Vimarsh News
Khabro Me Aage, Khabro k Pichhe

Sharad_Mulayam_RSS_BJP: भाजपा के लिए ख़ास है मुलायम और शरद को RSS की श्रद्धांजलि

0 179

- Sponsored -

- Sponsored -

- Sponsored -

- Sponsored -

Sharad_Mulayam_RSS_BJP: लोकसभा चुनाव 2024 में अभी एक साल का वक्त है, लेकिन इस वक्त देश में जो भी कुछ हो रहा है, उसे राजनीतिक चश्मे से ही देखा जा रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रतिनिधि सभा की बैठक में मुलायम सिंह यादव और शरद यादव को श्रद्धांजलि अर्पित की गई, जिसे बीजेपी की यादव पालिटिक्स से जोड़कर देखा जा रहा है।

Sharad_Mulayam_RSS_BJP: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस की प्रतिनिधि सभा की बैठक हरियाणा के पानीपत में संपन्न हुई। बैठक की शुरुआत में सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए जिन 100 नेताओं के नाम पढ़े। उनमें सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव और सोशलिस्ट नेता शरद यादव भी शामिल थे।

यूं तो संघ का अपनी प्रतिनिधि सभा की बैठक में इस तरह नेताओं व अन्य महत्वपूर्ण हस्तियों को श्रद्धांजलि देना आम बात है। लेकिन पिछले कुछ समय से बीजेपी जिस तरह से यादव समुदाय के बीच पैठ बनाने के लिए सक्रिय है, उसे देखते हुए मुलायम और शरद को संघ की श्रद्धांजलि के राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं।

Sharad_Mulayam_RSS_BJP: गौर करें तो मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश में यादव समुदाय के सर्वमान्य नेता रहे। सूबे के यादव वोटों के सहारे मुलायम सिंह खुद यूपी में तीन बार मुख्यमंत्री रहे तो एक बार उनके बेटे अखिलेश यादव ने सत्ता की कमान संभाली। यादव समुदाय सपा का हार्डकोर वोटर माना जाता है। ऐसे ही समाजवादी नेता शरद यादव भले ही मध्य प्रदेश के रहने वाले थे, लेकिन यूपी से लेकर बिहार तक में यादव समुदाय के बीच ठीकठाक पकड़ रखते थे। ख़ास बात ये है कि दोनों ही नेताओं का सियासी जीवन आरएसए और बीजेपी के विरोध के इर्द-गिर्द सिमटा रहा।

मुलायम सिंह यादव ने यूपी में मुख्यमंत्री रहते हुए अयोध्या में कारसेवकों पर लाठियां और गोलियां चलवाई थी। इसे लेकर संघ उनका विरोध करता रहा है और कारसेवकों पर गोली कांड को बीजेपी चुनावी मुद्दा बनाती रही। शरद यादव भी आरएसएस और बीजेपी की विचारधारा का हमेशा विरोध करते रहे।

- Sponsored -

- Sponsored -

- Sponsored -

- Sponsored -

Sharad_Mulayam_RSS_BJP: बता दें कि मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने सैफाई पहुंच कर दुख जताया था। विश्व हिंदू परिषद के प्रयागराज दफ्तर में मुलायम के लिए श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया था और अब संघ ने भी प्रतिनिधि सभा में श्रद्धांजलि दी है। इसके राजनीतिक मायने निकाले जाने लगे हैं। राजनीतिक विश्लेषक इसे 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए पिछड़े वर्ग में प्रभावशाली यादव वोटबैंक को जोड़े की कवायद के तौर पर देख रहे हैं।

साल 2025 में आरएसएस के सौ साल पूरे हो रहे हैं। शताब्दी वर्ष पर संघ सभी समाज और वर्ग के बीच पहुंचने की रणनीति बनाई है। ऐसे में मुलायम सिंह यादव और शरद यादव को संघ ने श्रद्धांजलि देकर यादव समुदाय को सियासी संदेश देने की कोशिश की है। भले ही मुलायम सिंह और शरद यादव किसी भी राजनीतिक दल से रहे हों और जिंदगी भर विरोध करते रहे हो, लेकिन संघ उनका सम्मान करता है। इसके पीछे यादव वोटों को जोड़ने की रणनीति है।

Sharad_Mulayam_RSS_BJP: केंद्र में बीजेपी की सरकार बनने के बाद आरएसएस अपनी छवि में सुधार लाने का प्रयास कर रहा है तो बीजेपी भी अपने आपको यादव समुदाय के बीच अपनी पकड़ को बनाए रखना चाहती है। प्रतिनिधि सभा की बैठक में मुलायम और शरद यादव को श्रद्धांजलि देना भी उसी का हिस्सा है और इसके जरिए यादवों के बीच जगह बनाने की रणनीति है। यूपी और बिहार में यादव समुदाय की अपनी सियासत होने के चलते ही बीजेपी को सफलता नहीं मिली सकी है, जबकि अन्य राज्यों में ऐसा नहीं है। हरियाणा, राजस्थान और मध्य प्रदेश में यादव समुदाय बीजेपी को वोट देता रहा है। लेकिन यूपी में सपा और बिहार में आरजेडी के साथ है।

गौर करें तो बीजेपी के संसदीय बोर्ड में दो यादव समुदाय के नेताओं को जगह दी है, तो पीएम मोदी पिछले दिनों यादव समुदाय के बड़े नेता रहे हरमोहन सिंह यादव की पुण्यतिथि में वर्चुअल शामिल होकर बड़ा सियासी संदेश दिया था। मोदी सरकार ने मुलायम सिंह यादव को मरणोपरांत पद्म विभूषण दिया। पीएम मोदी ने भी उनके निधन के बाद उनसे जुड़ी यादों को ट्विटर पर साझा किया था और गुजरात में जनसभा को संबोधित करते हुए मुलायम सिंह के योगदान का जिक्र किया था।

बता दें कि देश में 9 फीसदी यादव मतदाता है, जिसमें बिहार में सबसे ज्यादा 15 फीसदी तो यूपी में 11 फीसदी,  हरियाणा में सात फीसदी, मध्य प्रदेश में 5 फीसदी है। बिहार में यादव वोटर आरजेडी का कोर वोटबैंक है, तो यूपी में सपा का हार्डकोर वोटर माने जाते हैं। बीजेपी यूपी में गैर-यादव ओबीसी को साधकर सत्ता में काबिज हो गई है, लेकिन बिहार में अपने दम पर अभी तक नहीं पहुंच सकी है। विधानसभा चुनाव में यादव समुदाय भले ही बिहार में आरजेडी और यूपी में सपा को वोट देता रहा हो, लेकिन लोकसभा में बीजेपी के हिस्से के हिस्से में अच्छा खासा जाता रहा है। बीजेपी की कोशिश है कि यादव वोटों के बीच अपनी पकड़ बना लेती है, तो फिर लंबे समय तक सत्ता में बनी रह सकती है?

- Sponsored -

- Sponsored -

- Sponsored -

- Sponsored -
Leave a comment
Off