Sen your news articles to publish at [email protected]
EC पर Supreme Court का कड़ा रुख: 65 लाख मतदाता नामों की सूची शनिवार तक देना अनिवार्य
लेखक: – सी.ए. प्रियदर्शी (स्वतंत्र राजनीतिक समीक्षक)
भारतीय लोकतंत्र की पारदर्शिता और निष्पक्षता के लिए हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग (EC) पर सख्त रवैया अपनाया है। चुनाव सुधारों और पारदर्शिता के लिए लगातार निगरानी करने वाले ADR (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स) की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने जो निर्देश दिए, वे आयोग के लिए एक तरह से ‘वारंट’ सरीखे बन गए हैं।
सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय खंडपीठ – जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्ज्वल भुइयां और जस्टिस ए. कटेश्वर – पिछले एक महीने से अधिक समय से चुनाव सुधारों से जुड़ी याचिकाओं पर गंभीरता से सुनवाई कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने ईसीआई को एक जिम्मेदार और वैधानिक संस्था मानते हुए कई बार नरम रुख अपनाया, मगर निर्वाचन आयोग की तरफ से अतिसावधानी या लापरवाही बार-बार उजागर हुई।
ADR और अन्य राजनीतिक दलों की भूमिका:
ADR के वकील, प्रशांत भूषण और अन्य राजनीतिक दलों के वकीलों ने न्यायालय के समक्ष यह मामला तर्कपूर्ण ढंग से रखा कि बिहार के चुनावी मतदाता सूची से अचानक 65 लाख नाम हटाए जाना अत्यंत गंभीर विषय है। राष्ट्रीय जनता दल सहित कई दलों ने मांग की कि हर बूथ की मतदाता लिस्ट अलग-अलग उपलब्ध कराई जाए जिससे यह जांचा जा सके कि किन मतदाताओं के नाम क्यों हटाए गए हैं।
बीच सुनवाई के दौरान, ADR के वकील प्रशांत भूषण ने एक और याचिका दाखिल की। इसका असर यह हुआ कि चुनाव आयोग ने 65 लाख संबंधित नामों की विशाल सूची सुप्रीम कोर्ट को सौंपने की पेशकश कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को ये निर्देश दिए कि दो दिन के भीतर जांच के लिए पूरी सूची और विस्तृत विवरण अदालत और याचिकाकर्ता को उपलब्ध कराएं।
भारी पड़ी आयोग की लापरवाही:
सुप्रीम कोर्ट ने खुलकर कहा कि संदेहास्पद परिस्थितियों को स्पष्ट करने के लिए अदालत प्रत्येक नाम की प्रशासनिक जांच कर सकती है। लापरवाही का खामियाजा चुनाव आयोग को भुगतना पड़ रहा है। जिन लोगों ने नाम शामिल कराने के लिए आवेदन दिया, उनमें से लगभग 75% लोगों ने चुनाव आयोग द्वारा बताए गए जरूरी दस्तावेज ही नहीं दिए। विपक्ष का आरोप है कि बीएलओ (B.L.O.) की सिफारिश और मनमर्जी से फार्म स्वीकार या अस्वीकार किए गए।
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्देश के बाद आयोग की जवाबदेही तय हो गई है। आने वाले सप्ताह में, जब प्रशांत भूषण को यह सूची मिलेगी और अगर वे गड़बड़ियों की कोई सूची सबूतों के साथ कोर्ट में पेश कर सकेंगे, तो आयोग की खामियां और अन्याय खुलकर सामने आ जाएंगी। इससे आयोग दोबारा कटघरे में आ सकता है।
इसे भी पढ़ें – राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत पर “टैरिफ बम” गिराया: Rahul Gandhi की चेतावनी और Modi की चुप्पी!