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Tejashwi Yadav की ‘नौकरी’ की गारंटी बनाम मोदी का ‘कट्टा’ बयान: बिहार चुनाव में भाषा के स्तर में गिरावट
बिहार के लोग थक चुके हैं। रोजगार की तलाश में परिवार बिखर जाते हैं। बच्चे दूर शहरों में जाते हैं। मां-बहनें चिंता में डूबी रहती हैं। ऐसे में चुनाव आते हैं। उम्मीद जगती है। तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) नौकरी का वादा कर रहे हैं। वहीं पीएम मोदी कट्टे की बातें। यह टकराव बिहार की सड़कों पर साफ दिखता है। जनता सोच रही है। कौन सा मुद्दा असली है? रोजगार या ये उलझनें?
बिहार में फोकस शिफ्ट: रोजगार बनाम व्यक्तिगत हमलों की रणनीति
बिहार चुनाव में दो रास्ते खुल रहे हैं। एक तरफ रोजगार की बात। दूसरी तरफ हमले। आरजेडी और तेजस्वी यादव नौकरियां देने का वादा कर रहे हैं। वे परिवारों की पीड़ा समझते हैं। जहां बिना नौकरी का घर उदास रहता है। पीएम मोदी गुजरात के इंफ्रास्ट्रक्चर से बिहार के कट्टे पर आ गए। यह बदलाव अजीब लगता है। जनता को लगता है जैसे असली मुद्दे छिपाए जा रहे हैं।
चुनावी नैरेटिव का विश्लेषण: जनता किसे सुन रही है?
क्या बिहार वाले नौकरी चाहते हैं या बहस? तेजस्वी सीधी बात कर रहे हैं। सरकार बनी तो 20 दिनों में कानून। हर परिवार को एक नौकरी। वहीं बीजेपी के बयान विचलित करते हैं। कट्टा रखकर सीएम पद चोरी। यह सुनकर दुख होता है। लोग सोचते हैं। हमारी जिंदगी का क्या? रोजगार का वादा ठोस लगता है। हमले तो भूल जाएंगे। लेकिन नौकरी याद रहेगी। जनता का झुकाव रोजगार की ओर। यह देखकर उम्मीद बढ़ती है।
तेजस्वी का चुनावी वादा: हर परिवार को सरकारी नौकरी
तेजस्वी यादव का वादा सरल है। जिस घर में सरकारी नौकरी न हो। वहां एक नौकरी देंगे। सरकार बनी तो 20 दिनों में कानून बनेगा। मां-बहनें खुश होंगी। बच्चे का भविष्य सुरक्षित। वे कहते हैं। एक मौका दो। हम पूरा करेंगे। यह वादा दिल को छूता है। बिहार के गांवों में लोग ऐसे वादों की राह देखते हैं। तेजस्वी ने प्रण लिया है। इसे पूरा करने को तैयार।
RJD सरकार द्वारा किए गए कथित रोजगार आंकड़े
आरजेडी की पुरानी सरकार ने क्या किया? 17 महीनों में 5 लाख नौकरियां दीं। बिना पेपर लीक के। ईमानदारी से। हर जाति हर धर्म के लोगों को। 3 लाख नौकरियां प्रक्रिया में हैं। 4 लाख नियोजित शिक्षकों को राजकीय कर्मी का दर्जा मिला। पहले लोग हंसते थे। कहां से दोगे नौकरी? अब वे ही नियुक्ति पत्र बांटते हैं। यह दावा मजबूत है। बिहार के युवा याद रखेंगे।
- 5 लाख नौकरियां: सीधे दी गईं। कोई भेदभाव नहीं।
- 3 लाख प्रक्रिया में: जल्द पूरी होंगी।
- 4 लाख शिक्षक: अब स्थायी। परिवार सुरक्षित।
ये आंकड़े परिवारों को राहत देते हैं। दुख कम होता है।
तेजस्वी की तूफानी प्रचार शैली और जनसमर्थन का दावा
तेजस्वी दिन में 17 रैलियां करते हैं। एक हेलीकॉप्टर से। तूफान ला रहे हैं। महागठबंधन में सबसे लोकप्रिय चेहरा वे। गोदी मीडिया के सर्वे भी यही कहते हैं। सीएम फेस के लिए पहली पसंद। बिहार वाले उनके चेहरे पर वोट डाल रहे हैं। यह सपोर्ट देखकर अच्छा लगता है। वे सिर्फ मौका मांग रहे हैं। जनता की ताकत से लड़ रहे।
प्रधानमंत्री मोदी का ‘कट्टा’ बयान और बीजेपी की जवाबी रणनीति
भाषा के स्तर में गिरावट: ‘पप्पू’, ‘टप्पू’, और ‘अप्पू’ का प्रयोग
पीएम मोदी के बयान सुनकर दुख होता है। पप्पू सच नहीं बोल सकता। टप्पू अच्छा नहीं देख सकता। अप्पू सच नहीं सुन सकता। यह भाषा नीचे गिर गई। राजनीति में ऐसा स्तर ठीक नहीं। बिहार के लोग ऊंची सोच चाहते हैं। हमले व्यक्तिगत हैं। मुद्दों से दूर। जनता सोचती है। हमारी समस्याओं का क्या?
‘कनपटी पर कट्टा’ वाले बयान का निहितार्थ
आरजेडी ने कांग्रेस की कनपट्टी पर कट्टा रखकर सीएम पद चोरी कर लिया। यह बयान चौंका देता है। क्या इससे बिहार का भला? ध्यान भटकता है। असली मुद्दे छिप जाते हैं। तेजस्वी महिला सम्मान और अपराधियों को जेल की बात कर रहे। यहां कट्टे की चर्चा। जनता को गुमराह करने का तरीका। दुख है कि नेता ऐसे बोलें।
बीजेपी की एजेंडा सेटिंग: ध्यान भटकाने के लिए भावनात्मक कार्ड
बीजेपी का पुराना तरीका। कभी मंगलसूत्र। कभी मुजरा। अब कट्टा। मोकामा की घटना पर चुप। लेकिन कट्टे पर बोलना। यह रणनीति साफ है। मुद्दों से भागना। गोदी मीडिया दिन भर दिखाएगा। बहस होगी। बिहार के लोग थक जाते हैं। वे रोजगार चाहते हैं। न कि ये उलझनें। सहानुभूति होती है। जनता के साथ।
महागठबंधन के भीतर तनाव: एनडीए गठबंधन में दिख रहे मतभेद
एनडीए का घोषणापत्र आया। नीतीश कुमार चुप। एक शब्द नहीं। पीएम के मंच पर नहीं जाते। रोड शो में साथ नहीं। यह दूरी क्यों? बिहार वाले सोचते हैं। अंदर क्या हो रहा? नीतीश के कट्टे की बात कौन करे? वे रैलियों में क्यों नहीं? जनता को लगता है। कुछ छिपा है। दुख होता है। गठबंधन टूटने का डर।
आंतरिक कलह को छिपाने का प्रयास
बीजेपी और जेडीयू में झगड़ा। इसे छिपाने के लिए बाहरी हमले। कट्टा बयान ऐसे ही। गोदी मीडिया हवा देगा। ध्यान भटकेगा। लेकिन बिहार के लोग समझदार हैं। वे देख रहे। अंदर की लड़ाई बाहर नजर आ रही। नीतीश की चुप्पी चिंता बढ़ाती। गठबंधन कमजोर लगता है। जनता के हित में क्या?
घोषणापत्र पर चुप्पी: नीतिगत चर्चा से पलायन
एनडीए का घोषणापत्र। नीतीश ने कुछ नहीं कहा। पीएम भी मुद्दों पर नहीं। सिर्फ हमले। रोजगार महिला सम्मान पर बहस क्यों न हो? चुप्पी से बचना। बिहार को नीतियां चाहिए। न कि बहाने। यह पलायन दुख देता। लोग उम्मीद करते हैं। सच्ची चर्चा हो।
तेजस्वी की लड़ाई: संसाधनों की असमानता और कार्यकर्ताओं का आह्वान
तेजस्वी अकेले लड़ रहे। एक हेलीकॉप्टर। कल 17 सभाएं। सामने 30 हेलीकॉप्टर। रोकने के लिए। पीएम सीएम केंद्र मंत्री। राज्य मंत्री भ्रष्ट अधिकारी। सभी लगे हैं। बिहार के लोग देखते हैं। असमानता साफ। लेकिन तेजस्वी नहीं रुकते। उनकी मेहनत सराहनीय। दुख है कि इतना दबाव।
एजेंसी इस्तेमाल और दबाव की राजनीति
चुनाव आयोग ईडी सीबीआई। इनकम टैक्स। गोदी मीडिया प्रशासन। पूंजीपति। ये सब तेजस्वी के खिलाफ। जनता की दी ताकत से लड़ रहे। यह दबाव राजनीति का हिस्सा। लेकिन बिहार वाले समझते हैं। वे साथ देंगे। सहानुभूति तेजस्वी के साथ।
मतदाताओं के लिए संदेश: बड़ी लड़ाई और छोटे गिले-शिकवे भुलाने का आह्वान
यह बड़ी लड़ाई है। छोटे शिकवे भूलो। गिलास-शिकवा दूर करो। तेजस्वी कहते हैं। आपका भाई बेटा आपकी ताकत से लड़ रहा। हेलीकॉप्टर डायरेक्टर बना दिया। मतदाताओं को आह्वान। एकजुट हो जाओ। बिहार का भविष्य दांव पर। यह संदेश दिल छूता। लोग सुनेंगे।
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