Vimarsh News
Khabro Me Aage, Khabro k Pichhe

Dasharath Manjhi का घर Rahul gandhi ने आखिर बना ही डाला, JDU और BJP के सत्ता में नही बन पाया

congress finally built dasarath manjhi's house
0 44

राहुल गांधी(Rahul gandhi) इन दिनों बिहार के चक्कर खूब काट रहे हैं – जैसे कोई दोस्त अपने पुराने मोहल्ले में बार-बार लौट आए. चुनावी साल है, तो समझ आता है. अब तक आधा दर्जन बार बिहार घूम चुके हैं, और पिछली बार तो खुद माउंटेन मैन दशरथ मांझी (Dasharath Manjhi) के घर भी पहुंच गए थे. फिल्में बन गईं, नेता लोग फोटो खिंचवा गए, मगर मांझी जी के परिवार का हाल वही ढाक के तीन पात. राहुल ने देखा, सुना, और फिर ठान लिया – भाई, अब इनके लिए पक्का घर बनवाना ही बनता है. घर आधा बन भी गया है, वैसे.

बिहार का बच्चा-बच्चा जानता है दसरथ मांझी (Dashrath manjhi) को

दशरथ मांझी – ये नाम बिहार में बच्चा-बच्चा जानता है. आदमी ने पहाड़ काटकर रास्ता बना दिया, बाकी नेता लोग तो बस वादे काटते-चिपकाते रहते हैं. मांझी पर फिल्म भी बन गई थी, और नीतीश कुमार ने तो एक बार खुद अपनी कुर्सी पर बिठा दिया था – बस, दिखावे के लिए. असल में परिवार की हालत जस की तस रही. पिछले महीने राहुल गांधी गए थे गया के नजदीक गेहलौर गांव, मांझी के परिवार से मिले, हालचाल पूछा. बेटे भगीरथ ने तब सामने ही कह दिया – “सर, अब तक पक्का मकान नहीं है. कुछ कीजिए.” राहुल ने फौरन वादा किया, और अब चार कमरों वाला घर आधा बन चुका है.

वैसे भगीरथ भी अब राजनीति में उतर आए हैं, जेडीयू छोड़कर कांग्रेस जॉइन कर ली. और तो और, अगला चुनाव लड़ने की भी मंशा जाहिर कर दी – टिकट चाहिए पार्टी से. राजनीति में आने का टाइमिंग देखिए, जैसे IPL में सही वक्त पर बैटिंग ऑर्डर बदल जाए.

Dasharath Manjhi का घर Rahul gandhi ने देखा

मांझी का नाम तो पूरे बिहार में इज्जत वाला है, परिवार भले संघर्ष कर रहा हो. 2007 में दशरथ मांझी का निधन हो गया था, लेकिन कांग्रेस को भी नया मौका मिल गया है – दलित वोट बैंक को फिर से पटाने का. राहुल गांधी जब कच्चा घर देखकर निकले, तो नारियल पानी भी पी आए – बस, इंस्टा स्टोरी बनना बाकी था शायद. 20-30 साल से मांझी की बात हो रही है, पर पक्का घर अब मिल रहा है.

अब विधानसभा चुनाव फिर सिर पर हैं. कांग्रेस अपने पुराने दिन याद कर रही है, जब बिहार में दलित वोटर उनके साथ थे. अब तो हर पैंतरा आजमा रहे हैं – नया प्रदेश अध्यक्ष दलित नेता राजेश राम को बनाया, सुशील पासी को सह-प्रभारी, हर इवेंट में दलितों की मौजूदगी – सब सेटिंग चल रही है. मांझी मुसहर जाति के थे, अनुसूचित जाति में आते हैं – सीधा गणित है वोट का.

फरवरी में कांग्रेस ने पासी नेता जगलाल चौधरी की 130वीं जयंती भी पूरे तामझाम से मनाई, राहुल खुद पहुंचे थे – सबको दिखाना है कि भाई, हम साथ हैं. कुल मिलाकर, कांग्रेस की कोशिश साफ है – पुराना वोट बैंक फिर से पकड़ो, जो 19% है बिहार की आबादी में.

दलित वोट कांग्रेस के साथ

एक वक्त था, दलित वोट कांग्रेस के साथ चट्टान की तरह खड़ा था. 90 के बाद ये सपोर्ट फिसलता गया, और 2005 के बाद तो कांग्रेस का वोट शेयर एकदम रसातल में चला गया. 1990 में करीब 25% वोट मिलता था, 2005 तक आते-आते 6% रह गया. नीतीश कुमार और उनकी पार्टी ने दलित वोट की हवा अपनी तरफ मोड़ ली.

243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में 38 सीटें SC और 2 ST के लिए रिजर्व हैं. पिछले 30 साल में कांग्रेस बस गिरती ही रही – 2015 में भी महागठबंधन के साथ लड़े, पर 6.7% वोट ही मिला. 2020 में थोड़ा सुधार हुआ, 9.5% के करीब पहुंचे, 19 सीटें भी जीत लीं, जिनमें 5 रिजर्व थीं. 2015 में 27 सीटें मिली थीं, यानी 8 सीटों का नुकसान. अब सबकी नजर इस बात पर है कि राहुल गांधी दलित समुदाय को लुभा पाएंगे या नहीं – और कांग्रेस की नैया तैर पाएगी या फिर वही पुराने हालात रहेंगे.

सीधे-सपाट कहें तो, कांग्रेस अभी भी उम्मीद में है कि दशरथ मांझी की कहानी और दलित कार्ड से बिहार में फिर से पुराना जलवा लौट आए. अब ये जादू चलता है या नहीं – जवाब कुछ महीनों में मिल ही जाएगा.

इसे भी पढ़ें – Land For Job मामले में आज होगी सुनवाई, Lalu Yadav का सुप्रीम कोर्ट से ट्रायल पर रोक लगाने की मांग

Leave a comment