगुनी हो गई। दूसरी ओर आम भारतीय की संपत्ति 7 फीसदी तक घट गई।

MALNUTRITION IN INDIA: यूनाइटेड नेशंस की की रिपोर्ट में ये आंकड़े दिखाए गए हैं कि दूध, सब्जी और दाल के उत्पादन में हम दुनिया भर में नंबर वन हैं, फिर भी देश के 22 करोड़ लोग कुपोषित हैं। इन कुपोषित लोगों को एक ही वक्त का खाना मिल पाता है। वे लगभग रोज भूखे सोने को मज़बूर हैं। हालात ये हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था में अमीर लगातार अमीर होता जा रहा है और गरीब और गरीब होता जा रहा है।

उधर भारत सरकार अपनी अर्थव्यवस्था को तो दुनिया में अव्वल बताने में कोई कसर नहीं छोड़ती। लेकिन पौष्टिकता की तुलना की बात आती है तो पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, भूटान, ईरान, मालदीव जैसे बदहाल देशों को सामने खड़ा कर लेते हैं। ताकि गर्व से कह सकें कि हमारी हालत बहुत अच्छी है।

कुल मिलाकर कह सकते हैं कि देश की प्रगति की तस्वीर को जिस तरह से दिखाया जाता है, वैसा है नहीं। और यूएन की ये रिपोर्ट भारत सरकार को आईना दिखाने के लिए काफी है।

 

 

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