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Bihar politics पर सवाल: जनता के सवालों पर भाजपा विधायक ने पत्रकार को धमकाया
एक पत्रकार सिर्फ जनता की परेशानियों के बारे में सवाल पूछता है। फिर भी उसे जेल भेजने की धमकी मिल जाती है। बिहार में ऐसा ही कुछ हुआ। पूर्व उपमुख्यमंत्री और भाजपा विधायक तारा किशोर प्रसाद से एक पत्रकार ने सवाल किया। विधायक ने गुस्से में पत्रकार को पकड़कर जेल भेज देने की बात कही। यह घटना बिहार की राजनीति में दबाव की हकीकत दिखाती है। पत्रकारों को डराने से लोकतंत्र कमजोर होता है। हम सबको सोचना चाहिए, क्या नेता जवाबदेही से भाग सकते हैं?
बिहार में प्रेस की आजादी की स्थिति
बिहार में पत्रकारों पर बढ़ते दबाव ने सबको चिंतित कर दिया है। नीतीश सरकार का दावा है कि सुशासन चल रहा है। लेकिन सच्चाई कुछ और कहती है। नेताओं से सवाल पूछने पर धमकियां मिलना आम हो गया है। यह घटना तारा किशोर प्रसाद और एक पत्रकार के बीच हुई। पत्रकार जनता के मुद्दों पर बात करना चाहता था। विधायक का जवाब धमकी भरा था। इससे साफ पता चलता है कि जवाबदेही बनाम राजनीतिक दबंगई का संघर्ष कितना गहरा है। हम पत्रकारों के हौसले को सलाम करते हैं। वे ही लोकतंत्र की आवाज हैं।
पत्रकार और पूर्व उपमुख्यमंत्री के बीच टकराव
एक पत्रकार तारा किशोर प्रसाद से मिला। वह जनता की समस्याओं पर सवाल पूछना चाहता था। विधायक ने तुरंत गुस्सा दिखाया। उन्होंने कहा, “इसे पकड़कर ले जाओ, जेल में डाल दो। यहां खाना मत देना।” यह धमकी वीडियो में साफ दिखी। पत्रकार सिर्फ अपना काम कर रहा था। लेकिन जवाब में जेल और भूखे रहने की बात सुननी पड़ी। यह डराने का तरीका था। पत्रकार डर गया, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। ऐसी घटनाएं दिल दुखाती हैं।
राजनीतिक संदर्भ: तारा किशोर प्रसाद की भूमिका
तारा किशोर प्रसाद पूर्व उपमुख्यमंत्री रह चुके हैं। अब वे भाजपा के विधायक हैं। उनकी हैसियत बड़ी है। जनता उनसे जवाब चाहती है। लेकिन सवाल पूछने पर धमकी देना गलत है। बिहार में नेता जवाबदेही से बचते नजर आते हैं। यह घटना उनकी छवि पर सवाल उठाती है। हम सोचते हैं, क्या बड़े पद पर बैठे लोग छोटे सवालों से डर जाते हैं? जनता का विश्वास टूटता जा रहा है।
लोकतंत्र में पत्रकार की भूमिका
पत्रकार चौथा खंभा कहलाते हैं। वे सरकार की कमियों को उजागर करते हैं। बिहार जैसे राज्य में यह और जरूरी है। संविधान प्रेस को आजादी देता है। नैतिक रूप से भी वे सच्चाई सामने लाते हैं। जनता के मुद्दे उठाना उनका कर्तव्य है। अगर वे डरें, तो लोकतंत्र अधूरा रह जाता है। हम पत्रकारों की हिम्मत की सराहना करते हैं। वे हमारी आवाज बनते हैं।
राजनीतिक धमकी के तरीके
शक्तिशाली लोग कानूनी कार्रवाई या हिरासत की धमकी देते हैं। इससे रिपोर्टिंग रुक जाती है। बिहार में ऐसी कई घटनाएं सुनने को मिलती हैं। असहमति को दबाने के लिए यह तरीका अपनाया जाता है। सैद्धांतिक रूप से, यह लोकतंत्र के खिलाफ है। वास्तविक उदाहरणों से पता चलता है कि पत्रकार चुप हो जाते हैं। हम दुखी होते हैं कि सवाल पूछना अपराध क्यों बन जाता है? यह बदलना चाहिए।
बिहार शासन मानकों की जांच
पत्रकार जनता के मुद्दों पर सवाल कर रहा था। शायद शिक्षा, स्वास्थ्य या बेरोजगारी जैसे विषय थे। धमकी से साफ है कि शासन में कमियां हैं। सत्तारूढ़ गठबंधन सुशासन का दावा करता है। लेकिन आलोचक और प्रेस कुछ और कहते हैं। वास्तविकता में, जनता की परेशानियां बनी हुई हैं। हम सहानुभूति रखते हैं उन लोगों से जो मदद की उम्मीद करते हैं। शासन सुधार की जरूरत है।
मीडिया के आजादी पर प्रभाव
ऐसी घटनाएं स्थानीय पत्रकारिता को ठंडा कर देती हैं। बिहार में रिपोर्टर डरने लगते हैं। विश्व प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत की रैंकिंग गिर रही है। क्षेत्रीय स्तर पर दबाव ज्यादा है। पत्रकार कम बोलते हैं। इससे सूचना का अभाव होता है। हम चिंतित हैं कि प्रेस की आवाज दब जाए। आजादी बचानी होगी।
घटना पर जनता और राजनीतिक प्रतिक्रिया
पत्रकार यूनियनों ने इसकी निंदा की। कुछ ने बयान जारी किए। सिविल सोसाइटी ने पारदर्शिता की मांग की। गैर-राजनीतिक संगठन सक्रिय हुए। वे पत्रकारों के समर्थन में उतरे। यह एकजुटता अच्छी लगी। हम उम्मीद करते हैं कि कार्रवाई हो। प्रतिक्रियाएं मजबूत बनी रहें।
पार्टी की लाइन: भाजपा का विधायक व्यवहार पर रुख
भाजपा ने आधिकारिक बयान नहीं दिया। लेकिन पार्टी लोकतंत्र का समर्थन करती है। विधायक का व्यवहार इससे मेल नहीं खाता। हम सोचते हैं, क्या पार्टी जांच करेगी? प्रतिनिधि के कार्य से छवि प्रभावित होती है। विपक्ष ने आलोचना की। यह बहस जारी है।
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