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Manipur Violence Report: मणिपुर हिंसा को लेकर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने मणिपुर सरकार से कहा, “आपको यह तय करना होगा कि आप इस मामले को कैसे सुलझाना चाहते हैं—आपराधिक कार्रवाई के रूप में, या फिर अतिक्रमण करने वालों से ‘अंतरिम लाभ’ के रूप में भुगतान कराकर।”
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर सरकार को निर्देश दिया कि राज्य में जातीय हिंसा के दौरान पूरी तरह या आंशिक रूप से जले घरों और संपत्तियों, साथ ही इन पर हुए अतिक्रमण की जानकारी सीलबंद लिफाफे में प्रस्तुत करे। अदालत ने पूछा कि आगजनी और अतिक्रमण करने वालों के खिलाफ अब तक क्या कार्रवाई की गई है।
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने विस्थापित लोगों की शिकायतों का समाधान करने और उनकी संपत्तियों को लौटाने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता पर बल दिया। पीठ ने सरकार से जले, लूटे गए, और कब्जाए गए भवनों का विवरण मांगा।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि रिपोर्ट में इन संपत्तियों के वास्तविक मालिकों और वर्तमान कब्जाधारियों का विवरण होना चाहिए। साथ ही, अतिक्रमणकारियों के खिलाफ की गई कानूनी कार्रवाई का ब्योरा भी शामिल होना चाहिए।
पीठ ने कहा, “आपको यह तय करना होगा कि आप इससे निपटने के लिए अपराधियों पर कार्रवाई करेंगे या फिर अनधिकृत कब्जे के लिए मुआवजा वसूली का रास्ता अपनाएंगे।” अदालत ने सरकार को अस्थायी और स्थायी आवास के लिए धन जारी करने पर भी जवाब देने का निर्देश दिया।
सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आश्वासन दिया कि सरकार कानून-व्यवस्था और हथियारों की बरामदगी को प्राथमिकता दे रही है। उन्होंने मीडिया कवरेज को लेकर चिंता व्यक्त करते हुए खुले तौर पर डेटा साझा करने में संकोच किया।
सुप्रीम कोर्ट ने अन्य पूरक आवेदनों पर फिलहाल कोई आदेश नहीं दिया और कहा कि कार्रवाई केंद्र और राज्य सरकार को करनी है। सुनवाई की अगली तारीख 20 जनवरी, 2025 से शुरू होने वाले सप्ताह में तय की गई है।
गौरतलब है कि 3 मई, 2023 को मणिपुर में जातीय हिंसा भड़कने के बाद 200 से अधिक लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए। अदालत ने पीड़ितों के पुनर्वास और मुआवजे की निगरानी के लिए तीन पूर्व महिला जजों की एक समिति और आपराधिक मामलों की जांच के लिए महाराष्ट्र के पूर्व पुलिस प्रमुख दत्तात्रेय पडसलगीकर को नियुक्त किया था।