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शोषित वर्ग का संघर्ष, सत्ता समीकरण और भारतीय लोकतंत्र का भविष्य

shoshit varg ka sangharsh bharatiya loktantra
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लेखक – सियाशरण शर्मा, सामाजिक कार्यकर्ता

जब शोषित वर्ग अपने अधिकार की मांग करता है तब शोषक वर्ग के आंख में खून उतर आया है। 1947 के पहले भारतीय जनता का शोषक कौन था। ब्रिटिश साम्राज्यवाद तथा उनके दलाल पूंजीपति, जमीन्दार तथा नौकरशाह। बहुत कुर्बानी के बाद भी वयस्क मताधिकार नहीं दिया।

शोषित वर्ग का संघर्ष

1947मे भारत के पूंजीपति तथा जमीनदारों की पार्टी कांग्रेस जो अब विश्व के सभी साम्राज्यवादियों के दलाली कर रही थी जनता को संविधान में वयस्क मताधिकार दिया लेकिन राज्य सत्ता के सहयोग से बन्दूक के बल पर उपरी जाति के जमींदारों ने पचास वर्षों तक हिंदी क्षेत्र में दलित तथा कमजोर वर्ग को वोट देने नहीं दिया। अन्त में शोषित वर्ग गैर-संवैधानिक यानी सशस्त्र सन्घर्ष का रास्ता अपनाने लगा।

जबरन बूथ कब्जा

पूरी शोषक व्यवस्था पर खतरा उपस्थित हो गया। शोषक वर्ग इसपर गम्भीरता से विचार किया। वहीं सत्ता जो कल जबरन बूथ कब्जा में सहयोग कर रही थी लोगों को वोट देने के लिये प्रेरित करने लगी।

जब जनता वोट देने लगी तब सत्ता समीकरण बदलने लगा। आज भाजपा सत्ता में है। उपरी जाति के जमींदार, बड़े पूंजीपति, विश्व की साम्राज्यवादी शक्तियां जो कल कांग्रेस के साथ थी आज वे भाजपा के साथ है।

शोषित वर्ग की पार्टी

भाजपा किसी भी तरह से सत्ता समीकरण में बदलाव होने देना नहीं चाहती जब कि चुनावी स्पर्धा में शोषित वर्ग की पार्टी नहीं है। फिर भी शोषक वर्ग यह भी बदलाव मानने के लिये तैयार नहीं है। जनता की आकांक्षा को रोकने का तरीका बदल गया है।

अब बन्दूक के बल पर जनता के बहुमत को रोक पाना असम्भव है। अब यही काम पूजी, नौकरशाही, तथाकथित स्वायत्त संस्था जैसे चुनाव आयोग, न्यायपालिका , प्रशासन तथा मीडिया के बल पर हो रहा है।

अल्पसंख्यकों के विरोध में घृणा की राजनीति

सभी अपना मुखौटा खोलकर सहयोग कर रहे हैं, यदि इस आन्शिक बदलाव के प्रति जब इनका यह नजरिया है तब जिस दिन शोषित वर्ग अपना पूरा हिस्सा मांगेंगे तब ये कहां तक जायेगे, इसकी आप कल्पना कीजिए।‌

भाजपा और अन्य शोषक वर्ग के पार्टी में एक अन्तर है इसका अल्पसंख्यकों के विरोध में घृणा की राजनीति। इसके द्वारा यह एक बड़े जनाधार को तैयार किया है जो पूरी तरह अल्पसंख्यक और दलित विरोधी मानसिकता से लैस है तथा कुछ भी तर्क सुनने के लिये तैयार नहीं है। उसे तर्क ,संविधान, लोकतंत्र से कोई मतलब नहीं है। यहां तक कि इस पार्टी मे बहुसंख्यक गरीब तथा मध्यमवर्ग शामिल हैं वह अपने हितों पर भी कुल्हाड़ी मार रहा है।

भ्रष्टाचार तथा अवसरवाद में डूबा विपक्ष

भ्रष्टाचार तथा अवसरवाद में डूबा विपक्ष अपना तेवर खो चुका था राहुल गांधी ने उसमें जान डाला है। फासीवाद विरोधी सन्घर्ष में जान फूंकने का प्रयास किया है लेकिन सीमा यह है कि उनके दल में क ई शशि थरूर शामिल हैं, क ई अवसरवादी सहयोगी दल है जो कभी भी नीतिश कुमार बनने के लिये तैयार है। ऐसी स्थिति में जनता की जागृति ही इस फासीवाद विरोधी अभियान को आगे बढ़ा सकता है। साझा नागरिक मन्च की यहीं महत्वपूर्ण भूमिका है।

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