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Bihar elections से पहले मतगणना पर सवाल, Himachal में रंगे हाथों पकड़ी गई वोट चोरी

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क्या एक वोट से लोकतंत्र की दिशा बदल सकती है? हिमाचल की एक ग्राम पंचायत का ताजा मामला यही बताता है। उधर, मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार बिहार में निष्पक्ष चुनाव का भरोसा दे रहे हैं, इधर शिमला की साड़ी ग्राम पंचायत में हाई कोर्ट की निगरानी में हुई रिकाउंटिंग ने 5 साल पुराने नतीजे पलट दिए हैं। यह सिर्फ एक गांव की कहानी नहीं, यह भरोसे की दरार है। इस पोस्ट में वही पूरी पड़ताल है, क्या हुआ, कैसे हुआ और इसका असर कहां तक जाएगा।

चेहरा बनाम आईना, दावों की चमक और हिमाचल की हकीकत

चुनाव आयोग अक्सर कहता है कि चुनाव निष्पक्ष होते हैं। सिस्टम सही है, मशीनें भरोसेमंद हैं, प्रक्रिया पारदर्शी है। लेकिन सवाल तब उठते हैं, जब अदालत के आदेश पर रिकाउंटिंग होती है और नतीजे बदलते हैं। शिमला की साड़ी ग्राम पंचायत का मामला यही आईना है। यहाँ 2021 के पंचायत चुनाव में एक वोट की गलती ने पूरे गांव की कमान गलत हाथों में दे दी। हाई कोर्ट ने जांच कराई, मतों की फिर से गिनती हुई और सच सामने आ गया। जो हार गई थी, वह असल में जीत चुकी थी।

इस उलटफेर ने दो बातें साफ कीं। एक, छोटी इकाइयों में भी मतगणना में गंभीर भूलें हो सकती हैं। दो, सुधार का मौका समय रहते नहीं मिला, इसलिए न्याय मिला तो भी देर से मिला। ऐसी गलतियों की गूंज विधानसभा और लोकसभा तक क्यों न सुनाई दे।

शिमला की साड़ी ग्राम पंचायत, एक वोट की चूक और 5 साल लंबी लड़ाई

2021 में साड़ी ग्राम पंचायत में चुनाव हुए। उम्मीदवार रंजू को 243 वोट मिले। नतीजा आया तो वह एक वोट से हार गईं। उन्हें शक था कि मतगणना में गलती हुई है। वह सेशन कोर्ट से हाई कोर्ट तक भागती रहीं। पांच साल की जद्दोजहद के बाद हाई कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला दिया और रिकाउंटिंग का आदेश दिया।

टाइमलाइन एक नज़र में:

  1. 2021, चुनाव हुए, रंजू एक वोट से हारी बताई गईं।
  2. 2021 से 2025, रंजू अदालतों में इंसाफ मांगती रहीं।
  3. हाई कोर्ट के आदेश पर रिकाउंटिंग हुई, नतीजा पलटा, रंजू को प्रधान घोषित किया गया।
  4. कार्यकाल खत्म होने में अब सिर्फ करीब दो महीने बचे हैं, दिसंबर में फिर चुनाव होने हैं।

इस लड़ाई ने एक मोटा सच उभारा। एक वोट की गलती से गांव की सरकार 5 साल गलत चली, और असली विजेता को कुर्सी तब मिली जब कार्यकाल लगभग खत्म है।

रिकाउंटिंग में खुला खेल, किन वोटों को अवैध बताया गया था

मामले की जड़ मतगणना में हुए फैसलों में थी। चुनाव अधिकारी ने गिनती के दौरान तीन मतों को अवैध मान लिया। हाई कोर्ट की निगरानी में जब रिकाउंटिंग हुई, तो पता चला कि अवैध मत तीन नहीं, सिर्फ एक था। दो मत, जो रंजू के पक्ष में थे, उन्हें गलत तरीके से अवैध मान लिया गया था। सुधार के बाद रंजू के कुल मत 245 हुए और दूसरी प्रत्याशी के 244।

यह फर्क छोटा दिखता है, लेकिन असर बहुत बड़ा है। छोटे चुनावों में हर वोट की कीमत ज्यादा होती है। इस केस ने दिखाया कि एक मामूली-सी मानवीय गलती, या फिर जानबूझकर की गई कोशिश, पूरे परिणाम को पलट सकती है। और अगर यह पंचायत स्तर पर संभव है, तो ऊंचे पायदान पर शक क्यों न उठे।

मुख्य असर:

  • असली विजेता वर्षों तक हाशिये पर रहा।
  • जनता का भरोसा कमजोर हुआ।
  • चुनावी प्रक्रिया की निगरानी पर बहस तेज हुई।

ईवीएम पर अदालत की नजर, हरियाणा के बुवाना लाखों में सुप्रीम कोर्ट की सख्ती

हिमाचल का मामला अकेला नहीं है। हरियाणा के पानीपत जिले के बुवाना लाखों गांव में नवंबर 2022 में सरपंच चुनाव हुए। मोहित कुमार चुनाव लड़े और कुलदीप सिंह विजेता घोषित हुए। मोहित 51 वोट से हारे। उन्हें गिनती पर शक हुआ। उन्होंने इलेक्शन ट्रिब्यूनल में याचिका दी। हाई कोर्ट ने रिकाउंटिंग का आदेश रद्द कर दिया। मोहित सुप्रीम कोर्ट पहुंचे।

जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने ऐतिहासिक कदम उठाया। अगस्त 2025 में ईवीएम मशीनें कोर्ट परिसर में बुलवाई गईं, वीडियोग्राफी के बीच, दोनों पक्षों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में वोट गिने गए। नतीजा चौंकाने वाला था। जो हार मान चुके थे, वे विजेता निकले। कोर्ट ने कहा, रिकॉर्डिंग मौजूद है, दोनों पक्षों ने साइन किया है, रिपोर्ट पर शक की गुंजाइश नहीं है।

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