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Rabari Devi का आरोप: Tejaswi Yadav की जान को खतरा; बिहार में चुनाव से पहले बढ़ता लॉ एंड ऑर्डर का संकट
Rabari Devi का आरोप
बिहार में चुनाव आते ही माहौल मानो किसी मसाला फिल्म जैसा हो जाता है – ड्रामा, सस्पेंस, एक्शन, सबकुछ! अभी विधानसभा का लास्ट डे है, हर नेता माइक पकड़कर अपनी-अपनी डींगें हांक रहा है। राबड़ी देवी (Rabari Devi) तो सीधी-सीधी बोल गईं कि उनके लाडले तेजस्वी यादव की जान को खतरा है, और कोई सीरियस साजिश चल रही है। वैसे भी, बिहार में क्राइम की खबरें तो ऐसे आती हैं जैसे रोज़ सवेरे की चाय – कभी हाजीपुर, कभी सहरसा, कभी मधेपुरा। मतलब, गोलीबारी, घर में घुसकर मारपीट, सड़क पर झगड़े – ये सब अब नॉर्मल लगने लगा है। कानून-व्यवस्था? हां, वही जो हर बार चुनाव के टाइम सबसे बड़ा मुद्दा बनती है, फिर वही ढाक के तीन पात।
अब आंकड़ों की बात करें तो, बिहार में क्राइम रेट नेशनल एवरेज से ऊपर है, यानी सरकार के लिए रेड अलर्ट, लेकिन ज़मीन पर तो पुलिस भी बस दौड़-भाग में दिखती है – एक्शन कम, शोशा ज्यादा। एक्सपर्ट लोग भी अब बोलने लगे हैं कि सरकार को टाईट होना पड़ेगा, वरना जनता तो बर्बाद ही है। पुलिसिंग दुरुस्त करो, नहीं तो चुनाव में भी बवाल तय है।
राबड़ी देवी का बयान तो और भी मिर्च-मसाला डाल देता है पॉलिटिक्स में। उनका कहना है कि तेजस्वी की जान खतरे में है, विपक्षी पार्टियां साजिशें रच रही हैं, और पुलिस बस हाथ पर हाथ धरे बैठी है। ऊपर से तेजस्वी यादव खुद भी आए दिन सरकार पर उंगली उठाते रहते हैं – राज्य हो या केंद्र, दोनों को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ते।
अब देखो, बीजेपी वाले कह रहे हैं – सब ठीक है, विपक्ष फालतू हल्ला कर रहा है। जेडीयू वाले भी बोले कि सरकार क्राइम कंट्रोल कर रही है, लेकिन विपक्ष तो लगे हाथ आरोप लगा रहा है कि ये सब चुनाव टालने की चाल है। कौन सही, कौन गलत – इसका जवाब देने वाला शायद कोई बाबा ही होगा!
सदन में भी नाटक कम नहीं है। विपक्ष के एमएलसी काले कपड़े पहनकर पहुंच गए, बोले वोटर लिस्ट में गड़बड़झाला है। बहस हुई, हंगामा हुआ – मतलब चुनावी मूड पूरी तरह ऑन है। वोटर वेरिफिकेशन में धांधली का इल्जाम, चुनाव आयोग पर सवाल – ये तो हर सीजन की फेवरेट स्टोरी हो गई है।
पुलिस अमीरों की रखवाली में
चुनाव सुधार के नाम पर भी ढेरों सुझाव आए – वोटर लिस्ट का ठीक से ऑडिट करो, फिंगरप्रिंट सिस्टम लाओ, इ-वेरिफिकेशन करो। सब बातें सुनने में बड़ी तगड़ी लगती हैं, लेकिन असल में कितना होता है, ये तो बिहार की जनता ही जानती है।
अब थोड़ा फ्लैशबैक – 2005 से पहले का बिहार, यानी असली ‘जंगल राज’। पुलिस अमीरों की रखवाली में, गरीबों का कोई नामोनिशान नहीं। अपराधियों का बोलबाला, कानून नाम की चीज़ बस किताबों में। नीतीश कुमार कहते हैं, अब वो दौर चला गया, बिहार बदल रहा है। लेकिन विपक्ष बोलता है, “कहां साहब, क्राइम तो आज भी छत पर बैठा है!”
सीधी बात – बिहार में सुधार तो हुआ है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ बाकी है। नेता लोग चाहे जितना भाषण दें, जमीनी हकीकत में आम आदमी आज भी डरा हुआ है। चुनाव आएंगे-जाएंगे, बयानबाजी चलेगी, लेकिन असली सवाल यही है – क्या बिहार कभी चैन की नींद सो पाएगा?
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