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वोट डल चुका है का अजीब ‘किस्सा’: डिजिटल वैधता पर चुनाव आयोग की चुप्पी

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बिहार में चुनाव हो रहे हैं। यह सिर्फ वोट डालना नहीं है। यह लोकतंत्र की परीक्षा है। जैसे ही पहले चरण की वोटिंग शुरू हुई, अजीबोगरीब खबरें सामने आने लगीं। जो काम देश ने सौंपा, वह काम करने वाले ने माचिस जलाकर छोड़ दिया, ऐसा महसूस हो रहा है। हम यहां लोकतंत्र को ज़मीनी स्तर पर लड़खड़ाते देख रहे हैं। एक तरफ सरकार ‘डिजिटल इंडिया’ की बात करती है। दूसरी ओर, वोट डालने पहुंचे लोगों को भगा दिया जा रहा है। यह विरोधाभास चौंकाने वाला है।

पहले चरण की वोटिंग में अजीब गड़बड़ी

जब यह रिपोर्ट लिखी जा रही है, तब बिहार में पहले चरण की वोटिंग जारी है। खबरें बता रही हैं कि माहौल ठीक नहीं है। कई जगह मशीनें बंद हो गईं। बिजली भी चली गई। सबसे बुरी बात यह है कि लोगों को वोट डालने से रोका जा रहा है। यह सब देखकर लगता है कि चुनाव आयोग अपनी ज़िम्मेदारी ठीक से नहीं निभा रहा है। लोगों को लाइन में घंटों खड़े रहने के बाद भी खाली हाथ लौटना पड़ रहा है।

विवादों का मंच: डिजिटल पर्ची बनाम कागजी सबूत

इस बार चुनाव में दो बड़े विवाद सामने आए हैं। पहला विवाद वोटर पर्ची को लेकर है। दूसरा विवाद तो और गंभीर है। कुछ लोगों के वोट पहले ही डाले जा चुके थे। ये खबरें बताती हैं कि व्यवस्था कितनी कमजोर है। लोगों का विश्वास डगमगा रहा है।

डिजिटल पहेली: वोटर स्लिप का झगड़ा

हम डिजिटल ज़माने में जी रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद डिजिटल क्रांति की बात करते हैं। पर बिहार में डिजिटल पर्ची दिखाना भारी पड़ गया। यह तो सरासर नाइंसाफी है।

मनाही का फरमान: सिर्फ हार्ड कॉपी ज़रूरी

कई मतदाताओं ने चुनाव आयोग की वेबसाइट या बीएलओ (BLO) द्वारा भेजे गए लिंक से अपनी वोटर इंफॉर्मेशन पर्ची (VIP) डाउनलोड की। वे अपने फोन में वह पर्ची लेकर बूथ पर पहुंचे। पीठासीन अधिकारी ने कहा, “यह नहीं चलेगा।” उन्होंने साफ कह दिया कि या तो असली कागज लाओ, नहीं तो वोट भूल जाओ।

एक महिला सामने आईं। उन्होंने मीडिया को बताया कि उन्होंने डिजिटल पर्ची दिखाई। उन्हें वोट डालने नहीं दिया गया। यह कैसा नियम है? चुनाव आयोग ने पहले कभी स्पष्ट रूप से नहीं बताया था कि डिजिटल पर्ची मान्य होगी या नहीं।

समस्या: मतदाता आधे-आधे घंटे लाइन में खड़े रहे।
त्रुटि: डाउनलोड की गई डिजिटल पर्ची को अस्वीकार कर दिया गया।
परिणाम: घंटों की मेहनत बेकार गई और वोट नहीं डाला जा सका।

यह महिला एबीपी न्यूज़ चैनल पर अपनी कहानी बता रही थीं।

“मैडम आप जो है वोट करने आई पिछले आधे घंटे से लाइन में लगी रही लेकिन क्या हुआ? वोट कर पाई? वोट नहीं कर पाया। क्या हुआ? वहां पर्ची मांग रहे हैं और बीएलओ ने पर्ची पहुंचाया नहीं। उन्होंने मुझे डिजिटल निकालने को कहा… कहा गया कि पर्ची लाइए नहीं तो नहीं देने दिया जाएगा।”

यह साफ दिखाता है कि ज़मीनी स्तर पर भ्रम फैला हुआ है।

डिजिटल वैधता पर चुनाव आयोग की चुप्पी

सबसे बड़ी बात यह है कि चुनाव आयोग चुप है। उन्होंने पहले कभी यह साफ नहीं किया कि डिजिटल पर्ची काम करेगी या नहीं। इस चुप्पी का फायदा अधिकारियों ने उठाया। उन्होंने मनमाने ढंग से नियम लागू किए। जब लोग मेहनत करके पर्ची डाउनलोड कर रहे हैं, तो उन्हें वोट देने से मना करना गलत है। क्या यह लोकतंत्र का मज़ाक नहीं है?

फर्जीवाड़ा: पहले से डाले गए वोटों के आरोप

डिजिटल पर्ची का मामला तो एक तरफ। दूसरी खबर तो और डराने वाली है। कुछ लोग वोट डालने गए। उन्होंने अपनी उंगलियां भी दिखाईं। स्याही नहीं लगी थी। फिर भी उन्हें बताया गया कि उनका वोट पड़ चुका है।

‘वोट डल चुका है’ का अजीब किस्सा

साहिबगंज विधानसभा क्षेत्र, बूथ नंबर 147 का एक वीडियो वायरल हुआ। वहां तीन लोग खड़े थे। वे साफ दिखा रहे थे कि उनकी उंगलियों पर स्याही नहीं लगी है। लेकिन सिस्टम बता रहा था कि उनका वोट पड़ चुका है। यह कैसे संभव है? अगर वोट पड़ गया, तो स्याही तो लगनी चाहिए।

यह व्यवस्था कितनी चमत्कारी है! आदमी वोट डालने जाए या न जाए, वोट पड़ जाता है। यह धांधली नहीं तो और क्या है? यह दिखाता है कि चुनावी प्रक्रिया पर सवाल उठ रहे हैं।

स्याही का सिद्धांत और उसका उल्लंघन

मतदान का एक बुनियादी नियम है। वोट डालने के बाद उंगली पर अमिट स्याही लगती है। यह सबूत होता है कि व्यक्ति वोट दे चुका है। जब लोगों ने स्याही लगी उंगली नहीं दिखाई, पर रिकॉर्ड में वोट दर्ज था, तो यह बड़ी गड़बड़ी है। यह सीधे तौर पर बूथ कैप्चरिंग या फर्जी वोटिंग की ओर इशारा करता है।

आरजेडी ने इस वीडियो को ट्वीट करके धांधली की बात उठाई। उन्होंने साफ कहा कि बिहार में चुनाव आयोग की निगरानी में गड़बड़ियां हो रही हैं। आयोग को इस पर तुरंत जवाब देना चाहिए। पर अब तक कोई ठोस जवाब नहीं आया है।

प्रशासनिक विफलता: बूथों पर परिचालन का टूटना

सिर्फ पर्ची और फर्जी वोटिंग की बात नहीं है। मतदान के दिन अन्य समस्याएं भी आईं। इससे पता चलता है कि प्रशासन पूरी तरह तैयार नहीं था।

बिजली कटौती और मशीन की खराबी

मतदान के दौरान कई जगह बिजली चली गई। ईवीएम खराब होने की खबरें आईं। जब बुनियादी सुविधाएं ही नहीं मिलेंगी, तो वोट कैसे पड़ेंगे? यह दिखाता है कि ज़रूरी तैयारियों पर ध्यान नहीं दिया गया। क्या चुनाव आयोग ने पर्याप्त बैकअप योजना नहीं बनाई थी?

पीठासीन अधिकारियों की मनमानी

पीठासीन अधिकारी मतदान केंद्र के इंचार्ज होते हैं। वे नियमों को लागू करने के लिए जिम्मेदार हैं। बिहार में ऐसा लगा कि उन्होंने अपने नियम बना लिए। डिजिटल पर्ची को मना करना एक मनमाना फैसला था। जब सामने सबूत हो कि वोट नहीं डाला गया, तब भी उसे मानना जिम्मेदारी से भागना है। यह दिखाता है कि अधिकारियों को सशक्त बनाने के साथ-साथ जवाबदेह भी बनाना होगा।

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