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MS Swaminathan: भारतवर्ष में हरित क्रांति के रचयिता एमएस स्वामीनाथन को नहीं भुला पाएंगे
MS Swaminathan: भारतवर्ष में हरित क्रांति के रचयिता एमएस स्वामीनाथन को देश कभी नहीं भुला पाएगा। 98 वर्ष पूरा करने के बाद एमएस स्वामीनाथन की मृत्यु हो गई। हरित क्रांति के जनक स्वामीनाथन को बिहार झारखंड उत्तर प्रदेश सहित देश भर के आंदोलन में अभी बराबर याद किया जाता है।
उन्होंने खाद्यान्न उत्पादन की कीमत का फार्मूला बनाया था और इसके बाद स्वामीनाथन की सिफारिश के अनुसार उत्पादन लागत से डेढ़ गुना कीमत तय कर न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग की जान की जा रही है।।
एमएस स्वामीनाथन बिहार या पूर्वी भारत की खेती के लिए महत्वपूर्ण व्यक्ति थे। कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन ने भारतवर्ष में हरित क्रांति के रचयिता थे। खेतिहर क्षेत्र बिहार के लिए एमएस स्वामीनाथन का बहुत महत्व था। क्योंकि वह कहने लगे थे कि पूर्वी भारत कृषि क्षेत्र में सोया हुआ बाघ है।
ध्यान देने की बात है कि 1964 से 67 तक जब भारत के कृषि मंत्री सी सुब्रमण्यम थे तब एमएस स्वामीनाथन का साथ लेकर हरित क्रांति की नींव डाली गई थी।
बाद में जगजीवन राम 1967 से 70 तक और फिर 1974 से 77 तक कृषि मंत्री हुए। जगजीवन राम को भारत के कृषि क्रांति का इंजीनियर इसलिए माना जाता है, क्योंकि एमएस स्वामीनाथन जैसे कृषि क्रांति के जनक का साथ उन्हें मिला मिला।
स्वामीनाथन ने मजबूती से यह कहा था , कि जब 1898 में माल्थस ने जनसंख्या का सिद्धांत दिया था , तब पूरे दुनिया की जितनी आबादी थी, 100 बरस के बाद भारत की आबादी उतनी ही हो गई। भारत में खाद्य अन्न का उत्पादन यहां की आबादी के भोजन से कम था । हम अमेरिका के अनाज पर निर्भर थे ।
स्वामीनाथन ने बीज क्रांति और अन्य कृषि सुधार द्वारा हरित क्रांति को नेतृत्व दिया। इसके बाद चावल और गेहूं के उत्पादन में रिकॉर्ड वृद्धि हुई।
बाद में ज्यादा पेस्टिसाइड्स के इस्तेमाल से हरित क्रांति की बुराइयां जाहिर होने लगी। तमिलनाडु के धान उत्पादन और पंजाब के गेहूं उत्पादन से सीखते हुए खाद्यान्नों का उत्पादन देश भर में बढ़ गया था।
इस समय तक स्वामीनाथन यह समझ चुके थे , कि अब पूर्वी भारत के कृषि विकास के बगैर जरूरत को पूरा नहीं किया जा सकता।
स्वामीनाथन ने इस समय तक यह बताना शुरू किया, कि अब ग्रीन रिवॉल्यूशन की जगह पर एवरग्रीन रिवॉल्यूशन — हरित क्रांति की जगह पर सदाबहार कृषि क्रांति की होगा।
जीवन काल में ही उन्होंने एम एस स्वामीनाथन इंस्टिट्यूट बनाकर काम जारी रखा। उन्हें जीवन काल में ही पद्मश्री– पद्मभूषण, और पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।
दुनिया भर में उन्हें 84 मानक डिग्री दी गई है।
इन्होंने कृषि मंत्रालय और कृषि शोध अनुसंधान तथा शिक्षा के कई संस्थानों में सर्वोच्च पद पर काम किया। इसी तरह पश्चिम के देश फिलिपींस में भी इन्होंने धान उत्पादन की क्रांति को नेतृत्व दिया। उनके पार्थिव शरीर को चेन्नई में अंतिम दर्शन के लिए रखा गया और शुक्रवार को अंतिम संस्कार हो गया।