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Supreme Court से पीड़िता को झटका, आसाराम को राहत: 6 महीने की जमानत बरकरार
रेप के आरोपी आसाराम से जुड़ा जोधपुर POCSO केस फिर सुर्खियों में है। इस बार वजह है सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का वह फैसला, जिसमें कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट से मिली 6 महीने की अंतरिम जमानत को रद्द करने से इनकार कर दिया। दूसरी तरफ, यह फैसला केस की पीड़िता के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है, क्योंकि उसकी ओर से दाखिल की गई स्पेशल लीव पिटीशन खारिज हो गई है।
यह मामला सिर्फ एक आरोपी और एक पीड़िता के बीच की कानूनी लड़ाई नहीं, बल्कि यह दिखाता है कि ऊंची अदालतें जमानत, पीड़ित अधिकारों और तेज़ सुनवाई के बीच संतुलन कैसे बनाने की कोशिश करती हैं। इस पूरे घटनाक्रम में SLP क्या है, अंतरिम जमानत का मतलब क्या है, और सुप्रीम कोर्ट का हाईकोर्ट को 3 महीने में केस निपटाने का निर्देश क्यों अहम है, इसे सरल भाषा में समझना ज़रूरी है।
नीचे दिया गया छोटा वीडियो इस फैसले की झलक देता है, फिर आगे ब्लॉग में हम पूरे घटनाक्रम को विस्तार से समझेंगे।
कोर्ट का फैसला: एसएलपी खारिज, जमानत बरकरार
सुप्रीम कोर्ट ने जो कदम उठाया, उसका कानूनी असर सीधे तौर पर दो स्तर पर दिखता है। पहला, आसाराम को राजस्थान हाईकोर्ट से मिली 6 महीने की अंतरिम जमानत फिलहाल जारी रहेगी। दूसरा, पीड़िता की ओर से दायर SLP, जिसमें इस जमानत को चुनौती दी गई थी, उसे खारिज कर दिया गया है।
क्या हुआ सुप्रीम कोर्ट में?
सुनवाई के दौरान कोर्ट के सामने मुद्दा यह था कि क्या राजस्थान हाईकोर्ट की तरफ से दी गई 6 महीने की अंतरिम जमानत को रद्द किया जाए या नहीं। पीड़िता ने 21 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पिटीशन दाखिल कर हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी।
मुख्य घटनाएं संक्षेप में:
- सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा दी गई 6 महीने की अंतरिम जमानत को रद्द करने से इनकार किया।
- 21 नवंबर को पीड़िता की ओर से SLP (स्पेशल लीव पिटीशन) दाखिल की गई।
- सुनवाई के दौरान अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं।
- पीड़िता की SLP खारिज हो गई, और हाईकोर्ट का जमानत आदेश बरकरार रहा।
सरल शब्दों में कहें तो, पीड़िता चाहती थी कि सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट का फैसला पलट दे और आसाराम की जमानत रद्द कर दे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा नहीं किया, बल्कि हाईकोर्ट के आदेश में दखल देने से मना कर दिया।
हाईकोर्ट को क्या निर्देश?
सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ SLP खारिज भर नहीं की, बल्कि साथ ही एक अहम टिप्पणी भी की। अदालत ने जोधपुर POCSO केस में राजस्थान हाईकोर्ट को निर्देश दिया कि वह इस मामले की सुनवाई को शीघ्रता से पूरा करे और 3 महीने के भीतर मामले का निपटारा करे।
इसका मतलब:
- SLP निस्तारित हो चुकी है, यानी सुप्रीम कोर्ट में यह मामला खत्म हो गया।
- अब गेंद पूरी तरह राजस्थान हाईकोर्ट के पाले में है, जिसे 3 महीने के भीतर आगे की सुनवाई और फैसला करना है।
यह निर्देश दिखाता है कि सुप्रीम कोर्ट, जमानत बरकरार रखते हुए भी, लटके हुए मुकदमों को लंबा नहीं खींचने देना चाहता।
पीड़िता को झटका क्यों?
वीडियो में साफ कहा गया है, “पीड़िता को झटका लगा है”।
झटका इसलिए, क्योंकि:
- पीड़िता की उम्मीद थी कि सुप्रीम कोर्ट जमानत रद्द कर देगा।
- लेकिन अदालत ने उनकी याचिका खारिज करते हुए हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा।
यानी, जहां एक तरफ आरोपी को राहत मिली, वहीं दूसरी तरफ पीड़िता की कानूनी कोशिश इस स्तर पर सफल नहीं हो पाई। हालांकि, यह भी सच है कि केस का अंतिम फैसला अभी हुआ नहीं है, इसलिए पीड़िता की न्याय की लड़ाई अभी खत्म नहीं मानी जा सकती।
केस का बैकग्राउंड: जोधपुर POCSO मामला
यह पूरा विवाद जोधपुर POCSO केस से जुड़ा है। POCSO एक्ट बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों से जुड़े मामलों के लिए बनाया गया कानून है। इसी कानून के तहत दर्ज एक रेप केस में आसाराम पर आरोप लगाए गए हैं, और उसी केस में यह जमानत और SLP वाला विवाद सामने आया है।
आसाराम पर क्या आरोप?
आसाराम रेप के आरोपी हैं। यह मामला जोधपुर में दर्ज POCSO केस से जुड़ा है, जहां कानूनन यौन अपराधों से जुड़े मामलों पर सख्त प्रावधान लागू होते हैं।
इस केस में:
- एक पीड़िता की ओर से शिकायत दर्ज कराई गई थी।
- उसी पीड़िता की तरफ से हाईकोर्ट के जमानत आदेश को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में SLP दाखिल की गई।
जमानत की शुरुआत कहाँ से?
पूरी कहानी की शुरुआत राजस्थान हाईकोर्ट के उस फैसले से हुई, जिसमें अदालत ने 6 महीने की अंतरिम जमानत दी। अंतरिम जमानत आम तौर पर कुछ समय के लिए दी जाने वाली अस्थायी राहत होती है, जब तक कि केस की विस्तृत सुनवाई या अंतिम फैसला न हो जाए।
यहाँ घटनाक्रम कुछ इस तरह रहा:
- 21 नवंबर को पीड़िता की ओर से सुप्रीम कोर्ट में SLP दाखिल हुई।
- सुप्रीम कोर्ट ने इस SLP पर सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं।
- कोर्ट ने SLP खारिज कर दी, और हाईकोर्ट के जमानत आदेश को बरकरार रखा।
- साथ ही, हाईकोर्ट को 3 महीने के भीतर केस की सुनवाई पूरी करने और निपटाने के लिए निर्देश दे दिया।
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