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Jagdeep Dhankhar का रहस्यमयी इस्तीफ़ा: ऑपरेशन RSS, ऑफिस आवास सील!
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) के अचानक और रहस्यमयी इस्तीफ़े ने भारतीय राजनीति में खलबली मचा दी है। कई लोग उनकी अचानक चुप्पी के असली कारणों पर सवाल उठा रहे हैं। उनकी या उनके परिवार की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। इस चुप्पी ने उनके वर्तमान ठिकाने और उनके अलगाव के कारणों को लेकर अटकलों को हवा दे दी है। यह लेख इस बदलते हालात का जायज़ा लेगा। हम नज़रबंदी के दावों की जाँच करेंगे। हम आरएसएस की कथित संलिप्तता की भी जाँच करेंगे। अंत में, हम मोदी सरकार पर इसके संभावित प्रभाव पर विचार करेंगे।
Jagdeep Dhankhar का रहस्यमयी इस्तीफ़ा: नज़रबंदी के दावों का क्या कारण था?
धनखड़ के इस्तीफ़े के तुरंत बाद संवादहीनता का माहौल रहा है। सबूत बताते हैं कि उन्हें उनकी इच्छा के विरुद्ध नज़रबंद रखा गया है। कथित तौर पर उन पर कड़ी पाबंदियाँ भी लगाई गई हैं।
रहस्यमयी चुप्पी और सीलबंद कार्यालय
धनखड़ अपने इस्तीफे के बाद से पूरी तरह से खामोश हैं। उनकी या उनके परिवार की ओर से कोई बयान नहीं आया है। उनके कार्यालय और आवास को कथित तौर पर सील कर दिया गया है। इससे सार्वजनिक जीवन से उनके जाने का रहस्य और गहरा गया है।
घर में नज़रबंद और आवाजाही पर प्रतिबंध के आरोप
रिपोर्टों से पता चलता है कि धनखड़ को उनके सरकारी आवास तक ही सीमित रखा गया है। उनके कर्मचारियों को कथित तौर पर हटा दिया गया है। कथित तौर पर उन्हें बाहरी लोगों से मिलने की अनुमति नहीं दी गई है। ये गतिविधियाँ उनकी गतिविधियों पर एक महत्वपूर्ण नियंत्रण की ओर इशारा करती हैं।
आरएसएस का पहलू: सत्ता संघर्ष और 75 साल का समीकरण
ऐसे सिद्धांत सामने आ रहे हैं जो धनखड़ के इस्तीफे को भाजपा और आरएसएस के आंतरिक सत्ता समीकरणों से जोड़ते हैं। यह आगामी राष्ट्रपति चुनाव के संदर्भ में विशेष रूप से प्रासंगिक है। यह नेतृत्व की भूमिकाओं के लिए आयु सीमा से भी संबंधित है।
RSS का बढ़ता प्रभाव और “ऑपरेशन संघवाद”
कथित तौर पर आरएसएस राजनीतिक नियुक्तियों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ऐसी धारणा है कि वे अपनी विचारधारा से जुड़ा राष्ट्रपति चाहते हैं। मोहन भागवत का प्रभाव इन चर्चाओं के केंद्र में है।
“75 साल का शासन” और मोदी पर दबाव
कुछ लोगों का मानना है कि धनखड़ का इस्तीफ़ा एक सोची-समझी चाल है। हो सकता है कि इसका मक़सद प्रधानमंत्री मोदी पर दबाव बनाना हो। यह ऐसे समय में हो रहा है जब नेतृत्व के लिए 75 साल की आयु सीमा की चर्चा हो रही है। धनखड़ का इस्तीफा भविष्य में नेतृत्व की दौड़ में संघ समर्थित उम्मीदवार को आगे बढ़ा सकता है।
विपक्ष की रणनीतिक चालें और धनखड़ की राजनीतिक चाल
विपक्ष, खासकर कांग्रेस, इस स्थिति का अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहा है। धनखड़ की अपनी रणनीतिक गणनाओं पर भी विचार किया जा रहा है।
विपक्ष का निमंत्रण और पी. चिदंबरम का बयान
विपक्ष ने धनखड़ को विदाई समारोह में आमंत्रित किया है। पी. चिदंबरम ने कहा कि धनखड़ बड़े राज़ उजागर करने के लिए तैयार हैं। इन कार्रवाइयों से सरकार पर दबाव पड़ा।
धनखड़ की संभावित रणनीति: सरकार को कमज़ोर करना?
हो सकता है कि धनखड़ के इन कदमों का उद्देश्य सरकार को रक्षात्मक स्थिति में लाना हो। हो सकता है कि उन्होंने काफ़ी शर्मिंदगी पैदा करने की कोशिश की हो। विपक्ष के एजेंडे के साथ उनका कथित तालमेल भी उल्लेखनीय है।
मोदी सरकार पर प्रभाव और भविष्य के राजनीतिक परिणाम
धनखड़ के इस्तीफे और उसके बाद उठे विवाद के व्यापक निहितार्थ हैं। ये मोदी सरकार की स्थिरता और जनता की धारणा को प्रभावित करते हैं।
बदलती सत्ता गतिशीलता और संघ का दबदबा
यह स्थिति आरएसएस की ओर सत्ता के हस्तांतरण का संकेत दे सकती है। मोदी और शाह को कुछ माँगें माननी पड़ सकती हैं। इसका असर अगले भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन पर पड़ सकता है।
आगे राजनीतिक उथल-पुथल की आशंका
पत्रकार आगे भी महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाओं की भविष्यवाणी कर रहे हैं। ये मानसून सत्र के दौरान और उसके बाद भी हो सकती हैं। ऐसी घटनाएँ आगामी चुनावों और राजनीतिक गठबंधनों को प्रभावित कर सकती हैं।
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