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Sonam Wangchu की हिरासत: Supreme Court में 6 अक्टूबर की सुनवाई, मिलने जा रही राहत?

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सोनम वांगचू (Sonam Wangchu) की गिरफ्तारी ने पूरे देश का ध्यान खींचा है। एक शांतिपूर्ण कार्यकर्ता को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत बंद रखा गया। अब उनकी पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। 6 अक्टूबर को सुनवाई होनी है। यह केस लद्दाख की आजादी और अधिकारों की लड़ाई का केंद्र बन गया। क्या कोर्ट उन्हें रिहा करेगा? सवाल बड़ा है। लाखों लोग इंतजार कर रहे हैं।

सोनम वांगचू कौन हैं और उनका आंदोलन क्या है?

सोनम वांगचू लद्दाख के मशहूर कार्यकर्ता हैं। वे नवाचारक भी हैं। उन्होंने पहाड़ी इलाकों के लिए कई उपकरण बनाए। उनका आंदोलन शांत है। वे लद्दाख को यूनियन टेरिटरी से राज्य बनाने की मांग कर रहे हैं। दूसरी मांग छठी अनुसूची में शामिल होना है। यह मांगें लोकतांत्रिक हैं। वांगचू ने कभी हिंसा का सहारा नहीं लिया। वे स्थानीय लोगों के हितों की बात करते हैं। उनका संघर्ष पर्यावरण और संस्कृति बचाने का है।

लद्दाख के लोग राज्य का दर्जा चाहते हैं। इससे संसाधन बेहतर बंटेंगे। नौकरियां बढ़ेंगी। संस्कृति सुरक्षित रहेगी। छठी अनुसूची आदिवासी इलाकों को स्वशासन देती है। वांगचू का आंदोलन इसी पर टिका है। वे कहते हैं कि केंद्र सरकार को स्थानीय आवाज सुननी चाहिए। यह लड़ाई सालों से चल रही है। अब यह कोर्ट के दरवाजे पर है।

Sonam Wangchu की हिरासत और गीतांजलि वांगचू की याचिका

गीतांजलि वांगचू ने पति की रिहाई के लिए याचिका दी। उन्होंने कहा कि सोनम को NSA के तहत गलत तरीके से पकड़ा गया। एक हफ्ते से ज्यादा हो गया। कोई खबर नहीं मिली। परिवार चिंतित है। याचिका में कहा गया कि वांगचू का आंदोलन शांतिपूर्ण था। वे हिंसा में शामिल नहीं थे। सिर्फ मांग उठा रहे थे।

यह केस लद्दाख से दिल्ली पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने इसे स्वीकार किया। गीतांजलि ने आरोप लगाया कि हिरासत अवैध है। कोई सबूत नहीं दिया गया। परिवार को जानकारी देने से इनकार किया जा रहा। यह संविधान के खिलाफ है। याचिका में हेबियस कॉर्पस की मांग है। मतलब वांगचू को कोर्ट में पेश करें। परिवार की चिंता बढ़ रही है।

राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत हिरासत का विवाद

NSA एक कठोर कानून है। यह रोकथाम हिरासत की अनुमति देता है। बिना मुकदमे के दो साल तक बंद रख सकते हैं। लेकिन इसका इस्तेमाल शांत कार्यकर्ताओं पर गलत लगता है। वांगचू का केस ऐसा ही है। याचिका में कहा गया कि यह कानून राजनीतिक आवाज दबाने के लिए यूज हो रहा। संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। अभिव्यक्ति की आजादी खतरे में है।

कई कार्यकर्ता NSA से परेशान हैं। यह कानून असली खतरों के लिए बना था। लेकिन अब सामाजिक आंदोलनों पर लगाया जा रहा। लद्दाख जैसे इलाकों में यह दमन का हथियार बन गया। याचिका इसकी आलोचना करती है। कोर्ट को फैसला करना होगा। क्या शांत मांगें सुरक्षा खतरे हैं? सवाल गंभीर है।

NSA के प्रावधान और विरोधियों का उपयोग

NSA 1980 का कानून है। यह केंद्र को हिरासत का अधिकार देता है। कोई चार्जशीट जरूरी नहीं। लेकिन जजों को लगता है कि इसका दुरुपयोग हो रहा। कार्यकर्ताओं को चुप कराने के लिए यूज होता है। वांगचू के साथ भी यही हुआ। उनका आंदोलन असंवैधानिक नहीं था। फिर भी बंद किया गया। यह विवाद बढ़ा रहा।

अवैध हिरासत का आरोप: पत्नी की दलीलें

गीतांजलि ने साफ कहा। सोनम ने सिर्फ लोकतांत्रिक मांगें उठाईं। राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची। कोई हिंसा नहीं। हिरासत में पारदर्शिता का अभाव है। परिवार को कुछ नहीं बताया। यह बेसिक अधिकारों का हनन है। याचिका में सबूत मांगे गए। कोर्ट से गुजारिश है कि जांच हो। परिवार की दलील मजबूत लगती है।

सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप: सुनवाई की प्रक्रिया

केस लद्दाख कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। याचिका दाखिल हुई। अब दो जजों की बेंच सुनवाई करेगी। प्रक्रिया तेज हुई। यह हेबियस कॉर्पस का मामला है। कोर्ट हिरासत की वैधता जांचेगा। वांगचू को पेश करने का आदेश आ सकता है। महत्वपूर्ण कदम है यह।

सुप्रीम कोर्ट की पीठ और मामले का स्थानांतरण

जस्टिस अरविंद कुमार और एनवी अंजारिया बेंच संभालेंगे। दोनों अनुभवी हैं। यह स्थानांतरण गंभीरता दिखाता है। हाई कोर्ट से ऊपर आया केस। सुप्रीम कोर्ट का फैसला देशव्यापी असर डालेगा। स्थानीय कोर्ट पर्याप्त नहीं थे। अब शीर्ष अदालत फैसला लेगी।

6 अक्टूबर की सुनवाई का महत्व

6 अक्टूबर को सुनवाई है। सभी की नजरें इस पर। कोर्ट अंतरिम राहत दे सकता है। हिरासत खत्म हो सकती है। या जांच का आदेश। यह तारीख निर्णायक है। लद्दाख की मांगें भी चर्चा में आएंगी। परिणाम तुरंत प्रभाव डालेंगे। क्या वांगचू रिहा होंगे? इंतजार है।

लद्दाख की संवैधानिक मांगें: राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची

वांगचू का आंदोलन गहरी राजनीतिक मांगों पर आधारित है। लद्दाख को राज्य बनाना पहली प्राथमिकता। इससे स्थानीय नियंत्रण बढ़ेगा। संसाधन सही जगह जाएंगे। दूसरी मांग छठी अनुसूची। यह आदिवासी स्वायत्तता देती है। लद्दाख की संस्कृति और पर्यावरण बचाने के लिए जरूरी। ये मांगें सालों पुरानी हैं। केंद्र ने वादा किया था। लेकिन पूरा नहीं किया।

लद्दाख की आबादी कम है। लेकिन महत्व बड़ा। राज्य बनने से विकास तेज होगा। पर्यटन और खेती सुधरेगी। छठी अनुसूची जमीन और संस्कृति की रक्षा करेगी। बाहरी लोग हस्तक्षेप न कर सकें। वांगचू ने इन्हीं मुद्दों पर आवाज उठाई। उनका संघर्ष प्रेरणा है।

लद्दाख को राज्य का दर्जा क्यों आवश्यक है?

स्थानीय लोग संसाधनों की कमी से जूझते हैं। राज्य बनने से बजट सीधा मिलेगा। नौकरियां पैदा होंगी। युवा पलायन रुक जाएगा। सांस्कृतिक पहचान बचेगी। लद्दाख का भूगोल कठिन है। केंद्र से दूरियां ज्यादा। राज्य का दर्जा समस्याओं का हल है। वांगचू ने कई रैलियां कीं। हजारों समर्थक हैं।

छठी अनुसूची का महत्व:

संविधान की छठी अनुसूची पूर्वोत्तर राज्यों के लिए है। लेकिन लद्दाख भी योग्य है। यह स्थानीय परिषदें बनाती हैं। जमीन और वन पर नियंत्रण देती है। लद्दाख के बौद्ध और मुस्लिम समुदायों को फायदा। पारिस्थितिकी संतुलन बना रहेगा। खनन जैसे खतरे कम होंगे। वांगचू का आंदोलन इसी की मांग करता है।

राष्ट्रीय प्रतिक्रिया और भविष्य की दिशा

वांगचू की गिरफ्तारी ने देश भर में बहस छेड़ दी। कार्यकर्ता सड़कों पर उतरे। सोशल मीडिया पर समर्थन उमड़ा। नागरिक समाज ने चिंता जताई। सभी चाहते हैं कि वांगचू सुरक्षित रहें। उनकी मांगें जायज हैं। यह केस राष्ट्रीय मुद्दा बन गया। भविष्य में आंदोलनों पर असर पड़ेगा।

कार्यकर्ताओं और नागरिक समाज की प्रतिक्रियाएँ
कई समूहों ने बयान दिए। वे वांगचू की रिहाई मांग रहे। एकजुटता दिखाई। प्रदर्शन हुए दिल्ली और लद्दाख में। कोई हिंसा नहीं। सिर्फ शांतिपूर्ण समर्थन। यह दिखाता है कि लोकतंत्र जीवित है। परिवार के साथ खड़े हैं सब।

न्यायपालिका से उम्मीदें और लोकतांत्रिक प्रक्रिया
कोर्ट से उम्मीद है कि अधिकार बचाए। यह लोकतंत्र का परीक्षण है। फैसला पूर्वाग्रहों से मुक्त हो। कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहन मिलेगा। हिरासत के खिलाफ नया मिसाल बनेगा। न्यायपालिका की भूमिका अहम। हम सब देख रहे हैं।

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