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भारत-पाकिस्तान का विभाजन और जनमत संग्रह: एक महत्वपूर्ण इतिहास

15 अगस्त 1947 को भारत और पाकिस्तान आजाद हो तो हो गए, लेकिन साथ ही कई विवाद भी खड़े हुए। आज तक कई लोगों के मन में सवाल है कि क्या इस विभाजन के लिए भारत में किसी जनता से वोटिंग कराई गई थी?

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भारत-पाकिस्तान का विभाजन और जनमत संग्रह

सिलहट (अब बांग्लादेश में): यहां मुस्लिम बहुलता के कारण यह क्षेत्र असम से अलग कर पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा बनाया गया। उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत (NWFP): यहां चुनाव हुआ, लेकिन कांग्रेस और खैबरपख्तुन नेताओं ने इसका विरोध किया।

कश्मीर: यहां निर्णय लेने के लिए जनमत का प्रस्ताव था, लेकिन ऐसा कभी हुआ नहीं।

क्यों नहीं हुआ भारत-पाकिस्तान का विभाजन और जनमत संग्रह?

ब्रिटिश सरकार का जल्दी निकलने का इरादा था। दूसरा, कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बड़े नेता इस फैसले में एकमत थे। तीसरा, उस वक्त धार्मिक तनाव बहुत था। लोग और नेता इस प्रक्रिया को खतरनाक मानते थे।

क्या जनता से राय मांगी गई थी?

कभी नहीं। न हिंदू, न मुस्लिम, न सिख या किसी और धर्म के लोगों से पूछा गया। न ही कोई रिपोर्ट या सर्वे हुआ। यह फैसला ऊपर से थोपे गए कदम थे।

विभाजन का नतीजा

लगभग 1.5 करोड़ लोग अपने घर छोड़ने को मजबूर हुए। 2 से 15 लाख लोगों की जान गई। सांप्रदायिक हिंसा और शक अब भी खत्म नहीं हुई है।

निष्कर्ष

भारत-पाकिस्तान का विभाजन जनता की राय से नहीं हुआ था। यह था नेताओं की बातें और विदेशी नीतियों का नतीजा। अगर उस वक्त जनता से सवाल पूछा जाता, तो इतिहास शायद अलग होता।

क्या भारत और पाकिस्तान के बंटवारे से पहले आम जनता से वोटिंग कराई गई थी? जानिए सच्चाई और इतिहास के दस्तावेज़, जिसमें जनमत संग्रह की हकीकत छुपी है।

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