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SIR विवाद: पश्चिम बंगाल में Election Commission कार्यालय का घेराव, विरोध के बीच ऑफिस करना पड़ा बंद

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कोलकाता के चुनाव आयोग (Election Commission) दफ्तर के बाहर रात का सन्नाटा टूट गया। सैकड़ों अधिकारी चिल्ला रहे थे। उन्होंने दफ्तर को घेर लिया। हंगामा इतना बढ़ा कि दफ्तर लॉक करना पड़ा। ये वही लोग थे जो ज्ञानेश कुमार के नेतृत्व में एसआईआर (SIR) प्रक्रिया चला रहे थे। BLO और शिक्षक भी शामिल थे। वे एसआईआर (SIR) पर स्पष्टीकरण मांग रहे थे। पुलिस ने बैरिकेडिंग लगाई। यह घटना पश्चिम बंगाल चुनाव निगरानी पर सवाल उठाती है। क्या आप जानते हैं कि आंतरिक विरोध इतना तेज कैसे हो गया?

एसआईआर प्रक्रिया: विवाद की जड़ क्या है?

एसआईआर मतलब स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन। यह चुनाव आयोग की एक प्रक्रिया है। इसका लक्ष्य वोटर लिस्ट को साफ करना होता है। पश्चिम बंगाल में ज्ञानेश कुमार इसकी अगुवाई कर रहे हैं। BLO और स्थानीय कर्मचारियों को इसमें लगाया गया। वे घर-घर जाकर जांच करते हैं। लेकिन कई जगह गलतियां बताई गईं। प्रक्रिया तेजी से चल रही थी। कर्मचारियों पर दबाव पड़ा। यह चुनाव की निष्पक्षता के लिए जरूरी कदम था। फिर भी विवाद बढ़ गया।

कुछ BLO ने कहा कि समय कम था। लिस्ट में नाम हटाने के नियम सख्त हैं। आयोग ने दिशा-निर्देश दिए थे। लेकिन जमीन पर मुश्किलें आईं। उदाहरण के लिए, एक BLO को 500 घरों की जांच करनी पड़ी। सिर्फ दो हफ्तों में। यह बोझ ज्यादा था। एसआईआर से वोटर लिस्ट सटीक बनेगी। लेकिन लागू करने में दिक्कत हुई।

प्रदर्शनकारी कौन थे और उनकी मुख्य मांगें क्या थीं

प्रदर्शनकारी BLO थे। शिक्षक भी थे। SIR प्रक्रिया में लगे अन्य कर्मचारी भी। ये वही लोग जिन्हें ज्ञानेश कुमार SIR करवा रहे थे। वे रात को दफ्तर पहुंचे। मुख्य मांग थी स्पष्टीकरण। SIR के नियमों पर सवाल उठाए। क्यों इतना दबाव? क्यों समय कम?

वे चिल्लाए, “स्पष्ट करो नियम!”। कोई हिंसा नहीं हुई। लेकिन गुस्सा साफ दिखा। यह पहला ऐसा मामला था। कर्मचारी खुद विरोध पर उतर आए।

चुनाव आयोग कार्यालय के बाहर तनावपूर्ण स्थिति

विरोध रात में हुआ। रात 10 बजे के करीब। यह असामान्य था। दिन में तो लोग काम करते हैं। रात को दफ्तर घेरना बड़ा संकेत। हंगामा तेज था। नारे लगे। दफ्तर के चारों ओर भीड़ जमा। हालात बिगड़े तो लॉक कर दिया। अंदर स्टाफ फंस गया। यह तनाव की चरम सीमा थी।

भीड़ बढ़ती गई। कोई 200 लोग थे। वे हटने को तैयार नहीं। रात का अंधेरा और चीखें। डरावना माहौल। पुलिस आई तो थोड़ा कंट्रोल हुआ। लेकिन घेराव बना रहा।

पुलिस की कार्रवाई और सुरक्षा व्यवस्था

पुलिस ने तेजी दिखाई। बैरिकेडिंग लगाई। प्रदर्शनकारियों को दूर रखा। दफ्तर के बाहर लोहे की रॉड्स गाड़ीं। कोई हिंसा न हो, इसके लिए तैनाती बढ़ाई। वर्दी वाले हर तरफ। पानी की बौछार की धमकी दी। लेकिन जरूरत न पड़ी।

सुरक्षा मजबूत थी। CCTV चालू। वरिष्ठ अधिकारी मौजूद। प्रदर्शनकारी शांत हुए। सुबह तक खींचा। यह व्यवस्था ने बड़ा हादसा रोका। पश्चिम बंगाल पुलिस की तारीफ हुई।

ज्ञानेश कुमार और चुनाव आयोग प्रबंधन पर सवाल

सबसे बड़ा ट्विस्ट यह। जिन अधिकारियों से ज्ञानेश कुमार SIR करवा रहे थे। उन्हीं ने घेराव किया। आंतरिक विद्रोह जैसा। ज्ञानेश कुमार कौन? चुनाव आयोग के बड़े अधिकारी। वे SIR चला रहे। लेकिन टीम ने ही नाक में दम कर दिया। यह प्रबंधन की कमजोरी दिखाता है।

क्यों ऐसा? शायद निर्देश अस्पष्ट। कर्मचारी कन्फ्यूज्ड। विरोध से सवाल उठे। क्या SIR सही दिशा में? आयोग को जवाब देना होगा।

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