Vimarsh News
Khabro Me Aage, Khabro k Pichhe

Tata Group के चुनावी चंदे ने मचाया सियासी बवाल

tata group election donation sparks political uproar 20251129 094216 0000
0 125

टाटा ग्रुप (Tata Group) का भारी चुनावी दान राजनीति में भूचाल ला दिया। देश के बड़े कारोबारी घराने ने भाजपा को 758 करोड़ रुपये दिए। यह दान सरकार की सेमीकंडक्टर इकाई मंजूरी के ठीक चार हफ्ते बाद आया। वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने इसे रिश्वत कहा। क्या यह संयोग है या सौदा? बड़ा सवाल खड़ा हो गया।

सरकार की सेमीकंडक्टर योजना और टाटा को फायदा

मोदी कैबिनेट ने टाटा ग्रुप (Tata Group) की दो इकाइयों को मंजूरी दी। सब्सिडी का आंकड़ा है 44,203 करोड़ रुपये। यह रकम भारत की अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा कदम है।

सेमीकंडक्टर क्षेत्र राष्ट्रीय नीति का अहम हिस्सा है। चिप्स बनाने से देश आत्मनिर्भर बनेगा। टाटा को यह लाभ मिला है। लेकिन समय पर सवाल उठ रहे हैं।

सरकार ने योजना लॉन्च की। बड़े निवेश की जरूरत। टाटा आगे आया। फिर दान का मामला गरमाया।

758 करोड़ के दान का समय

मंजूरी के चार हफ्ते बाद दान हुआ। भाजपा को सबसे बड़ा चंदा। प्रशांत भूषण ने इसे quid pro quo बताया।

यह समय संयोग जैसा लगता है। लेकिन आलोचक इसे सबूत मानते हैं। राजनीति में हंगामा मच गया। सवाल उठे कि क्या लेन-देन है।

दान की रकम बड़ी है। टाटा ग्रुप देश का सबसे बड़ा दानदाता बना। भाजपा को फायदा। लेकिन पारदर्शिता पर बहस छिड़ी।

प्रशांत भूषण के आरोप: चुनावी चंदा या रिश्वत?

प्रशांत भूषण ने साफ कहा। यह रिश्वतखोरी है। वे लंबे समय से चुनावी फंडिंग पर सवाल उठाते रहे हैं। नियमों में खामियां बताते रहे हैं।

कानूनी फर्क समझें। चंदा वैध हो सकता। लेकिन बदले में ठेका मिले तो गलत। नैतिक सवाल बड़ा। क्या कंपनियां खरीद रही प्रभाव?

भूषण ने ट्वीट किया। सवाल पूछा मोदी सरकार से। जवाब की मांग की। बहस तेज हो गई।

ठेके हासिल करने और जांच से बचने का पैटर्न

भूषण का बड़ा दावा। कंपनियां ठेके के लिए चंदा देती। या ईडी-सीबीआई के डर से। सरकारी अनुकूलता चाहती।

  • सरकारी ठेके: बड़े प्रोजेक्ट्स के लिए दान।
  • जांच एजेंसियां: छापे से बचाव।
  • रिश्वत का बड़ा हिस्सा: चुनावी फंडिंग में।

देश में पैटर्न दिखता है। कंपनियां दबाव में दान देती है। स्वतंत्रता प्रभावित। भूषण ने इसे उजागर किया।

भारत की चुनावी फंडिंग पर नजर

भारत में चंदे के स्रोत छिपे रहते। आरोप आसानी से लगते। इलेक्टोरल बॉन्ड्स पर बहस। लेकिन प्रभावी नहीं। पारदर्शिता जरूरी। दानकर्ता का नाम सामने आए। जवाबदेही बढ़े। वरना संदेह बना रहेगा। चुनाव आयोग की भूमिका। नियम सख्त करें। कंपनियों पर नजर। फंडिंग साफ हो।

इसे भी पढ़ें – Akhilesh Yadav का बड़ा आरोप: यूपी में 3 करोड़ वोट काटने की तैयारी में BJP और चुनाव आयोग

Leave a comment