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Yogi Adityanath के ‘पप्पू-टप्पू’ बयान पर Tejashwi Yadav का पलटवार: बिहार चुनाव की सियासत में नया बवाल

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बिहार चुनाव के मैदान में एक बयान ने हंगामा मचा दिया। योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने ‘पप्पू टप्पू और अप्पू’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया। यह बात तेजस्वी यादव को चुभ गई। वे भड़क उठे और सीधा हमला बोला। राजनीति में ऐसे तीखे शब्द दर्द देते हैं। लोग सोचते हैं कि नेता क्यों इतनी निचली भाषा का सहारा लेते हैं? यह विवाद बिहार की सियासत को और गर्म कर रहा है। तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने योगी पर व्यक्तिगत आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि योगी ने खुद के गंभीर केस हटा लिए। यह लड़ाई सिर्फ शब्दों की नहीं। बल्कि नैतिकता की भी है। हम सब देख रहे हैं कि चुनाव कैसे व्यक्तिगत हो जाते हैं।

बिहार चुनाव प्रचार में योगी आदित्यनाथ का विवादास्पद बयान

बिहार विधानसभा चुनाव की रैलियों में योगी आदित्यनाथ ने जो कहा वह सुर्खियां बन गया। वे विपक्ष पर तंज कस रहे थे। ‘पप्पू टप्पू और अप्पू’ जैसे नामों से उन्होंने मजाक उड़ाया। यह बयान लालू प्रसाद यादव के परिवार को निशाना बनाता लगता है। योगी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। वे बिहार में भाजपा के लिए प्रचार कर रहे थे। उनका यह अंदाज लोगों को चौंका गया। क्या यह राजनीतिक चुटकी थी या कुछ और? हम सब जानते हैं कि चुनाव में शब्द हथियार बन जाते हैं। योगी का यह बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। लोग बहस कर रहे हैं।

‘पप्पू-टप्पू’ टिप्पणी का विवरण

योगी ने रैली में कहा कि विपक्ष में ऐसे लोग हैं जो ‘पप्पू टप्पू और अप्पू’ जैसे नामों से जाने जाते हैं। यह शायद तेजस्वी यादव और उनके भाई पर इशारा था। बयान के दौरान भीड़ हंस रही थी। लेकिन विपक्ष ने इसे अपमान माना। योगी ने इसे हल्के अंदाज में कहा। फिर भी यह गंभीर विवाद पैदा कर दिया। चुनाव प्रचार में ऐसे जुमले आम हैं। पर इस बार यह ज्यादा तीखा लगा। तेजस्वी ने इसे नजरअंदाज नहीं किया।

राजनीतिक टिप्पणी बनाम व्यक्तिगत हमला

क्या योगी का बयान नीतियों पर था या निजी? लगता है यह व्यक्तिगत हमला था। राजनीति में आलोचना तो ठीक है। लेकिन नाम लेना या मजाक उड़ाना गलत लगता है। हम सब देखते हैं कि इससे बहस बिगड़ जाती है। योगी शायद विपक्ष की कमजोरियों पर चोट करना चाहते थे। पर यह तरीका सही नहीं। जनता को नीतियां चाहिए। न कि ऐसे तंज। यह बयान भाजपा की रणनीति का हिस्सा हो सकता है। लेकिन विपक्ष ने इसे पलट दिया।

तेजस्वी यादव का आक्रामक जवाबी हमला

तेजस्वी यादव ने योगी के बयान पर तुरंत पलटवार किया। वे गुस्से में थे। कहा कि ऐसे मुख्यमंत्री जो खुद के केस हटा लेते हैं वे क्या सिखाएंगे? तेजस्वी आरजेडी के नेता हैं। वे बिहार के युवा चेहरे हैं। उनका जवाब सीधा और सख्त था। उन्होंने योगी की साख पर सवाल उठाए। यह हमला दिल को छू गया। हम समझ सकते हैं उनका दर्द। राजनीति में सम्मान की उम्मीद सब करते हैं। तेजस्वी ने कहा कि भाजपा के लोग ऐसी भाषा से दुख देते हैं।

कानूनी मामलों पर योगी सरकार का ट्रैक रिकॉर्ड

तेजस्वी ने कहा कि योगी ने मुख्यमंत्री बनते ही अपने ऊपर लगे गंभीर मुकदमे हटा लिए। यह उनका पहला काम था। क्या यह सही है? हम सोचते हैं कि नेता खुद को बचाते हैं तो जनता का क्या? योगी पर पहले कई केस थे। जैसे हत्या और दंगा के। तेजस्वी ने इन्हें याद दिलाया। यह आरोप भाजपा को शर्मिंदा कर सकता है। चुनाव में ऐसे मुद्दे वोट बदल देते हैं। तेजस्वी का यह तीर निशाने पर लगा।

उच्च संवैधानिक पदों की गरिमा पर सवाल

तेजस्वी ने कहा कि अगर सीएम या पीएम ऐसी बातें करें तो उनकी सोच का अंदाजा लग जाता है। उच्च पदों पर बैठे लोग निचली भाषा क्यों? यह दुख की बात है। जनप्रतिनिधि ऐसे होने चाहिए जो प्रेरणा दें। तेजस्वी ने भाजपा नेताओं पर निशाना साधा। कहा कि वे जनता के प्रतिनिधि हैं फिर भी ऐसी बातें। हम सब सहमत हैं कि राजनीति में गरिमा जरूरी है। तेजस्वी का यह बयान विपक्ष को मजबूत बनाता है।

चुनावी राजनीति में व्यक्तिगत आरोपों का बढ़ता चलन

बिहार चुनाव में व्यक्तिगत हमले बढ़ रहे हैं। पहले नीतियां पर बहस होती थी। अब नाम और परिवार पर। यह ट्रेंड चिंताजनक है। तेजस्वी का जवाब इसका उदाहरण है। योगी का बयान भी यही दिखाता है। हम देखते हैं कि सियासत कैसे गंदी हो रही है। वोट के लिए कुछ भी। लेकिन जनता थक गई है।

शीर्ष नेतृत्व द्वारा भाषा के प्रयोग का प्रभाव

शीर्ष नेता जैसे योगी या पीएम उनकी भाषा से नीचे के कार्यकर्ता सीखते हैं। अगर वे तंज कसें तो सब वैसा ही करेंगे। यह कैंपेन का टोन खराब करता है। बिहार में रैलियां देखिए। हर तरफ व्यक्तिगत टिप्पणियां। प्रभाव यह है कि बहस सार्थक नहीं रहती। युवा वोटर सोचते हैं कि ये नेता कैसे बदलाव लाएंगे? हम उम्मीद करते हैं बेहतर भाषा का।

विरोधियों पर जवाबी हमलों की रणनीति

तेजस्वी का जवाबी हमला स्मार्ट था। उन्होंने योगी के अतीत को उछाला। इससे फोकस शिफ्ट हो गया। क्या यह रणनीति काम करती है? हां बिहार जैसे चुनाव में। वोटर पुरानी बातें याद रखते हैं। तेजस्वी ने कमजोरी को ताकत बना लिया। भाजपा को अब सफाई देनी पड़ेगी। ऐसे हमले वोट प्रभावित करते हैं।

‘उच्च संवैधानिक पद’ और राजनीतिक नैतिकता

उच्च पदों पर नैतिकता का सवाल उठा है। तेजस्वी ने ठीक कहा। सीएम पीएम को मिसाल बनना चाहिए। लेकिन हकीकत अलग है। हम दुखी होते हैं जब भाषा गिरती है। राजनीति में नैतिकता क्यों भूल जाती है? यह विचारणीय है। बिहार चुनाव इसकी मिसाल है।

जनप्रतिनिधियों की जवाबदेही

जनता उम्मीद करती है कि नेता जवाबदेह हों। लेकिन व्यक्तिगत हमले से विश्वास टूटता है। तेजस्वी ने योगी को आईना दिखाया। हम सब चाहते हैं कि प्रतिनिधि सम्मान दें। जवाबदेही का मतलब है साफ भाषा। चुनाव के बाद भी यह मुद्दा रहेगा।

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