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Red Fort blast: चश्मदीद के खुलासे, हताहतों का आंकड़ा और सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल

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कल शाम दिल्ली के लाल किले के पास एक जोरदार धमाका हुआ। ये इलाका हमेशा लोगों से भरा रहता है। धमाके ने सबको स्तब्ध कर दिया। दस लोग मारे गए। चौबीस घायल हो गए। आप सोचिए, एक व्यस्त सड़क पर ये सब कैसे हो गया। चश्मदीद ने जो बताया, वो दिल दहला देने वाला है। हम उसकी बातों से घटना को समझेंगे। साथ ही, सुरक्षा पर उठे सवालों पर नजर डालेंगे। ये कहानी सिर्फ हादसे की नहीं, बल्कि हमारी लापरवाही की भी है।

धमाके की भयावहता: चश्मदीद का चकित कर देने वाला विवरण

धमाके ने आसपास सब कुछ उजाड़ दिया। चश्मदीद ने कहा कि आवाज एक किलोमीटर दूर तक गई। शाम के छह बजकर पचास मिनट का वक्त था। लोग मेट्रो की ओर जा रहे थे। अचानक धमाका। दिल टूट जाता है जब सोचते हैं कि कितने परिवार बिखर गए।

धमाके की तीव्रता और तात्कालिक प्रभाव

धमाका इतना तेज था कि गाड़ियां चूर हो गईं। चश्मदीद ने बताया, दस से बारह गाड़ियां पूरी तरह तबाह हो गईं। इनमें से एक टैक्सी थी। उसकी नंबर प्लेट एचआर २६ से शुरू होती थी। आखिरी चार अंक ७६७४ थे। इंजन जलकर राख हो गया। बॉडी मुड़ गई। आप कल्पना कीजिए, ड्राइवर टैक्सी की ड्रेस में फंस गया था। धमाके की ताकत ने सबको हिला दिया। सड़क पर लोहे के टुकड़े बिखर गए। ये दृश्य देखकर आंखें नम हो जाती हैं। कई लोग अभी भी दर्द में हैं।

पहली गाड़ी में धमाका हुआ।
फिर दूसरी सीएनजी गाड़ियां फटने लगीं।
चश्मदीद ने कहा, जाम की वजह से नुकसान ज्यादा हुआ।

ये हादसा हमें सोचने पर मजबूर करता है। क्या हम सुरक्षित हैं ऐसी जगहों पर?

नागरिकों द्वारा शुरुआती बचाव कार्य

पुलिस न आने पर लोग खुद आगे आए। चश्मदीद ने चार बॉडीज गाड़ियों से निकालीं। दो बॉडीज सड़क से उठाईं। कुल छह जिंदगियां बचाने या निकालने में हाथ बंटाया। शवों की हालत देखकर रूह कांप जाती है। कुछ शरीर आधे थे। लोहे में दबे हुए। पब्लिक ने गाड़ियां हटाईं। एम्बुलेंस में शव रखे। दस मिनट तक इंतजार किया। ये साहस की मिसाल है। लेकिन दुख होता है कि मदद के लिए इंतजार क्यों?

चश्मदीद ने बॉडीज को चीरकर निकाला। टैक्सी ड्राइवर की पहचान मुश्किल थी। घायलों को देखा। कुछ आधे शरीर लिए भाग रहे थे। ये बातें सुनकर गुस्सा आता है। लोग क्यों अकेले लड़ें?

घटनास्थल पर आपातकालीन प्रतिक्रिया की विफलता

धमाके के बाद सन्नाटा छा गया। फिर लोग दौड़े। लेकिन आधिकारिक मदद देर से पहुंची। चश्मदीद ने कहा, दस मिनट लग गए। उस वक्त जिंदगियां लटक रही थीं। हम सोचते हैं, अगर जल्दी आ जाते तो क्या बच जाते कुछ लोग? ये देरी ने दर्द बढ़ा दिया। परिवारों का रोना आज भी गूंजता है।

पुलिस और बचाव दल की देरी से प्रतिक्रिया

शाम छह बजकर पचास पर धमाका हुआ। दमकल और पुलिस दस मिनट बाद आई। चश्मदीद ने फोन किया। लेकिन मौके पर सिर्फ दो पुलिस वाले थे। वो चौकी से निकले। बॉडीज निकालने में पब्लिक की मदद ली। एक गाड़ी इतनी क्षतिग्रस्त थी कि चीरनी पड़ी। फिर आखिरकार प्रशासन पहुंचा। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी। दूसरी सीएनजी गाड़ियां फटने को तैयार थीं। लोगों ने उन्हें हटाया। खतरा टला। लेकिन ये जोखिम क्यों उठाना पड़ा?

  • धमाके के वक्त कोई इमरजेंसी सर्विस नहीं।
  • पब्लिक ने छह बॉडीज संभालीं।
  • पुलिस ने बाद में चार बॉडीज लीं।

ये कहानी दुखद है। मदद की कमी ने हादसे को बड़ा बना दिया।

भीड़भाड़ और ट्रैफिक जाम की भूमिका

इलाका व्यस्त था। जाम लगा हुआ। ठेले सड़क पर। ट्रैफिक पुलिस कहीं नहीं। चश्मदीद ने कहा, ये सबसे बड़ी कमी। अगर जगह खाली होती तो नुकसान कम होता। लाइटें खुली रखनी चाहिए। भीड़ नियंत्रण होता तो बचाव आसान। लेकिन जाम ने सब फंसाया। रोड पार्किंग की तरह हो गया। सवाल उठता है, क्यों ऐसी लापरवाही? लाल किले जैसे जगह पर सख्ती जरूरी।

ट्रैफिक जाम ने धमाके को घातक बनाया। लोग फंस गए। गाड़ियां आपस में टकराईं। ये सब रोकना संभव था। लेकिन प्रबंधन फेल रहा। दर्द होता है उन परिवारों का।

लाल किले के आसपास सुरक्षा प्रोटोकॉल पर गंभीर सवाल

लाल किला ऐतिहासिक जगह है। पर्यटक आते हैं। लेकिन सुरक्षा कमजोर। चश्मदीद के शब्दों से साफ है। सख्ती की जरूरत। जाम और भीड़ ने खतरा बढ़ाया। हम क्यों ऐसे जोखिम लें? ये इलाका संवेदनशील। निगरानी बढ़ानी चाहिए। पुलिस मौजूद रहनी चाहिए। ठेले हटाने के नियम सख्त करें। तभी सुरक्षित बनेगा। दुख की बात, दस जिंदगियां चली गईं।

उच्च जोखिम वाले क्षेत्र में सुरक्षा की स्थिति

लाल किले के पास हमेशा भीड़। लेकिन ट्रैफिक कंट्रोल नहीं। चश्मदीद ने कहा, कोई पुलिस वाला नहीं। खाली एरिया चल रहा। जाम लगा। ये लापरवाही है। उच्च जोखिम वाले स्पॉट पर कैमरे लगें। गश्त बढ़े। स्ट्रीट वेंडर्स को जगह दें। सवाल ये, कब सुधार होगा? भविष्य के लिए सबक लें। परिवारों को न्याय मिले।

  • सख्त सुरक्षा प्रोटोकॉल जरूरी।
  • भीड़ प्रबंधन में सुधार।
  • ट्रैफिक पुलिस की तैनाती।

ये बदलाव लाएं तो हादसे रुकें। लेकिन अभी सवाल बाकी हैं।

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